अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी बनी भारत विरोधी बौद्धिक आक्रमण का केंद्र बिंदु,हिंदू धर्म पर होता है प्रहार

डेस्क टीम:
भारत पर आक्रमण तो हमेशा से होते रहे हैं। पहले उत्तर-पश्चिम सीमा से आक्रमणकारी आते थे। बाद में समुद्री मार्ग से आए और कालांतर में यहीं अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। हिमालय पर्वत शृंखला से हम उत्तरी सीमा को सुरक्षित समझते थे, किंतु चीन ने उसे भी पार करके 1962 में हमला किया।ऐसे हमलों से इतर वर्तमान में भारत पर एक ऐसा आक्रमण हो रहा है, जिससे न केवल अधिकांश जनता, बल्कि हमारे शासक भी अनिभज्ञ से हैं। यह आक्रमण बौद्धिक स्तर पर हो रहा है, जिसका लक्ष्य भारत की सभ्यता और संस्कृति पर ऐसे प्रहार करना है कि यह मूल रूप से नष्ट हो जाए। इस आक्रमण का केंद्र बिंदु अमेरिका की विख्यात हार्वर्ड यूनिवर्सिटी है।

हार्वर्ड के कुछ विद्वानों ने एक नया दर्शन प्रतिपादित किया है, जिसे क्रिटिकल रेस थ्योरी यानी सीआरटी का नाम दिया गया है। इसके अनुसार वर्तमान व्यवस्था दूषित हो चुकी है और समाज में जो भी अन्याय-शोषण है, वह इसी कारण हो रहा है। भारत के संदर्भ में इसके अनुसार हिंदू धर्म को नष्ट कर देना चाहिए, क्योंकि यह जाति व्यवस्था पर आधारित है, जिसमें एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है। इसमें हमारी पारिवारिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस दर्शन को मानने वालों के अनुसार यह व्यवस्था पुरुष प्रधान है, जिस कारण महिलाओं का उत्पीड़न और शोषण होता है। हमारे धर्मगुरु बेकार हैं।उन्हें अपदस्थ किया जाना चाहिए, क्योंकि उनके विरुद्ध समय-समय पर शिकायतें मिलती रहती हैं। संस्कृत भाषा को त्याग देना चाहिए, क्योंकि यह मर चुकी है। हिंदू त्योहारों का कोई औचित्य नहीं। उनसे पानी की बर्बादी से लेकर प्रदूषण तक होता है। वेदों के बारे में कहा गया है कि उनमें जो लिखा है, वही हिंदू धर्म की कमजोरी, अन्याय और शोषण का आधार है। इसलिए उनका पठन-पाठन बंद कर दिया जाना चाहिए।

संक्षेप में कहें तो इस सिद्धांत का सार यही है कि हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति का विनाश समाज के हित में है और बुद्धिजीवियों को इसी दिशा में काम करना चाहिए। दुष्प्रचार का ऐसा प्रहार कई वर्षों जारी है। इसका प्रतिकार करने के लिए हमें राजीव मल्होत्रा और विजया विश्वनाथन का कृतज्ञ होना पड़ेगा, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘स्नेक्स इन द गंगा’ में कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं।

यह पुस्तक गहन शोध और अकाट्य तथ्यों के आधार पर लिखी गई है। पुस्तक पढ़ने के बाद पहला सवाल यही कौंधा कि क्या वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास ने उन बिंदुओं को लेकर भारत सरकार को अवगत कराया था, जिनका पुस्तक में उल्लेख है? मुझे बताया गया कि ऐसी कोई चेतावनी नहीं आई थी। आखिर हमारे दूतावासों के अधिकारी क्या करते रहते हैं? भारत की सभ्यता और संस्कृति पर हार्वर्ड से इतना बड़ा प्रहार होता है और उसके बारे में वे सरकार को कुछ नहीं बताते? क्या खुफिया एजेंसी ‘रा’ ने इस संबंध में कोई रिपोर्ट भेजी थी? यदि हां, तो उस पर क्या कार्रवाई हुई और यदि नहीं तो उनकी भी जवाबदेही होनी चाहिए।

अफसोस की बात यह है कि इस बौद्धिक प्रहार के पीछे हार्वर्ड में कार्यरत कई भारतीय भी हैं। उनमें से एक हैं प्रोफेसर अजंता सुब्रमण्यम। उन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों यानी आइआइटी पर सवाल उठाया है। उनके अनुसार, ये संस्थान फैक्ट्री की तरह काम कर रहे हैं और जातीय असमानता को स्थायित्व दे रहे हैं, इसलिए इन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए।

वास्तविकता तो यही है है आइआइटी के छात्र अमेरिका सहित दुनिया भर के संस्थानों में छाए हुए हैं और जब उनसे प्रतिस्पर्धा नहीं हो पा रही तो उन्हें ही बंद कराने का दुष्प्रचार शुरू कर दिया गया। कैनेडी स्कूल में सीनियर फेलो सूरज यंगडे हिंदू धर्म पर अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं। थेनमोझी सौंदर्यराजन कई राज्यों में हिंदुओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज करा रही हैं। उनके अनुसार हिंदुओं के विरुद्ध नस्लवाद का आरोप बनता है।

मल्होत्रा के अनुसार हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की घुसपैठ भारत के अधिकांश वर्गों में हो चुकी है। सरकारी अधिकारी हार्वर्ड जाना बड़े गर्व की बात समझते हैं और वहां के ज्ञान को बिना सोचे-समझे निगल जाते हैं। लगभग यही हाल मीडिया के कई प्रतिनिधियों का भी है। उद्योग जगत के बड़े-बड़े दिग्गज हार्वर्ड को दान देकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी खुद को बड़े गर्व से ‘भारत का हार्वर्ड’ कहलाती है। दूसरी तरफ मोदी जी कहते हैं कि गुलामी के सारे निशानों को मिटा दिया जाए, लेकिन दिमागी गुलामी से हम कब स्वतंत्र होंगे?

मल्होत्रा और विश्वनाथन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को सांपों का घरौंदा बताया है। दुर्भाग्य है कि इन सांपों को हम हिंदुस्तान से दूध पिला रहे हैं। टाटा समूह ने हार्वर्ड को पांच करोड़ डालर दान में दिए हैं। लक्ष्मी मित्तल समूह ने 2.5 करोड़ डालर और महिंद्रा समूह ने एक करोड़ डालर। इन दानवीरों से पूछा जाए कि यदि उन्हें दान देना ही था तो क्या उस राशि का सदुपयोग सुनिश्चित किया? साथ ही यह भी कि आपने इतनी संपदा विदेशी संस्थानों को दी तो उसकी तुलना में भारतीय संस्थानों को कितना दान दिया है?

हार्वर्ड के तथाकथित विद्वानों के अनुसार भारत की जाति व्यवस्था पश्चिम की नस्लीय व्यवस्था जैसी है। उन्होंने भारत की उच्च जातियों की तुलना अमेरिका के श्वेत श्रेष्ठतावाद वाली ग्रंथि से की है और भारत के दलितों को अमेरिकी अश्वेतों के समकक्ष बताया है। जाति और नस्ल को एक जैसा समझना दिमागी दिवालियेपन का प्रतीक है। दोनों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एकदम अलग है, परंतु अमेरिकी बुद्धिजीवी दोनों को एक तराजू पर तौलकर भारतीयों के अमेरिका में अस्तित्व को और विशेष तौर से हिंदुओं की पहचान समाप्त करना चाहते हैं।

हैरत की बात यह है कि यही बुद्धिजीवी इस्लाम को पीड़ित बताते हैं। भारत सरकार को चाहिए कि इन खतरों की गंभीरता का उचित आकलन कर उनसे निपटने की आवश्यक योजना बनाए। अमेरिका से होने वाला बौद्धिक प्रहार हमारे अस्तित्व को चुनौती देता है। इस शास्त्रार्थ में भारत को पश्चिम की आसुरी शक्तियों को परास्त करना होगा।

(उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक रहे प्रकाश सिंह, लेखक ,सामाजिक संस्था ‘हमारी संस्कृति’ के अध्यक्ष हैं) ये लेख सौजन्य से-