राँची:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मुख्य चिकित्सक व यूएस पॉलिक्लिनिक के निदेशक डॉ. यूएस वर्मा का नाम झारखंड व चिकित्सा सेवा जगत में कोई अनजान नही…

डॉ यूएस वर्मा दुबई में लहरायेंगे होमियोपैथ के क्षेत्र में झारखंड का झंडा
• 15 से 21 दिसम्बर तक बेहतर चिकित्सा सेवा की जानकारी देंगे
• खुद के फार्मूले से तैयार किये गये होमियोपैथ की 120 दवाएं
• पुराने व असाध्य रोगों का अचूक इलाज
• ऑपरेशन व चीर-फाड पर विश्वास नहीं

डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो

राँची:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मुख्य चिकित्सक व यूएस पॉलिक्लिनिक के निदेशक डॉ. यूएस वर्मा का नाम झारखंड व चिकित्सा सेवा जगत में कोई अनजान नही है। बैंकॉक में चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में डंका बजाने के बाद अब 15 -21 दिसम्बर 2019 को दुबई में आयोजित इन्टरनेशनल होमियोपैथ कॉन्फ्रेस 2019 में झारखंड का झंडा बुलंद करेंगे। राष्ट्रीय चिकित्सा सेवा रत्न/झारखंड सेवा रत्न व नेशनल हेल्थ केयर आइकॉन अवार्ड 2019, अली वेलफेयर अवार्ड, संगम अवार्ड, डॉ रेकवेग एण्ड कम्पनी जर्मनी का मेडिकल एक्सेलेंस अवार्ड, से सम्मानित डॉ यूएस वर्मा पुराने, मुख्यमंत्री के रुप में 2002 में बाबूलाल मराण्डी द्वारा मुख्यमंत्री चिकित्सा सेवा अवार्ड, डी बिच डिसकवरी होटल, पटाया, थाईलैण्ड में इंटरनेशनल मेडिकल एक्सेलेंस अवार्ड, सहित अनेकानेक सम्मान दिल्ली, जयपुर, बिहार से सम्मानित डॉ वर्मा जटील व असाध्य रोगों के सफल इलाज के लिए झारखंड ही नही देश विदेश में जाने जाते हैं। डॉ वर्मा अनेकों जटिल व ब्रेन हेमरेज, किडनी फल्योर, एक्सीडेंट से महीनों बेहोश पडे रोगियों, आवाज लुप्त दर्जनों रोगियों, पलक स्वत: न उठना, बॉडी एक्सेस ब्लड के रोगियों सहित चिकित्सा के अविश्वानीय व निराश जीवन व्यतीत करने वालों के जीवन में 1 से 2 सप्ताह में नव ऊर्जा का सृजन व साकार जीवन जीने का आकार देने का उत्कृष्ट सेवा का कार्य किया है। किडनी फेल रोगियों को डायलाइसिस से मुक्ति दिलाकर पूर्ण स्वस्थ करने का रिकार्ड कार्य किया है। इनमें मुम्बई के धमेन्द्र कुमार सिंह, पटना बिहार के किशोर वर्मा, झारखंड सरकार के कर्मी श्रवण कुमार श्रीवास्तव, कांके के राजन सिंह, सिमडेगा की भगीरथी देवी, पलामू की ललिता देवी, पतरातू की मनोरमा देवी, लोहरदगा के आरके मिश्रा, दिल्ली के अमित कुमार वगैरह का उल्लेखनीय नाम हैं। जयपुर के राजेन्द्र सिंह के पिता रामाशीश सिंह को उच्च रक्तचाप से ब्रेन हेमरेज हो गया था वे कोमा में चले गये थे, उनके बचने की उम्मीद नही बची थी । अनेक सुपर स्पेसलाइज्ड अस्पतालों में इलाज हुआ। अम्बिकापुर के हॉलीक्रॉस हॉस्पीटल में महीनों इलाज चला। सलाइन एंटीबायोटिक ब्लड चढ़ाने के बाद भी 3 ग्राम हिमोग्लोबिन, लगातार मिनरल्स सलाइन चढ़ाने के बाद फेफडे में भर जाना, श्वास लेने में दिक्कतें, हृदय गतिसीमा 30 प्रतिमिनट हो गया था। पूरा शरीर में बेडशोर का जख्म, दस्त व शरीर पारालाइज हो गया था। एेसे में डॉ यूएस वर्मा के ख्यातिनुसार व परामर्श के बाद डॉ एलवी सिंह ने चिकित्सा शुरु की। आज स्वस्थ जीवन यापन कर रहा है। निराश जीवन में आशा की किरण जगमगाया।उनहें होमियोपैथ की यूवी-4 व यूवी-25 की दवा ने जीवन में उमंग भर दिया। जयपुर के राज परिवार ने डॉ वर्मा के प्रति आभार व्यक्त करते हुए जयपुर बुलाकर उन्हें समारोहपूर्वक उन्हें सम्मानित किया।
डॉ वर्मा दुबई कॉन्फ्रेस में आधुनिक समय व रोगों में डायबिटीज, कोरोनरी, आर्टरी रोग, उच्च रक्तचाप, हार्ट अटैक, कैंसर, थायराइड, एलजीमीयर्स डीजीज, फइव्राइज, पीसीओडी, स्ट्रोक और ब्रेन हेमरेज, पारालाइसिस, अर्थराइटिस, मोनोपाउजल, मानसिक अवसाद, नींद की कमी रोग भी नियंत्रण में नही आ रहा हो, इसी प्रकार इम्यूनाइजेशन के बाद भी मीजल्स, चिकन पोक्स, डायरिया, हिपेटाइटीस, न्योमोनिया, हर्पीजआदि रोगों का बेतहासा वृद्धि होना समाज, राज्य व देश के उत्तरोत्तर विकास व जनकल्याण की दिशा में खतरनाक संकेत की बातों पर अपना फोकस डालेंगे। उन्होंने बताया कि इन सभी प्रकार के रोगों के बढ़ने के कारण आराम पसंद व विलासितापूर्ण दिनचर्या, योगाशन, प्रणायाम, शारीरिक श्रम आदि में घोर कमी, भागमभाग मानसिक तनाव, असंतुलित आहार-व्यवहार, खान-पान वगैरह । हमे अपने दिनचर्या व खान-पान, आहार-व्यवहार में बदलाव लाना होगा। योगाशन, शारीरिक अभ्यास नियमित करना होगा। मांस-मदिरा के अत्याधिक प्रयोग से बचना चाहिए। पानी का सेवन संतुलित तरीके से करना चाहिए।
डॉ वर्मा ने एलोपैथिक के अलावे होमियोपैथिक, आर्युवैदिक व अन्य चिकित्सा विज्ञान की पद्धतियां रोगों को समूल ठीक करने की क्षमता पर भी गहन अध्ययन, रिसर्च कर जिस दवा से उस रोग में सर्वाधिक लाभ हो सकता है, उसे अपनाने की सलाह दी है। लाइलाज घोषित रोगों का बडी सहजता व सरलता से होमियोपैथिक दवाओं से पूर्णत: ठीक होते देखा गया है। होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति के द्वारा बीमारी के पकड़ में आने से ऑपरेशन या चीर-फाड की नौबत नही आती है। तन्दुरुस्ती व ताजगी सदैव बनी रहती है। चूंकि होमियोपैथिक अतिरिक्त साइड इफैक्ट नही होते है। इलाज लोगों के बजट के अन्दर व सम्पूर्ण संतुष्टि के साथ हो जाता है। शारीरिक क्षमता क्षय नहीं होता है। स्वास्थ्य जीवन जीना अपने हाथों में है।