#कोरोना काल में इंसानियत भी कोरोना की तरह होते जा रहा है,समय पर पड़ोसी साथ देने के बजाय दरबाजा बन्द कर लेते हैं,ऐसे ही फिर इंसानियत शर्मसार हुई…

कोरोना काल में इंसानियत भी शर्मसार हो रही है।कोरोना का डर इस कदर हावी है कि धनबाद में एक अर्थी को कंधा देने के लिए चार लोग नहीं मिले।वाकया धनबाद के बलियापुर का है।जहां एक 72 वर्षीय महिला की मौत हो गई, लेकिन कोरोना की वजह से कोई सामने नहीं आया और ना ही किसी ने शव को हाथ लगाया।

धनबाद।कोरोना वायरस इंसान के दिल और दिमाग इस कदर हावी है कि इंसान अपनी इंसानियत से दूर होता जा रहा है।जहां लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो ढंग से हो नहीं रहा है।लोगों के द्वारा नियमों के धज्जियाँ उड़ाने के कारण हैं महामारी ने भयानक रूप लिया है।जिससे हर दिन राज्य और देश में हजारों लोग कोरोना से पीड़ित हो रहे है।वहीं लोग इंसानियत भी खोते जा रहे हैं ऐसे कई उदाहरण कोरोना काल मे दिखा है।वहीं ,सामाजिक कार्य और दूसरों की मदद से लोगों ने जरूर दूरी बना ली है।धनबाद के बलियापुर का कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है।जहां बलियापुर बाजार के बगल की बस्ती में रहने वाली 72 वर्षीय मिठारी महताइन की मौत हो गई।मौत घर में हुई थी तो उसके पुत्र ने पड़ोसियों और दूसरे लोगों का इंतजार किया कि साथ मिलकर अर्थी को कंधा मिलेगा।लेकिन ऐसा हुआ नहीं कोरोना के डर से लोग अपने घरों से निकले ही नहीं आखिर में इंतजार करते-करते पुत्र ने अपनी मां के शव को ठेला में लादकर श्मशान घाट ले गया और वहीं अपनी मां को अंतिम विदाई दी।

महिला की सामान्य हुई थी मौत

72 वर्षीय मिठारी महताइन की मौत सामान्य थी।परिजनों ने कोरोना से इनकार किया है।बता दें कि मृतका के पति की पहले ही मौत हो चुकी है।वो अपने एक बेटे के साथ रहती थी, जबकि दूसरा बेटा बाहर रहकर काम करता है. मौत के वक्त मिठारी महताइन अपने एक पुत्र के साथ घर में ही थी।आसपास के लोगों की इस कारस्तानी मृतका का पुत्र काफी दुखी है।क्योंकि वो अपनी मां की अर्थी के लिए 4 लोग भी नहीं जुटा पाया।लोगों की इस हरकत से पुत्र ने यही कहा काश माता की कोरोना से मौत हो जाती ताकि प्रसाशन के चार लोग तो जरूर रहते माँ के अंतिम संस्कार के लिए।पुत्र के पास कोई उपाय भी तो नहीं था,माँ का शव ठेले में ले जाने के सिवाय।

कोरोना को मात देना है तो इंसानियत को जिंदा रखना बहुत जरूरी है।पड़ोसी आखिर पड़ोसी है,आज न कल कोरोना वायरस जाएगा ही लेकिन इंसानियत कभी नहीं जाता है सदा इंसान के साथ चलता रहता है।