#धर्म:इस साल सावन मास में पांच सोमवारी पड़ रही है इन सभी सोमवारी पर कई शुभ और अद्भुत संयोग हैं।सावन मास की शुरुआत सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रही है…

राँची।इस साल सावन का पावन महीना सोमवार को शुरू हो रहा है।सावन का अंतिम दिन भी सोमवार को ही पड़ेगा यानी इस साल श्रावण मास सोमवार को शुरू होगा और सोमवार को ही इसका समापन होगा।इस साल सावन मास में पांच सोमवारी पड़ रही है इन सभी सोमवारी पर कई शुभ और अद्भुत संयोग हैं।सावन मास की शुरुआत सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रही है।वहीं,सावन का समापन भी सर्वार्थ सिद्धि योग में होगा।मान्यता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग शिव उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ और अधिक फलदायी होता है।ऐसा संयोग बहुत कम होता है।इस दृष्टि से शिवभक्तों के लिए यह माह अतिविशिष्ट है।इस माह भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

हिंदू धर्म के सबसे पवित्र महीनों में से एक सावन मास की शुरुआत आज छह जुलाई से हो हो गई है।ज्योतिषियों के अनुसार सावन के सोमवार को सोम या चंद्रवार भी कहते हैं। यह दिन भगवान शिव को अतिप्रिय है।सावन में मंगलवार को मंगलागौरी व्रत, बुधवार को बुध गणपति व्रत, बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव व्रत, शुक्रवार को जीवंतिका व्रत, शनिवार को बजरंग बली व नृसिंह व्रत और रविवार को सूर्य व्रत होता है।

सावन में शिव आराधना का है विशेष महत्व

हिंदू धर्म में सावन मास का विशेष महत्व है. इस मास की अपनी संस्कृति है. ज्येष्ठ के तीव्र ताप और आषाढ़ की उमस से क्लांत प्रकृति को अमृत वर्षा की दरकार होती है।सावन में श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव का गहरा संबंध है भगवान शिव ने स्वयं सनत्कुमार से कहा है मुझे बारह महीनों में सावन (श्रावण) विशेष प्रिय है।इसी काल में वे श्रीहरि के साथ मिलकर लीला करते हैं।इस मास की विशेषता है कि इसका कोई दिन व्रत शून्य नहीं देखा जाता है।

इस महीने में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शतरूद्र का पाठ और पुरुष सूक्त का पाठ एवं पंचाक्षर, षडाक्षर आदि शिव मंत्रों व नामों का जप विशेष फल देने वाला होता है।श्रावण मास का माहात्म्य सुनने अर्थात श्रवण हो जाने के कारण इसका नाम श्रावण हुआ।पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र से योग होने से भी इस मास का नाम श्रावण कहलाया है. यह सुनने मात्र से सिद्धि देने वाला है. श्रावण मास व श्रवण नक्षत्र के स्वामी चंद्र, और चंद्र के स्वामी भगवान शिव, सावन मास के अधिष्ठाता देवाधिदेव शिव ही हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना:

वैद्यनाथ लिंग की स्थापना के संबंध में वर्णित है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर भगवान शिव की घोर तपस्या की।रावण ने अपना एक-एक सिर काट – काट कर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किया।जब दसवें सिर को काटने के लिए तैयार हुआ , तब भगवान उसकी भक्ति देख प्रसन्न हो उठे।उन्होंने रावण के दसों सिरों को पहले की ही भांति कर दिया रावण ने वर में भगवान शिव को अपने साथ लंका चलने को कहा , मगर इससे तीनों लोक में हाहाकार मच जाता।कुछ विचार कर भगवान शिव ने उस शिवलिंग को रावण को सौंप दिया और कहा कि इस शिवलिंग में वह सारी शक्तियां विद्यमान हैं ,जो मुझ में हैं।अतः हे रावण , तुम न केवल शिवलिंग ले जा रहे हो , बल्कि मेरे प्रतिरूप को ही ले जा रहे हो।रावण को इस प्रतिबंध के साथ अनुमति प्रदान कर दी कि यदि इस लिंग को ले जाते समय रास्ते में धरती पर रखोगे,तो यह वहीं स्थापित ( अचल ) हो जायेगा।जब रावण शिवलिंग को लेकर चला , तो मार्ग में चिताभूमि,(देवघर)में उसे लघुशंका की प्रवृत्ति हुई।उसने शिवलिंग को बैजू ( भगवान विष्णु के रूप ) नाम के एक अहीर को पकड़ा दिया और चला गया ।शिवलिंग भारी होने के कारण उस अहीर ने उसे भूमि पर रख दिया . लिंग वहीं अचल हो गया।वापस आकर रावण ने काफी जोर लगा कर शिवलिंग को उठाना चाहा , किंतु असफल रहा।अंत में निराश हो कर शिवलिंग पर अंगूठे से दबा कर लंका के लिए चल दिया।इधर ब्रह्मा,विष्णु, इंद्र आदि देवताओं ने यहां पहुंच कर उस शिवलिंग की विधिवत पूजा की उन्होंने शिव जी के दर्शन किये और लिंग की प्रतिष्ठा करके स्तुति की।