अमर शहीद नीलांबर पितांबर के वंशज गरीबी में कर रहे हैं जीवन यापन

अमित कुमार सिंह, भंडरिया : भारत के स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद नीलांबर-पीतांबर के वंशज गरीबी और मुफलिसी में जी रहे हैं। गरीबी का आलम यह है कि पैसे के अभाव में इलाज कराना मुश्किल है। फिलहाल अमर शहीद नीलांबर पीतांबर के वंशज देवनाथ सिंह इलाज के अभाव में बिस्तर में पड़े हैं। उन्हें लकवा का अटैक हुआ है, किंतु पैसे के अभाव में वे समुचित इलाज नहीं करा पा रहे।

बताते चलें कि गढ़वा जिला के भंडरिया प्रखंड स्थित सनेया गांव के वीर सपूत निलाम्बर-पिताम्बर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। स्वतंत्रता संग्राम में इन दोनों भाईयों के नेतृत्व में अंग्रेजों को इस क्षेत्र में कड़ी टक्कर दी गई थी। छापामारी युद्ध कौशल में निपुण दोनों भाईयों से अंग्रेजी हुकूमत त्राहिमाम थी। जिसके बाद अंग्रेज अधिकारी ने धोखे से बुलाकर इन्हें गिरफ्तार कर पलामू के लेस्लीगंज में फांसी पर लटका दिया था।


आज भी पलामू प्रमंडल के कई क्षेत्रों में इनका शहादत दिवस मनाया जाता है। उनके कई वंशज आज भी सनेया गांव में रहते हैं। देवनाथ सिंह उनमें से एक हैं। देवनाथ सिंह की मानें तो सभी प्रशासनिक कार्यक्रमों में शहीदों के सम्मान को दिखाने के लिए उन्हें बुलाकर सम्मानित करने का काम प्रशासन के द्वारा हमेशा होता रहा है। किंतु कार्यक्रम समाप्त होते ही प्रशासन के अधिकारी उनकी कोई सुधि नहीं लेते।
बकौल देवनाथ सिंह वर्तमान में वे लकवा से ग्रस्त हैं, और अपने एक रिश्तेदार पनबरस सिंह के घर ग्राम बंजारी में रहकर छत्तीसगढ़ से इलाज करा रहे हैं।


देवनाथ सिंह के पुत्र हरिचरण सिंह ने गढ़वा जिला प्रशासन पर शहीद के वंशजों का उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों के नाम पर एक तरफ विश्वविद्यालय संचालित किया जा रहा है, दूसरी तरफ हम इलाज के लिए पैसा नहीं जुटा पा रहे हैं। हम लोग काफी परेशान हैं, किंतु प्रशासन का कोई व्यक्ति नही कोई जनप्रतिनिधि हमारी सुध ले रहे हैं।


जब आवश्यकता पड़ती है तब लोग घर से उठाकर ले आते हैं, धोती देते हैं पगड़ी पहनाते हैं, और काम निकल जाने पर कोई हाल-चाल भी नहीं पूछने आता। पिताजी को लकवा मार गया है पर पैसे के अभाव में हम समुचित इलाज नहीं करा पा रहे हैं। जमीन गिरवी रखना चाहें तो गांव के लोगों के पास पैसा नहीं है। जमीन बेचना चाहें तो गांव तक सड़क नहीं है इस कारण कोई जमीन नहीं खरीदता। गरीबी में जैसे तैसे इलाज चल रहा है। मेरे पिताजी को प्रशासनिक सहयोग मिले तो वे ठीक हो सकते हैं। अगर जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों का यही हाल रहा तो किसी भी सार्वजनिक प्रशासनिक कार्यक्रम में हमारे परिवार का कोई सदस्य शामिल नही होगा।