#JHARKHAND:क्या बाल संरक्षण एक अधूरा एजेंडा के रूप में ही रहेगा ?बाल यौन शोषण की समस्या भारत ही नहीं पूरे विश्व में व्याप्त,इस अपराध से पीड़ित व्यक्ति(विशेष रूप से बच्चा) पर सामाजिक, शारीरिक,मनोवैज्ञानिक रूप में एवं उसके व्यवहार पर गम्भीर दुष्प्रभाव होते हैं-डॉ अनंगदेव सिंह

क्या बाल संरक्षण एक अधूरा एजेंडा के रूप में ही रहेगा?
डॉ अनंगदेव सिंह

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डॉ अनंगदेव सिंह
राँची।बाल यौन शोषण एक अत्यंत ही संवेदनशील और समाज में व्याप्त एक ऐसा मुद्दा है,जो हमेशा से ही सामाजिक संवाद एवं हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में शायद उपेक्षित विषय ही रहा है।बाल यौन शोषण की समस्या भारत ही नहीं पूरे विश्व में व्याप्त है।इस अपराध से पीड़ित व्यक्ति ( विशेष रूप से बच्चा) पर सामाजिक, शारीरिक,मनोवैज्ञानिक रूप में एवं उसके व्यवहार पर गम्भीर दुष्प्रभाव होते हैं. इसे आपराधिक कृत्य बनाते हुए, सरकार द्वारा पोक्सो क़ानून लाना बच्चों के साथ बलात्कार, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी के लिए उनका शोषण के विरुद्ध एक सराहनीय प्रयास तो है, लेकिन उसका प्रभावी क्रियान्वयन ज्यादा जरूरी है।


बच्चों के विरुद्ध हिंसा- सरकारी आंकड़ों में


20 मार्च से 31 मार्च 2020 बीच चाइल्डलाइन (1098) पर प्राप्त कॉल के रिपोर्ट की बात करें, तो इन 11 दिनों में 92000 कॉल प्राप्त हुए थे, इन कॉल्स का 30 प्रतिशत कॉल बच्चों के विरुद्ध हिंसा से संरक्षण से ही सम्बंधित थे. यह बाल संरक्षण के विषय में गम्भीर हालत का सूचक है।
यदि हम बच्चों के विरूद्ध हिंसा से सम्बंधित आंकड़ों के और अन्दर जाएँ तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अपराधों का विश्लेषण कर हर साल एक रोपोर्ट जारी करता है. एनसीआरबी 2018 रिपोर्ट तो और भी विचलित करने वाला है, क्योंकि बाल यौन शोषण के कुल रिपोर्ट किए गए मामलों में से 94.6 प्रतिशत अपराध पीड़ित बच्चे की जान – पहचान के द्वारा ही किया गया था. ऐसे में, तो आसानी से समझा जा सकता है कि लोक लाज या सगे सम्बन्धियों का ही आरोपी होने के कारण संकोचवश भी ऐसे कई मामलों की रिपोर्टिंग ही नहीं होती होगी।


झारखण्ड की बात करें, तो एनसीआरबी का ही उक्त 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक़ बच्चों के विरुद्ध हिंसा के कुल 1479 मामले हैं, वहीँ पोक्सो के 615 मामले दर्ज किए गए हैं. जबकि वर्ष 2014 की इसी रिपोर्ट में ये आंकड़े थे- 423 ( कुल मामले) और 31 (पोक्सो). यह दर्शाता हैं कि इन मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है. वर्ष 2012 में, बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों में शीर्ष तीन जिले- गिरिडीह (130 मामले ), गोड्डा (127 मामले) और पलामू (112 मामले) हैं. जबकि पोक्सो सम्बन्धी मामलों के अनुसार रांची (70 मामले) पहले स्थान पर, पलामू(57 मामले) दूसरे स्थान पर और धनबाद (51 मामले) तीसरे स्थान पर है. बच्चों का अपहरण के मामले में गोड्डा (71 मामले) पहले स्थान पर, देवघर (58) दूसरे स्थान पर और गिरिडीह (50 मामले) तीसरे स्थान पर हैं. और, रिपोर्ट किए गए कुल पोक्सो केस के मामले झारखण्ड का देश में 16वां स्थान है.
ये तो वे आंकडें हैं, जो रिपोर्ट किए गए हैं, लेकिन विभिन्न सामाजिक संगठनों के दावे के अनुसार बच्चों के विरुद्ध हिंसा के मामले इन दिए गये आंकड़ों से कई गुना ज्यादा होंगे, जिसे रिपोर्ट ही नहीं किया गया है।

सकारात्मक पहल की दिशा क्या हो


यदि हम यहाँ बाल यौन शोषण विषय पर गंभीरता से फोकस करें, तो पोक्सो एक्ट को लागू किया जाना निःसंदेह सरकारी प्रयास के रुप में एक मील का पत्थर है. लेकिन, इसका प्रभावी क्रियान्वयन के लिए बाल संरक्षण तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर गौर करना शायद उपयोगी हो:

  1. गांव और समुदाय में बच्चे सुरक्षित रहे, इसके लिए जन जागरूकता एवं जनभागीदारी के प्रभावी कदम उठाये जाएँ
  2. बच्चों के विरुद्ध हिंसा के मामलों की सुनवाई के पहले, सुनवाई के दौरान एवं बाद में भी पीड़ित, गवाहों एवं उनके परिवारों के लिए मजबूत सपोर्ट सिस्टम हो एवं विभिन्न सम्बंधित विभागों में बेहतर सामंजस्य बने. साथ ही साथ, पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रभावी कदम उठाये जाएँ.
  3. बाल मैत्री तरीके अपनाने के लिए सभी सम्बंधित हितधारकों को प्रभावी रूप से प्रशिक्षित किया जाय.
  4. बाल संरक्षण तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए बजट बढाया जाय.
  5. सभी स्कूलों, संस्थानों एवं संगठनों में बाल संरक्षण नीति अनिवार्यता हो.
  6. बच्चों के विरूद्ध हिंसा के मामलों को रिपोर्ट करने के लिए इमरजेंसी नम्बर जैसे 1098 की सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक व्यापक प्रसार एवं पहुँच हो
  7. ग्राम सभा की बैठकों में समुदाय आधारित बाल संरक्षण तंत्र के लिए कार्यान्वयन योजना बनाने हेतु चर्चा एक विशेष एजेंडा के रूप अनिवार्य बनायी जानी चाहिए
    वैसे तो हिंसा से प्रभावित बच्चों की मनोदशा क्या होती होगी, इसका अंदाजा भी लगाना शायद असंभव है, खास तौर पर यौन हिंसा के शिकार बच्चे. इसलिए इस अपराध से बचाव के स्तर पर ही फोकस करना उनके हित में ज्यादा सार्थक कदम होगा. इस कार्य के लिए, सरकार और समाज द्वारा अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा, अन्यथा बाल मैत्री समाज के बारे में सोचना बेमानी ही साबित होगी.