जोहार:करमा पूजा की ढेरों शुभकामनाएं,पूरे राज्य में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है करमा पर्व

राँची।झारखण्ड में आदिवासी समाज के करम परब त्योहार को लेकर राँची सहित पूरे राज्य में उत्सवी माहौल है। इसे लेकर राजधानी राँची के हर अखड़ा में तैयारी लगभग पूरी हो गई है। शाम ढलने के बाद करम राजा की पूजा की जाएगी।वहीं कोरोना संक्रमण के देखते हुए इस बार करम परब बड़ी सादगी से मनाया जाएगा।भादो महीने की उजाला पक्ष की एकादशी को यह पर्व पूरे राज्य में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जबकि इस पर्व की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है और पूजा पाठ एकादशी के पहले सात दिनों तक चलती है। झारखण्ड में करम कृषि और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। इसे झारखण्ड के सभी समुदाय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। नई फसल आने की खुशी में लोग करम नृत्य करते हैं। इस पर्व को भाई-बहन के अगाध प्यार के रूप में भी जाना जाता है। बहनें भाइयों की रक्षा का संकल्प लेती हैं।

इधर केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि करम महापर्व प्रकृति पूजक आदिवासियों का महान पर्व है। इस त्यौहार के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति परंपरा को जीवित रखते हैं।आदिवासी पर्व त्यौहार नहीं मनाने से आदि काल से चली आ रही परंपरा संस्कृति नष्ट हो जाएगी। उन्होंने कहा कि करम त्यौहार गांव घर का त्यौहार है। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कोविड-19 का पालन करते हुए सादगी से करम परब त्यौहार मनाया जा रहा है। इस वर्ष भी किसी तरह के जुलूस का आयोजन नहीं किया जाएगा। करम या करमा पर्व झारखण्ड के आदिवासियों और मूलवासियों का लोकपर्व है। यह पर्व फसलों और वृक्षों की पूजा का पर्व है। यहां की संस्कृति और लोक नृत्य कला का आनंद करम पर्व में भरपूर देखने को मिलता है। आदिवासियों की पारंपरिक परिधान पहने लड़कियां जगह-जगह लोक नृत्य करती नजर आएंगी।

ये परब एकादशी से सात दिन पहले ही करम पूजा शुरू हो जाती है। करम पर्व मनाने के लिए सात दिन पहले युवतियां अपने गांव में नदी या तालाब जाती हैं, जहां बांस की टोकरी में मिट्टी डालकर उसमें धान, गेंहू, चना, मटर, मकई, जौ, बाजरा, उड़द आदि के बीज बोती हैं। उसके बाद निरंतर सात दिनों तक सुबह-शाम टोकरियों को बीच में रखकर सभी सहेलियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर व उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए गीत गाते हुए नाचती हैं। इसे जावाडाली जगाना कहा जाता है।टोकरियों में बोए गए बीज को अंकुरित करने के लिए करम त्योहार के एकादशी तक हल्दी मिले जल के छींटों से सुबह शाम नियमित रूप से सींचा जाता है। सात दिनों में जब बीज अंकुरित हो जाते हैं तो एकादशी के दिन करम पूजा में उस जावा डलिया को शामिल किया जाता है।

अखड़ा में पहान से सुनते करम कथा

करम पर्व पर सभी लोग अखड़ा में पहान से करमा कथा सुनते हैं। फिर अखड़ा में युवक-युवतियों द्वारा पारंपरिक रूप से करम गीत और नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। करम कथा और करम गीत में कई अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन सभी में कर्म प्रधानता और प्रकृति संरक्षण का संदेश दिया गया है।पूजा के बाद करम डाली को खेत में गाड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे फसल सुरक्षित रहता है और पैदावार अधिक होती है। करम त्यौहार कृषि और प्रकृति से जुड़ा है। इसमें परिवार की सुख समृद्धि के साथ फसलों की अधिक पैदावार के लिए प्रकृति से अराधना की जाती है।