बाबूलाल मरांडी के विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने का मामला अटका, विधायक बन्धु और प्रदीप पर चलेगा दलबदल का मामला

राँची। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के प्रतिपक्ष का नेता बनने की संभावना खत्म होती दिखायी दे रही है। विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो द्वारा बाबूलाल समेत अन्य दो विधायकों प्रदीप यादव और बंधु तिर्की पर दल-बदल मामला दर्ज करने का आदेश दिया गया है। झारखण्ड समेत देश के इतिहास को देखा जाये, तो दल-बदल मामले में फैसला जल्द नहीं आता है. मामला खींचता है और फैसला आते-आते सदन की समय सीमा समाप्त हो जाती है. इस बार भी अगर ऐसा ही हुआ, तो बाबूलाल का प्रतिपक्ष का नेता बनना संभव नहीं हो पायेगा।

पिछली बार पांच साल तक लटका मामला

झारखण्ड में चतुर्थ विधानसभा में झाविमो के पांच विधायक रणधीर सिंह, अमर बाउरी, नवीन जायसवाल, जानकी यादव, गणेश गंझू और आलोक चौरसिया भाजपा में शामिल हुए थे। झाविमो की ओर से 2014 में दल-बदल का मामला दर्ज कराया गया. विधानसभा न्यायाधिकरण में मार्च 2015 में पहली और दिसंबर 2018 को अंतिम सुनवाई हुई।विधानसभा न्यायाधिकरण ने अपना फैसला विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले 20 फरवरी 2019 को सुनाया. यानी पूरे पांच साल तक मामला लटका रहा।

भाजपा के साथ कांग्रेस पर भी संकट

सत्ता गलियारे में चर्चा है कि दल-बदल मामले को लेकर झामुमो ने एक तीर से दो शिकार किया है। भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी संकट खड़ा कर दिया गया। एक ओर जहां बाबूलाल मरांडी का मामला फंसा कर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ा कर दिया है, वहीं कांग्रेस को भी मजबूत होने से रोक दिया. क्योंकि झाविमो से दो विधायक प्रदीप यादव व बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हुए हैं. कांग्रेस के मौजूदा में 15 विधायक हैं. दो विधायकों के आने से संख्या 17 हो जायेगी। इससे कांग्रेस का सरकार पर दबाव बढ़ सकता है. उधर, भाजपा में बाबूलाल के प्रतिपक्ष का नेता होने से रोकना भी राजनीतिक चाल माना जा रहा है।

सत्ता पक्ष का असर

विधानसभा न्यायाधिकरण एक स्वतंत्र संस्था है. जिसके मुखिया विधानसभा अध्यक्ष होते हैं. विधानसभा अध्यक्ष सत्ताधारी दल के होते हैं. इसलिए आम धारना है कि सत्ता पक्ष का असर या दबाव और हित या अहित को अध्यक्ष द्वारा अनदेखा नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि न्यायाधिकरण में मामला राजनीतिक स्थिति को देखते हुए चलता है. राजनीतिक हालात को देखकर सुनवाई और फैसला लिया जाता है।अमूमन न्यायाधिकरण में मामला लंबा खींचा जाता है. क्योंकि जब तक न्यायाधीकरण में मामला चलता, तब तक इसे अदालत में भी लेकर जाना संभव नहीं हो पाता है।