जमीन माफिया अब सांस्कृतिक धरोहर टैगोर हिल की पहचान मिटाने की कोशिश में लगा है

राजधानी राँची में झारखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर टैगोर हिल की पहचान मिटाने की कोशिश शुरू हो गयी है। जमीन माफिया ने इस विशेष स्थान को अपने निशाने पर ले लिया है।टैगोर हिल के पहाड़ को काटकर उस पर अवैध तरीके से मकान बनाये जा रहे हैं। हरे रंग की चादर से पहाड़ को घेरकर उसे समतल किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार, जमींदार हरिहर सिंह से टैगोर हिल के लिए मिली 15.80 एकड़ जमीन में से 14 कट्ठा में लगे पेड़ों को माफिया पूरी तरह काट चुके हैं और अब धीरे-धीरे पहाड़ काट रहे हैं। अब तक आठ फीट पहाड़ काट चुके हैं। इस खेल में राँची के एक पूर्व सांसद के पुत्रों के शामिल रहने की बात सामने आयी है।

जानकारी के बाद भी प्रशासन बना हुआ है अनजान

वर्ष 2015 में तत्कालीन डीसी ने टैगोर हिल की भूमि के स्वामित्व के संबंध में पर्यटन विभाग को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था।इसमें स्पष्ट किया गया था कि पंजी टू टैगोर हिल के रूम में मिली जमीन का कोई उत्तराधिकारी नहीं है। लगान भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में कोई उत्तरधिकारी संपुष्ट नहीं होता है जमींदारी रैयती की मान्यता सरकार द्वारा नहीं दी गयी है. इसके बावजूद अब भू माफिया इस पर कब्जा शुरू कर चुके हैं। पहाड़ काटे जाने की जानकारी जिला प्रशासन को भी दी गयी है, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पहाड़ को काटने का काम अनवरत जारी है।

111 वर्ष पुराना है इतिहास

मोरहाबादी स्थित टैगोर हिल का ब्रह्म मंदिर 111 वर्ष पुराना है। 14 अप्रैल 1910 को इस मंदिर की स्थापना ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर ने की थी। यह धरोहर विश्वभर में फैले टैगोर प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता से वर्ष 1910 में प्रकाशित पत्रिका तत्यबोधिनी के अनुसार 14 जुलाई 1910 का दिन इस निराकार ब्रह्म मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का दिन है।इस दिन स्वामी अच्युतानंद मिश्रा ने ब्रह्म मंदिर के आचार्य का पद ग्रहण किया था. इस पत्रिका में उल्लेख है कि ब्रह्म समाज के पंडित प्रियनाथ शास्त्री ने अर्चनापूर्वक बेदी ग्रहण की थी।

ब्रह्म समाज, आर्य समाज और हिंदू समाज के 80 से ज्यादा प्रबुद्ध लोगों ने मंदिर की प्रतिष्ठा में योगदान दिया था। ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1925 में यहां अंतिम सांस ली। प्राकृतिक सौंदर्य व आदिम संस्कृति संरक्षण संस्थान के अध्यक्ष अजय कुमार जैन ने बताया कि ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर वर्ष 1884 में राँची आये. 23 अक्टूबर 1908 को मोरहाबादी आने के बाद यहां के जमींदार हरिहर सिंह से 17.55 एकड़ जमीन (कहीं 15.80 एकड़ का जिक्र भी है) बंदोबस्त करायी और मंदिर का निर्माण कराया। बाद में राज्य सरकार ने इसे धरोहर घोषित कर इसके सौंदर्यीकरण का ऐलान भी किया।

टूटकर गिर रहा है ब्रह्म मंदिर

एक तरफ टैगोर हिल को काटकर इस पर कब्जे का खेल चल रहा है, दूसरी तरफ इसका आकर्षण ब्रह्म मंदिर टूट कर गिर रहा है. शीर्ष गुंबद दरक रहा है और कई जगह से टूटने भी लगा है. गुंबद की डिजाइन कई जगह से टूटकर नीचे गिर रही है. गुंबद के खंभों में दरारें आ गयी है. ब्रह्म मंदिर के ऊपर झाड़ियां उग गयी हैं।

ओपेन अखड़ा बनाना चाहते थे राम दयाल मुंडा

पद्मश्री स्वर्गीय रामदयाल मुंडा टैगोर हिल पर ओपेन अखड़ा का निर्माण कराना चाहते थे, जिससे वहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो सके. स्वर्गीय रामदयाल मुंडा के पुत्र गुंजल इकिर मुंडा ने बताया कि टैगोर हिल धरोहर है। वहां ओपेन थियेटर होने से लोक कलाकारों को मंच मिल सकता है।इसके लिए फंड भी आवंटित हुआ था, लेकिन उससे कुछ ही कार्य हुए. ओपेन अखड़ा का सपना अभी भी अधूरा है।
रिपोर्ट:प्रभात खबर के सौजन्य से..