नवरात्र का चौथा दिन,माँ दुर्गा के माता कूष्मांडा स्वरूप की पूजा,”या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।”

झारखण्ड न्यूज,राँची।आज वासंतिक नवरात्र का चौथा दिन है।इस दिन माँ दुर्गा के माँ कूष्मांडा स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं. मां कुष्मांडा अत्यंत अल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होती हैं।देवी के इस स्वरूप की अष्ट भुजाएं हैं।कहा जाता है कि इनकी पूजा से सूर्य ग्रह मजबूत होता है. इससे व्यक्ति के मान-सम्मान में वृद्धि होने के साथ उसकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है. कूष्मांडा देवी को मालपुए का भोग लगाया जाता है।

माँ कुष्मांडा की पूजा विधि:
नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत करने से विशेष फल मिलता है।पूजा में माँ को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं।इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें।सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें।कुम्हड़ा भेंट करने के बाद माँ को दही और हलवा का भोग लगाएं और प्रसाद में वितरित करें।

देवी कूष्मांडा के मंत्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ध्यान मंत्र:
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥

माँ कुष्माण्डा की व्रत कथा:
अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से जाना गया. जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कूष्मांडा का मतलब कुम्हड़ा से है. ऐसी मान्यता है माँ कूष्मांडा ने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए अवतार लिया था. इनका वाहन सिंह है।मान्यता है कि इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में स्थित है. मां के इस स्वरूप की उपासना से आयु, यश और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

देवी कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे।

सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

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