झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल का एक अनुभव शेयर किया है,क्या है अनुभव पढें…

राँची।झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की आज दो ट्विट हिट हो रही हैं, चर्चा में हैं,एक तो वो जो अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान जो उन्होंने उग्रवादियों को लेकर राज्य के एक बड़े अधिकारी से उनकी बातचीत हुई थी,और उस बातचीत में जो राज्य के एक बड़े अधिकारी ने जो विनम्रता से बात कहकर उन लोगों के खिलाफ चल रही कार्रवाई को सही ठहराया, जिस पर कार्रवाई न हो, इसके लिए पैरवी हो रही थी।

हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने उस अधिकारी और जिनके कहने पर पैरवी हो रही थी, उसके नाम की चर्चा उन्होंने ट्विट में नहीं की हैं, पर इतना बता दिया कि एक मुख्यमंत्री और एक अधिकारी के लिए क्या करना सही हैं और क्या करना गलत? अब आप स्वयं देखिये, राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के शब्दों में…

“अपने मुख्यमंत्रित्व काल का एक अनुभव शेयर कर रहा हूँ। उग्रवादियों का उत्पात चरम पर था। मेरी योजना ज़्यादा से ज़्यादा उग्रवादियों, उनके सहयोगियों को मुख्यधारा में वापस लाने की थी। आदिवासी बाहुल्य एक जिले में कुछ उग्रवादियों को लाजिस्टिक सपोर्ट देने वालों के पीछे पुलिस हाथ धोकर पड़ी हुई थी। मैंने वहाँ के एक सीनियर पदाधिकारी को बुलाकर कर कहा कि उन्हें मुख्यधारा में लाना चाहता हूँ। थोड़ा रहम करिये उनपर। वो अधिकारी रो पड़े और कहा कि “सर ये लोग भारी बदमाश हैं। मेरे से तो ये नहीं होगा। आप चाहें तो मुझे वहाँ से हटा दीजिये।” मैं ने तुरंत अपनी बात वापस ली और उन्हें कहा कि बेहिचक अपनी कार्रवाई जारी रखिये। आज भी उन्हें देखता हूँ तो मुझे उनकी बात याद आ जाती है और मैं उन्हें सम्मान से ही देखता हूँ। संयोगवश वो अफ़सर भी आदिवासी समाज से ही थे।

लेकिन मैंने पद के गोपनीयता की शपथ ली थी, इसलिये उनका नाम उजागर नहीं करूँगा। ठीक इसके उलट कुछ नये अफ़सरों के भी क़ानून से अलग सत्ता के इशारे चंद पैसे और महत्वपूर्ण पद के लालच में ग़लत काम करने की करतूत सुनता हूँ तो शर्म आती है और आश्चर्य होता है। हेमंत सरकार के इशारे पर हर ग़लत काम करने वाले ऐसे कुछ अफ़सर आजकल परेशानी में अपने-अपने सम्पर्कों के ज़रिये मिलते हैं, मिलने का प्रयास करते हैं।

उन्हें अपने किये का भय है कि न जाने कब उनकी गर्दन दबोचा जाय? ऐसे लोग अपनी सफ़ाई देते जब बताते हैं कि उनसे दवाब देकर कैसे ग़लत करा लिया गया तो सुनकर हैरानी होती है। ऐसे लोग जब कहते हैं कि उनके जान पर बन जायेगी तो मजबूरी में सारे पोल-पट्टी खोलना ही पड़ेगा। मुझे लालू प्रसाद जी का वो ज़माना याद आ रहा है जब चारा चोरी में उनके सहयोगी अफ़सर, दलाल, सप्लायर खुद जेल जाने लगे तो वो सब खुद भी डूबे और लालू जी को भी ऐसा डुबोये कि आज इतिहास बन गया है।

सोचता हूँ कि पिछली ग़लतियों का उदाहरण सामने होने के बाद भी आख़िर कोई अफ़सर/नेता लालच में कैसे अपना पूरा कैरियर दांव पर लगाने के बारे में सोच लेता है? मैं व्यूरोक्रेसी से पुनः विनम्र आग्रह करता हूँ कि इतिहास के पन्ने पलट कर देखें और सोचें कि ग़लत का अंजाम अंत में क्या होता है?”

और अब दूसरा टिव्ट जो अमित अग्रवाल से संबंधित है, जिसको लेकर हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिये। उस पर भी नजर डाल ही लीजिये…

“झारखण्ड सत्ता के दलालों का सरग़ना व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिये काले धन का संग्रह, इनवेस्टमेंट कर काला-उजला बनाने वाले सबसे बड़े धंधेबाज़ अमित अग्रवाल को हाईकोर्ट द्वारा ज़मानत न देने एवं मामले की सीबीआई जाँच का आदेश देने से यह प्रमाणित हुआ कि क़ानून से उपर कोई नहीं है।”