#विशेष:अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के 204वाँ जयंती,सैकड़ों गुमनाम शहीदों के बलिदानों की अमर गाथा का गवाह है झारखण्ड की गौरवशाली भूमि,इन्हीं शहीदों में एक थे,वीर सपूत अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव।

राँची।सैकड़ों गुमनाम शहीदों के बलिदानों की अमर गाथा का गवाह है झारखंड की गौरवशाली भूमि।भारत माता की जमीन पर गुलामी की पताका न फहर पाए इसके लिए अपनी जान की परवाह किए बगैर सैकड़ों वीरों ने मातृभूमि की बलिवेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इन्हीं शहीदों में एक थे झारखंड के वीर सपूत अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव।

बड़कागढ़ छोटानागपुर(खुखरा) परगना लोहरदगा जिले में था।अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव जी का जन्म 12 अगस्त 1817 ई को सतरंजी गढ़ में हुआ था । उन्होंने बड़कागढ़ की राजधानी हटिया की स्थापना की थी और अपना आवास चिरनागढ़ हटिया में बदल लिया था। जिसे 1857-58 की क्रांति अंग्रेजों द्वारा तोप से उड़ा दिया गया, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के पिता ठाकुर रघुनाथ शाहदेव थे एवं माता का नाम चुनेशवरी देवी था। उनकी धर्मपत्नी का नाम ठाकुरानी वानेश्वरी कुवंर था।

अंग्रेजी सरकार के जुलम ने छोटानागपुर में अपना फैलाव शुरू कर दिया था। 1857 के क्रांति में उनकी उम्र 35 वर्ष की थी। बड़कागढ़ ईस्टेट जगन्नाथ श्री मंदिर निर्माता ठाकुर एनी नाथ शाहदेव से 7वें पीढ़ी के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव थे।1857 का वर्ष आरंभ होते ही ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के रास्ते पर भारत वर्ष में सबसे आगे की कतार में थे । क्रांति देवी की पहली प्रतीक्षा करने वाले राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव थे । अंग्रेजी सरकार इस बात को समझती थी कि ठाकुर साहब का अपमान अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुका था और दबी हुई चिंगारी कभी भी भारी विप्लव का रूप ले सकती थी ।

बंगाल के गवर्नर हेली डे ने तत्काल इस परिस्थिति से निपटने के लिए 1857 में ई.टी. डाल्टन को असम से बदलकर छोटानागपुर के कमिश्नर पद पर नियुक्त किया । मगर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की क्रांति तैयारी में जुटे रहे । सिंहभूम के अमीर, सुरेंद्र साही, धीरज सिंह, जग्गू दीवान और डोरंडा फौज के जमादार माधव सिंह के साथ ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की अंदरुनी बात चीत चलने लगी। कोलकाता के बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 के विद्रोह का प्रारंभ कर दिया । 3 अप्रैल को मंगल पांडे को उसी फौजी मैदान में फांसी दे दी गई।

जून 1857 के प्रथम सप्ताह में दिल्ली की आजादी की खबर छोटानागपुर में जंगली पठार में गूंजने लगी । बंगाल के गवर्नर हॉली डे छोटानागपुर के सभी जिला अध्यक्षों को स्थानीय फौज की गतिविधियों की सूचना भेजने की हिदायत दी।17 जून को हॉली डे निर्देश दिया कि छोटानागपुर में साधु वेश में छिपकर विद्रोह फैलाते हुए जो कोई भी देखा जाए या किसी भी व्यक्ति के विद्रोह की भावना फैलाने की कोशिश करता पाया जाए ,उसे तुरंत गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया जाय।

राँची के पूर्व जोंहा और सिल्ली घाटी में भी पुलिस बैठा दी गई। मगर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने जिलाधीश डेविस की हर सतर्कता को काट देने का प्रयास जारी रखा।23 जून 1857 जगन्नाथपुर का वार्षिक मेला का दिन था । ठाकुर साहब ने तय कर लिया था कि उसी शुभ दिन छोटानागपुर को आजाद करा लिया जाए । रांची में यह खबर बिजली की तरह फैल रही थी कि रांची से 8 मील दूरी पर जगन्नाथपुर मेले के अवसर पर जब हजारों हजार लोग इकट्ठे होंगे तो ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव विद्रोह कर देंगे उन लोगों से अपार धन इकट्ठा किया जाएगा ,रांची के जिलाधीश डेविड ने हेली डे को सूचित किया कि 23 जून को विद्रोह का दिन तय किया गया है। मगर सौभाग्य बस उस दिन घटना नहीं घटी, मेले के अवसर पर भारी बारिश हुई और संध्या समय लोगों की खुशी खुशी अपनी घर लौटते देखा गया । लगातार भारी बारिश के कारण नदी नाले भरे हुए थे ,जिन को पार कर बाहर के लोगों का छोटा नागपुर में प्रवेश असंभव था । ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव 15 जून के बाद लगातार इस कोशिश में रहे कि इस क्षेत्र को अंग्रेजों से आजाद करने में जल्दी की जाए । क्रांति हो चुकी है ,दिल्ली आजाद हो चुका है । देश का शासक बहादुर शाह है। फिर छोटानागपुर को पीछे नहीं रहना है ,मगर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की कठिनाई यह थी कि उनके फौजी मित्र माधव सिंह छुट्टी पर अपने घर गए थे।

25 जुलाई को दानापुर की 3000 फौज नेे बिहार क्रांति का उद्घोष कर दिया। हजारीबाग में दानापुर कि विद्रोही फौज की टुकड़ी के हथियार छीनने के लिए 30 जुलाई को माधव सिंह और नादिर अली खां के नेतृत्व में डोरंडा फौज की 300 की टुकड़ी को 2 तोपों के साथ कप्तान ग्राहम की देखरेख में जल्दबाजी में डालटन ने रॉची से विदा किया । चुटुपालु घाटी में माधव सिंह ने हजारीबाग बढ़ने से इंकार कर दिया ,तोपो का मुंह रांची की तरफ घुमा दिया और ग्राहम तथा दूसरे अंग्रेजों की तरफ बंदूकें तान दी। घुड़सवार फौज के नेता अहम्मदयार खॉ ने अंग्रेजो का साथ दे दिया । माधव सिंह ने तोप और पैदल फौज के साथ वापस रांची की ओर कूच कर दिया।

2 अगस्त को ओरमांझी और रांची के बीच आजादी का जो फौजी प्रदर्शन हुआ ,उसकी कोई मिशाल छोटा नागपुर के इतिहास में नहीं मिलती । उमराव सिंह और सेख भिखारी के 12 गांव की जनता माधव सिंह की तोपों और बंदूकों के पीछे पीछे रांची को अंग्रेजी राज्य से मुक्त करने के लिए चल रही थी । माधव सिंह और निदिर अली खॉ रांची के मुक्तिदाता बनकर तेजी से रांची की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। सेना का नाम “मुक्ति वाहिनी सेना” ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने रखा था ।

कमिश्नर डाल्टन डोरंडा में 1 अगस्त की रात को मौत के साए में गिरा रहा । उसका अंदाज था कि 2 अगस्त को 4:00 बजे माधव सिंह की फौज ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ मिलकर डोरंडा टूट पड़ेगी। अपनी दो तोपो को आगे आगे प्रदर्शन करते हुए बरियातू के तरफ से प्रवेश कर लिया । ई टी डाल्टन की कोठी को माधव सिंह ठाकुर साहब के कहने पर जला दिया गया। जुल्मी ओक की कोठी को आग लगाकर धराशाई कर दिया गया । अपर बाजार जेल तोड़कर तीन 300 कैदियों को रिहा कर दिया गया।रांची कचहरी वर्तमान रांची विश्वविद्यालय स्थल को भी उन्होंने जलाया । डेविश के घर और हाते के सामानों को लूटा गया।

अंत में डोरंडा छावनी की ओर बढ़ने लगे । संध्या समय डोरंडा छावनी ने पागल हर्ष ध्वनी के बीच क्रांतिकारी माधव सिंह व ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का स्वागत किया । माधव सिंह ने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को स्वतंत्र छोटानागपुर का गवर्नर बनाया । मेजर नेशन की डोरंडा कोठी में हर दिन ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव बड़कागढ़ के राजधानी हटिया से जुलुस में आकर गवर्नर की तरह बैठकर छोटा नागपुर का शासन करने लगे । ठाकुर साहब पूरे अगस्त 1857 में शान बान से गवर्नर का काम करते रहे । 6 महीने तक छोटानागपुर को स्वतंत्र घोषित कर दिया।

अंग्रेजों को घर छोड़ कर भागना पड़ा। रांची की जेल, कचहरी, थाना जैसी सभी जगहों पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो चुका था । जीत दर्ज करने के बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने दरबार में कहा था “हमने अंग्रेजों को अवश्य हरा दिया है लेकिन हमे ओर अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है, अंग्रेजों के पिट्ठू जमींदारों ,मुखबीरों और यहां तक कि पादरियों के प्रति भी हमें सजग रहना होगा।” घर का दुश्मन अज्ञात दुश्मनों से ज्यादा खतरनाक होता है ,उधर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को पकड़ने के लिए अंग्रेज सरकार ने इनाम घोषित कर दिया । देशद्रोह दगाबाजों ने अंग्रेजों का साथ देकर मेजर कोटर एवं कैप्टन ओक्स की सेना को मजबूत किया। लेकिन ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के कदम रुके नहीं । वह अंग्रेजों का घेरा तोड़कर विरता दिखाते हुए निकल जाते थे।

सन् 1858 में जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव चतरा तालाब के निकट युद्ध कर रहे थे। तभी धोखे से उन्हें घेरकर पकड़ लिया गया । उन्हें पैदल चतरा से रांची लाकर अपर बाजार जेल में बंद कर दिया गया । 16 अप्रैल 1858 को रांची जिला स्कूल के गेट पर एक कदम की डाली से लटका कर फांसी दे दी गई । छोटा नागपुर की धरती के लाल ने छोटा नागपुर की मौत को स्वीकारा । नाना साहब, अमर सिंह और बेगम हजरत महल के साथ नेपाल में शरण लेने के बजाय ,रांची जिला स्कूल के गेट पर हंसते हुए कदम की डाली पर फांसी पर लटक जाना उन्होंने अपनी शान समझी । ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव झुंड के नेता कभी नहीं रहे ।हर समय उन्होनें स्वतंत्र विचारों को अपने जीवन का संबल बनाया ।

आज भी जब हम रांची के शहीद चौक से गुजरते हैं, झारखंड के गौरवशाली अतीत को याद कर हमारा सर उस अमर शहीद के चरणों पर श्रद्धा से झुक जाते हैं। क्रांतिवीर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की अमर कृति झारखंड वासियों के हृदय पटल पर सदियों से अंकित रहेगी। “जय अमर सेनानी “

विशेष प्रस्तुति :
ठाकुर नवीन नाथ शाहदेव
वरिष्ठ प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी
अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव एवं प्रथम सेवक सेवाईत जगन्नाथपुर मंदिर बड़कागढ , जगन्नाथपुर,राँची।
मे0 – 9430333380