Jharkhand:पूर्व सरकार में विशेष शाखा का कार्यालय अवैध नहीं था,न हीं किसी अवैध गतिविधि का संचालन की विशेष शाखा के कार्यालय से हुआ था,विधानसभा के अल्पसूचित प्रश्न काल में पूछे गए सवाल का जबाव सरकार की तरफ से दिया है

राँची।झारखण्ड के हेमन्त सरकार ने माना है कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में विशेष शाखा का कार्यालय अवैध नहीं था,न हीं किसी अवैध गतिविधि का संचालन की विशेष शाखा के कार्यालय से हुआ था।बता दें पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पर इसी कार्यालय के संचालन की बात कहकर खूब राजनीतिक हमले हुए थे।लेकिन सदन में पूछे गए प्रश्नों का सरकार ने सदन में ये जानकारी दी है।

ये प्रश्न था?
1.क्या यह बात सही है कि वर्ष 2015 से 2019 के बीच झारखण्ड पुलिस के विशेष शाखा का एक अवैध कार्यालय मुख्यालय में चल रहा था,जहाँ से एक गैर सरकारी व्यक्ति विशेष शाखा की अनधिकृत गतिविधियों संचालित कर रहा था और उसे विभाग द्वारा तमाम सुविधायें दी | जा रही थी

2.क्या यह बात सही है कि ऐसी ही गतिविधियाँ उस समय पुलिस मुख्यालय के अपराध अनुसंधान विभाग ( सीआईडी ) में भी चल रही थी ।जहाँ फोन टेपिंग एवं अन्य अनधिकृत कार्य संचालित हो रहा था।

3.क्या यह बात सही है कि 2020 में विशेष शाखा और सी.आई.डी. में चल रही अवैध गतिविधियों पर सरकार ने रोक लगा दिया। जांच में इसे सही पाया परंतु दोषियों पर अबतक कार्रवाई नहीं हुई।

4.यदि उपर्युक्त खण्डों के उत्तर स्वीकारात्मक है तो क्या सरकार पुलिस मुख्यालय में अवैध गतिविधियाँ चलाने वालों पर कार्रवाई करने का विचार रखती है हाँ तो कब तक नहीं तो क्यों ?

वहीं सरकार की ओर जो सदन में जानकारी दी गई ये है

गृह विभाग से उत्तर ये दिया गया है।

1.तत्कालीन अपर पुलिस महानिदेशक, विशेष शाखा, झारखण्ड,राँची के द्वारा माह नवंबर 2017 एवं माह जनवरी 2018 में सचिव, भवन निर्माण विभाग, झारखण्ड सरकार से लिखित अनुरोध कर विशेष शाखा के कार्य हेतु दो सरकारी भवन माह फरवरी -2018 को आवंटित कराये गये थे। जिसमें से एक इमारत में विशेष शाखा का कार्यालय चल रहा था और दूसरे भवन में एक गैर सरकारी व्यक्ति आवास था।किसी गैर सरकारी व्यक्ति द्वारा विशेष शाखा की अनाधिकृत गतिविधियों संचालित किए जाने के संबंध में कोई प्रमाण अभी तक सामने नहीं आया है।उक्त गैर सरकारी व्यक्ति के द्वारा कुछ सरकारी सुविधाओं का उपयोग किए जाने के संबंध में कुछ तथ्य सामने आये हैं। जिनकी समीक्षा पुलिस विभाग द्वारा की जा रही है।

2.इस संबंध में डोरण्डा थाना काण्ड संख्या-189/ 20 दिनांक -18.07.2020 दर्ज किया गया है।जो अनुसंधान के अंतर्गत है।

3.विशेष शाखा में अवैध गतिविधि की कोई सूचना नहीं है। इस संबंध में अपराध अनुसंधान विभाग, झारखण्ड, राँची के द्वारा डोरण्डा थाना काण्ड संख्या -189 / 20। दिनांक 18.07.2020 धारा -166 / 167/418/120 बी भादवि का अनुसंधान किया जा रहा है। यह काण्ड वर्तमान में अनुसंधान के अंतर्गत है।

4.उपरोक्त कंडिकाओं में वस्तु स्थिति स्पष्ट कर दिया गया है।

विधानसभा के अल्पसूचित प्रश्न काल में पूछे गए सवाल का जबाव सरकार की तरफ से दिया है।गृह विभाग की तरफ से ये तो कहा गया है कि स्पेशल ब्रांच के लिए दो कार्यालय काम कर रहे थे. एक कार्यालय में कोई गैर-सरकारी शख्स रह रहा था।बता दें विधानसभा में विधायक सरयू राय द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दिया गया।

बता दें इस मामले में बहुत राजनीति हुई है।और हो ही रहा है।पिछली सरकार को नीचा दिखाने के लिए बहुत राजनीति हुई।आखिर सच्चाई वर्तमान सरकार ने बता दिया है।आगे आगे देखिए और कई सच्चाई सामने आएगी।

राजनीति और पुलिस

आज की तारीख़ से थोड़ा पीछे चलते हैं। दिसंबर 2019 में। झारखण्ड में रघुुुवर दास सरकार का पतन हो चुका है। हेमंत सोरेन की ताजपोशी होनी है, बतौर मुख्यमंत्री। चुनावी परिणाम को रघुवर दास के राजनीतिक अहंकार और हेमंत सोरेन की सहजता के तौर पर लिया जाता है। चुनाव हार चुके रघुवर दास पर राजनीतिक हमलों का सिलसिला शुरू होता है। रघुवर दास को चुनाव में पटखनी देने वाले सरयू राय आरोप लगाते हैं कि प्रोजेक्ट भवन और सीआईडी मुख्यालय में पुरानी फाइलें जलाई जा रही हैं। प्रोजेक्ट भवन में पूरे मामले की जांच करने कोई अधिकारी नहीं जाता। लेकिन डीजी स्तर के एक अधिकारी सीआईडी मुख्यालय आते है। सीआईडी में तब छूटी में रहे एडीजी के कमरे तक वह जाते हैं जांच करते हैं। फ़ाइल जलने- गड़बड़ियों का कोई सबूत नहीं मिलता। लेकिन झारखंड पुलिस में राजनीति और राजनीतिक इस्तेमाल के नए चैप्टर की शुरुआत हो चुकी थी।

विशेष शाखा का दफ्तर और सीआईडी की फोन टैपिंग पर भी राजनीति

2020 के मार्च का महीना था। झारखण्ड में पुलिस प्रमुख के तौर पर एक प्रभारी अधिकारी को जिम्मेदारी मिल चुकी थी। इसीबीच एक चिट्ठी फिर राजनीतिक माहौल के साथ साथ अफसरों की लॉबी में खलबली मचा देती हैं। इस बार आरोप ज्यादा सनसनीखेज था। आरोप था कि स्पेशल ब्रांच यानी कि विशेष शाखा के द्वारा जासूसी के लिए एक अवैध कार्यालय चलाया जा रहा। विधायक ने आरोप लगाया कि उनकी जासूसी होती थी। फोन भी टैप किये जाते थे। आरोपो की जांच के लिए तत्कालीन प्रभारी डीजीपी से निवेदन किया गया था। जांच भी शुरू होती है। सीआईडी जांच में पाया जाता है कि किसी राजनीतिज्ञ का फोन कभी टैप नहीं हुआ था। पुलिस के तीन लोगों के फोन टैप हुए थे। जिसमे एक थानेदार, एक जमादार और स्पेशल ब्रांच का ही एक सिपाही था। मामले में डोरंडा थाने में एफआईआर भी दर्ज की जाती है। बाद में यह केस भी सीआईडी को ट्रांसफर होता है।