गर्व: शिक्षक दिवस के मौके पर झारखण्ड के तीन शिक्षकों को राष्ट्रपति से मिला नेशनल अवार्ड

झारखण्ड के तीन शिक्षकों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिक्षक दिवस पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया सम्मानित

राष्ट्रपति से पुरस्कार पाने वालों में जमशेदपुर, बोकारो की शिक्षका, जबकि सिमडेगा के शिक्षक रहे शामिल

शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए झारखंड के तीन शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से नवाजा। सम्मानित होने वाले शिक्षकों में बोकारो की डॉक्टर निरुपमा कुमारी, जमशेदपुर की इशिता डे और सिमडेगा के स्मिथ कुमार सोनी हैं।

डॉ निरुपमा की लगातार कुछ नया करने की कोशिश होती है। 39 साल की डॉ. निरुपमा बोकारो के उपशहर चास में रामरुद्र प्लस टू उच्च विद्यालय में हिन्दी की टीचर हैं। उन्हें बच्चों को पढ़ाते हुए 13 साल हो गए हैं। निरुपमा की खास बात यह है कि वह बच्चों को इनोवेटिव आइडियाज के जरिए पढ़ाती हैं। वह लगातार कुछ नया करने की कोशिश में रहती है। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि लगातार कई साल से स्कूल में हिन्दी का रिजल्ट 90 फीसदी से ऊपर रहा है।

पुरस्कार मिलने के बाद निरुपमा ने बताया कि एक शिक्षक के लिए सबसे बड़ा सपना होता है कि उसे यह सर्वोच्च शिक्षक सम्मान मिले। इसके लिए उन्हें प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने पुरस्कार का श्रेय अपने शिक्षकों, मार्गदर्शकों के साथ-साथ विद्यार्थियों को दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों ने ही उन्हें एक सफल शिक्षक बनाया।

डॉ. निरुपमा ने बताया कि इस बार राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन थी। इसमें उन्होंने ऑनलाइन ही फॉर्म भरा था। राष्ट्रीय स्तर पर उनका प्रेजेंटेशन 11 तारीख को था। प्रेजेंटेशन में उन्होंने अभी तक विविध क्षेत्रों में किए गए अपने कार्यों के बारे में बताया था। खास तौर से भाषा के क्षेत्र में आईटी के उपयोग कर बच्चों के लिए अध्यापन को सहज बनाना उनकी पहल थी।

इसके साथ-साथ शिक्षण में अभिनव प्रयोग, ई-कंटेंट के निर्माण, वेबसाइट के जरिए अध्यापन और कोरोना महामारी के दौर में महत्वपूर्ण कार्यों की चर्चा भी उन्होंने अपने प्रस्तुतीकरण में की। निर्णायक मंडली ने उनके प्रयासों को सराहा और अंतत: वह नेशनल टीचर अवार्ड के लिए चयनित हुईं।

भाषाई परेशानी के आधार पर छात्रों को किया कैटेगराइज

डॉ. निरुपमा ने बताया कि भाषाई परेशानी दूर कर बच्चों को सहजता के साथ तकनीकी साधन के जरिए पढ़ाना सबसे अहम है। बंगाली, कुड़माली और खोरठा भाषा-भाषी बच्चों को हिंदी पढ़ने में काफी दिक्कतें आती थीं। उन्हें वह वर्गीकृत कर उन पर खास ध्यान देती थीं। तेज, मध्यम स्तरीय और कमजोर बच्चों को अलग-अलग समूह में बैठाकर वह पढ़ाती रही हैं।

यही नहीं, कक्षा में बच्चों को बैठाने का तरीका भी उनका अलग रहा है। वह बच्चों को गोलाकार तरीके के बैठाकर उनकी हर गतिविधियों पर नजर रखते हुए पढ़ाया करती रही हैं। बच्चों के लिए वह खास तौर से छोटी-छोटी वर्कशीट बनाती रही हैं, जिससे सही तरीके से पाठ याद रख पाते थे।

पति सहित सभी परिजनों ने निभाया साथ

डॉ. निरुपमा ने कहा कि उन्हें इस मुकाम तक लाने में उनके परिजनों, गुरुजनों का सहयोग रहा है। शेयर व्यवसाय से जुड़े पति सुनील आनंद झा ने उनका हमेशा ही हर कदम पर सहयोग किया। डॉ. निरुपमा ने बीए तक की शिक्षा मधुबनी, बीएड आरआईई भुवनेश्वर, एमए इग्नू और पीएचडी दरभंगा से की है। उनकी पहली नियुक्ति होलीक्रॉस घाटो में हुई थी। उसके बाद तीन साल तक तक बिहार में नियोजित शिक्षिका के रूप में कार्यरत थीं। पिछले 10 वर्षों से रामरुद्र प्लस टू उच्च विद्यालय बोकारो में वह कार्यरत हैं।

इशिता डे पुरस्कार की राशि से गरीब बच्चों की मदद करेंगी
जमशेदपुर की इशिता डे को भी इस साल का राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार मिला। उन्होंने बताया- पहली बार मैंने राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए आवेदन दिया था और चयनित भी हो गई। मुझे 17 वर्ष शिक्षण का अनुभव है। एक समय ऐसा भी आया जब 2 वर्ष एमएनपीएस में पढ़ाने के बाद 1999 के बाद 6 वर्ष के लिए टीचिंग से दूर रही। शादी के 6 वर्ष बाद मैं सबसे पसंदीदा काम से दूर रही। पति के सहयोग के बाद 2005 में फिर से पढ़ाना शुरू किया। पुरस्कार से मिली राशि के एक हिस्से को मैं स्कूल को सहयोग करूंगी। स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को मदद करूंगी।

इशिता ने कहा- मैं तारापोर स्कूल में 15 वर्षों से पढ़ा रही हूं। 2011 से बतौर वाइस प्रिंसिपल कार्यरत हूं। पढ़ाना व बच्चों के बीच रहना मुझे खूब पसंद है। मैं 12वीं के बच्चों को इकोनॉमिक्स व 10वीं के बच्चों को भूगोल पढ़ाती हूं। घरवालों, प्रिंसिपल व शिक्षकों की मदद से मैं आगे बढ़ पाई। इस पुरस्कार के पीछे सभी की मदद शामिल है। इशिता ने बताया कि मुझे पढ़ना-पढ़ाना पसंद है। पिता के कहने पर मैं शिक्षण से जुड़ी। पति व घर से काफी सपोर्ट मिला। स्कूल के शिक्षक व प्रिंसिपल ने काफी मदद की।

स्मित ने पलट दी स्कूल की काया

करीब तीन वर्ष पहले बानो का प्रोजेक्ट विद्यालय मरणासन्न स्थिति में था। एक भी शिक्षक नहीं थे। तब मध्य विद्यालय बानो के उत्साही शिक्षक स्मिथ कुमार सोनी को इस विद्यालय की जिम्मेदारी मिली थी। साल भर में ही शिक्षक स्मिथ ने प्रोजेक्ट विद्यालय का कायापलट कर दिया। बच्चियों का रिजल्ट शत प्रतिशत रहा। ऐसी ही अनेक उपलब्धि को समेटे सिमडेगा के शिक्षक स्मिथ कुमार सोनी राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुने गए।

मूल रूप से गुमला जिले के बसिया निवासी स्मिथ ने अम्बा टोली कोलेबिरा स्कूल से शिक्षण की शुरुआत 1994 में की थी। उनके साथ ही ज्वाइन करने वाले साथी शिक्षक श्यामसुंदर सिंह के अनुसार स्मिथ शुरू से ही अपना हर काम परफेक्ट करने के लिए पूरी ताकत झोंकने वाले रहे। बच्चों को पढ़ाने और उनका सर्वांगीण विकास करने के लिए उनका समर्पण सदा ही बाकी शिक्षकों के लिए अनुकरणीय रहा। वे बसिया, शहर के घोचोटोली और वर्तमान में बानो के मध्य विद्यालय में पदस्थापित हैं।

सरकार ने उनकी लगन, सेवा समर्पण और उनके आइडियाज को देखते हुए राज्यस्तरीय परिवर्तन दल में भी शामिल किया था। उनके कई सुझाव शिक्षा सुधार में अपनाए गए। उनके विद्यालय ने हमेशा ही स्वच्छता के लिए पुरस्कार जीता। रिजल्ट में भी स्मिथ का स्कूल अग्रणी रहा और जिला तथा राज्य स्तर पर कई बार उनको पुरस्कार के लिए चुना जा चुका है।