बड़ी खबर:सरकार को हाइकोर्ट से लगा झटका,शेल कंपनी-खनन पट्टा मामले में हाइकोर्ट ने स्वीकार की जनहित याचिका,मेंटेनबिलिटी पर सरकार की दलिलें खारिज

राँची।झारखण्ड हाईकोर्ट ने  शेल कंपनियों में इन्वेस्टमेंट की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर फैसला सुनाया है।अदालत ने जनहित याचिका को स्वीकार कर लिया है। साथ ही मेंटेनबिलिटी की बिंदु पर सरकार द्वारा दी गई दलिलों को खारिज कर दिया है।बता दें कि इस जनहित याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में हुई है।इस मामले में राज्य सरकार, शिवशंकर शर्मा, मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन और ईडी पक्षकार हैं।सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद बुधवार को अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
 

हाईकोर्ट ने शिव शंकर शर्मा की दो रिट याचिकाओं के मेंटेनेबिलिटी पर शुक्रवार को फैसला सुनाया।मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने कहा कि शिव शंकर शर्मा की दोनों याचिकाएं सुनवाई के लिए योग्य हैं, यानी मेंटेनेबल हैं।अब दोनों याचिकाओं की मेरिट पर 10 जून को बहस होगी।इधर महाधिवक्ता राजिव रंजन ने कहा कि आज की सुनवाई के आर्डर देखने के बाद ही हम सरकार का पक्ष रख पाएंगे। इसलिए खंडपीठ में 10 जून को सुनवाई होगी

बता दें शिव शंकर शर्मा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम से राँची के अनगड़ा में स्टोन माइंस आवंटित कराया है, जो मुख्यमंत्री और खान मंत्री रहते हुए पदों का दुरुपयोग कर किया गया है।इसके अलावा शेल कंपनियों में राज्य से होनेवाले अवैध खनन कारोबार से जुड़े ट्रांजैक्शन से संबंधित है।इस शेल कंपनियों का संबंध रवि केजरीवाल और उनके सहयोगियों से है।इन शेल कंपनियों में राज्य के सत्ता पर बैठे लोगों की सहभागिता है हाईकोर्ट में इन दोनों याचिका 727/2022 और 4290/ 2021 की मेंटेनेबिलिटी पर 24 मई से लेकर एक जून को हियरिंग हुई थी। इस दौरान सरकार की तरफ से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल औऱ् मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पक्षकार मुकूल रोहतगी ने दलील के दौरान कहा कि दोनों याचिकाएं मेंटेनेबल नहीं हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि हम दलीलें सुनने और दोनों पक्षों की बहस के लिए यहां नहीं बैठे हैं। हमें लगता है कि 4290/2021 में मामला सुनवाई योग्य है।इसलिए हम अपना फैसला खुद करेंगे। इस पर सोलिसीटर जनरल ऑफ इंडिया ने कहा था कि जब कोई राष्ट्रीय जांच एजेंसी किसी मामले पर अपना हलफनामा दर्ज कर रही है, तो उस मामले की विश्वसनीयता को नकारा नहीं जा सकता है।

जबकि ईडी और याचिकाकर्ता का कहना है कि शेल कंपनियों के जरिए मनी लांड्रिंग हुई है।अवैध संपत्ति अर्जित करने वालों की जांच से सरकार को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।अगर जनहित याचिका दाखिल करने में नियमों का पालन नहीं किया हुआ है, तो इसका सहारा लेकर न्याय का रास्ता नहीं रोका जा सकता है।