#jharkhand:सरकार की अच्छी पहल,ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य के किसी जिले का जिम्मा किसी दृष्टिबाधित अफसर को दिया गया है।

राँची।झारखण्ड सरकार ने मंगलवार को 18 प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला किया है।इसमें अधिकतर को जिलों का डीसी बनाया गया है। लेकिन इन तबादले के बीच सबसे ज्यादा चर्चा बोकारो के नवनियुक्त डीसी की हो रही है।सरकार के आदेश के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राजेश सिंह को यहां का डीसी बनाया गया है।लेकिन यह जानकार सभी को आश्चर्य होगा कि आइएएस अधिकारी राजेश सिंह दृष्टिबाधित हैं।इससे पहले राजेश सिंह उच्च शिक्षा विभाग में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थे। ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य के किसी जिले का जिम्मा किसी दृष्टिबाधित अफसर को दिया गया है।

पटना के धनरूआ के रहने वाले दृष्टिबाधित राजेश कुमार सिंह के आइएएस बनने के बाद भी तमाम अड़चनें आयीं थी, पर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उन्होंने आइएएस बनने में सफलता हासिल की थी।
बताया जा रहा है 2007 में यूपीएससी पास की, कानूनी लडाई के बाद 2011 में बने आइएएस।दृष्टिबाधित आइएएस अफसर राजेश सिंह ने वर्ष 2007 में सिविल सेवा की परीक्षा पास की थी. ऐसा कर वे देश के पहले दृष्टिबाधित आइएएस बने. हालांकि उनकी नियुक्ति 2011 में हो पायी।इसके लिए उन्होंने एक बड़ी कानूनी लड़ाई भी लड़ी।
जानकार बताते हैं कि बचपन में ही क्रिकेट खेलते के दौरान हुए एक हादसे में राजेश के आंखों की रोशनी चली गयी थी. इसके बाद उन्होंने देश के जाने-माने संस्थान दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू से पढ़ाई पूरी की।बाद में वह यूपीएससी की परीक्षा पास कर आइएएस बने. लेकिन दृष्टिबाधित होने के कारण उनकी नियुक्ति का विरोध किया जाता रहा. इसके लिए उन्होंने कानूनी लड़ाई का सहारा लिया. अंत में उन्हें अपने परिश्रम की जीत मिली. वे 2011 में आइएएस अफसर बने।

तत्कालीन पीएम डॉ मनमोहन सिंह से मिलने के बाद गये थे सुप्रीम कोर्ट

मीडिया को दिये एक इंटरव्यू में बोकारो के नये डीसी ने बताया था कि बचपन में क्रिकेट खेलते हुए एक हादसे में उनकी आंखों की रोशनी चली गयी थी. इसके बावजूद उन्होंने देहरादून मॉडल स्कूल, दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू से पढ़ाई की. फिर यूपीएससी की परीक्षा पास कर आइएएस बने।लेकिन नेत्रहीन होने की वजह से सरकार ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया।राजेश सिंह के मुताबिक, इसी दौरान उनकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की बेटी डॉ उपेंद्र सिंह से हुई. वे सेंट स्टीफंस कॉलेज मे पढ़ाती थीं और उन्होंने राजेश सिंह को प्रधानमंत्री से मिलवाया।इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट गये, उनके मामले की सुनवाई तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर और अभिजीत पटनायक के बेंच ने की। कोर्ट ने सरकार को राजेश सिंह की नियुक्ति करने का निर्देश दिया. साथ ही अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि आइएएस के लिए दृष्टि नहीं दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है। इसके बाद राजेश सिंह को झारखण्ड कैडर मिला।

संघर्ष की कहानी पर लिखी है किताब

राजेश 1998, 2002 और 2006 में दिव्यांगों के लिए आयोजित विश्व कप क्रिकेट में भारतीय क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। राजेश ने लगभग आठ महीने की कड़ी मेहनत से अपने संघर्ष की कहानी ‘पुटिंग आइ इन आइएएस’ नामक पुस्तक भी लिखी है, जिसका विमोचन तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 2017 में किया था।

क्रिकेट खेलते हुए ही रोशनी खोई थी

राजेश के जीवन संघर्ष की बात करें तो बचपन से ही क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी रही है। जब वे छह साल के थे, क्रिकेट बॉल को कैच करने की कड़ी में कुएं में गिर पड़े और सदा के लिए आंखों की रोशनी खो दी। अब उनकी आंखें महज दस फीसद काम करती हैं। बकौल राजेश, रोशनी खोने का गम जरूर है, परंतु दृष्टि से अधिक महत्व दृष्टिकोण का होता है और इसी के बूते उन्होंने यहां तक की यात्रा तय की है। देहरादून मॉडल स्कूल से 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले राजेश ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में पीजी की परीक्षा पास की और तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा के लिए चयनित हुए।