Jharkhand:चिरुडीह गोलीकांड मामले में कांग्रेस विधायक के माता-पिता दोषी करार,भाई बरी,आरोपी पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक हैं

राँची।झारखण्ड के पूर्व मंत्री कांग्रेस नेता योगेंद्र साव और पूर्व कांग्रेस विधायक निर्मला देवी को चिरूडीह गोलीकांड में राँची सिविल कोर्ट ने दोषी करार दिया है।वहीं पुत्र अंकित राज को गवाह और साक्षी के अभाव में बरी कर दिया गया है।कोर्ट के इस फैसले से योगेंद्र साव को बड़ा झटका लगा है। अदालत अब सजा की बिंदु पर सुनवाई करेगी। 8 मार्च को राँची सिविल कोर्ट के अपर न्यायायुक्त विशाल श्रीवास्तव की कोर्ट में इस केस से जुड़े सभी बिंदुओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने फैसले के लिए 22 मार्च यानी आज मंगलवार की तिथि मुकर्रर की थी।अभियोजन पक्ष ने योगेंद्र साव के ऊपर लगे आरोपों को साबित करने के लिए 20 गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज करवाये हैं। जबकि आरोपी योगेंद्र साव, निर्मला देवी और अंकित राज की ओर से 7 गवाह प्रस्तुत किये गए है।पूर्व मंत्री योगेंद्र साव पर आईपीसी की धारा 307 समेत अन्य धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी थी।

पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और पूर्व विधायक निर्मला देवी को झारखंड के बहुचर्चित बड़कागांव गोलीकांड मामले में दोषी करार दिया गया है।इनकी सजा के मामले पर कोर्ट 24 मार्च को फैसला सुनाएगी।

क्या है घटना
चिरुडीह कांड मामला साल 2016 का है,जब पूर्व मंत्री योगेंद्र साव की पत्नी पूर्व विधायक निर्मला देवी स्थानीय ग्रामीणों के संग एनटीपीसी के द्वारा की जा रही भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कफन सत्याग्रह की गई थी।उस वक्त ग्रामीणों की झड़प पुलिस प्रशासन से हुई थी।जिसमें 4 लोगों की मौत हुई थी।उस  मामले में पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी पत्नी पूर्व विधायक निर्मला देवी और पुत्र अंकित राज के खिलाफ बड़कागांव थाना में मामला दर्ज कराया गया था। मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 20 गवाह प्रस्तुत किए गए. वही योगेंद्र साव खुद के बचाव में 22 गवाहों  की सूची न्यायालय ने दी थी। जिसमे महज 7 गवाहों की गवाही करा पाई। इस मामले में योगेंद्र  साव राहत के लिए निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय में तीन बार गुहार लगाई।बावजूद इसके न्यायालय से जमानत नहीं मिली। पिछली बार सुप्रीम कोर्ट ने योगेंद्र साहू की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत को 3 माह के भीतर सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था।जिसके आलोक में राँची सिविल कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसके बाद सुनवाई पूरी करते हुए कोर्ट ने फैसला को सुरक्षित रख लिया था।