Navratri 2020:आज से नवरात्र शुरू,आज माँ शैलपुत्री के पूजन के साथ होगी नवरात्रि की घटस्थापना..

राँची।कोरोना काल में वेसे सभी त्योहार फीका पड़ गया है इस बार दुर्गा पूजा भी कोरोना गाइडलाइन के अनुसार हो रहा है।आज से नवरात्र शुरू हो गया है।सदियों से लोग नवरात्र का त्‍योहार मनाते आ रहे हैं और व्रत रखते आ रहे हैं। देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में इस त्‍योहार को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कुछ लोग पूरी रात गरबा और आरती कर नवरात्र का व्रत रखते हैं तो वहीं कुछ लोग व्रत और उपवास रख मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा-आराधना करते हैं। दरअसल नवरात्र अंत: शुद्धि का महात्‍योहार है।

देवी हैं ऊर्जा का स्रोत: भारतीय संस्‍कृति में देवी को ऊर्जा का स्रोत माना गया है। अपने अंदर की ऊर्जा को जागृत करना ही देवी उपासना का मुख्‍य प्रयोजन है। नवरात्रि मानसिक, शारीरिक और अध्‍यात्‍मिक शक्ति का प्रतीक है। इसलिए हजारों वर्षों से लोग नवरात्रि मना रहे हैं।

असत्‍य पर सत्‍य की जीत का प्रतीक है नवरात्र- नवरात्र का त्‍योहार मनाने के पीछे बहुत-सी रोचक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें यह बताया जाता है कि देवी ने कई असुरों के अंत करने के लिए बार-बार अवतार लिए हैं। कहा जाता है कि दैत्‍य गुरु शुक्रराचार्य के कहने पर असुरों ने घोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्‍न किया और वर मांगा कि उन्‍हें कोई पुरुष, जानवर और शस्‍त्र न मार सकें।वरदान मिलते ही असुर अत्‍याचार करने लगे। तब देवताओं की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने वरदान का भेद खोलते हुए बताया कि असुरों का अंत अब स्‍त्री शक्ति ही कर सकती हैं। ब्रह्मा जी के आदेश पर देवताओं ने नौ दिनों तक मां पार्वती को प्रसन्‍न किया और उनसे असुरों के संहार का वचन लिया असुरों के संहार के लिए देवी ने रौद्र रूप धारण कर असुरों का अंत किया था।

दूसरी मान्‍यता यह है कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत भगवान राम ने की थी। भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के तट पर शारदीय नवरात्रि की शुरुआत की और नौ दिनों तक शक्ति की पूजा की थी और तब जाकर उन्‍होंने लंका पर विजय प्राप्‍त किया था। यही मूल वजह है कि शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।

आम के पत्तों का बंधन बार

पहले नवरात्र वाले दिन आम के पत्तों का बंधन बार घर के दरवाजे पर लगाना बहुत शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इससे घर में पवित्रता आती है। बंधन बार लगाने से घर से नकारात्मकता दूर होती है।

ये हैं महत्वपूर्ण पूजन सामग्रियां…

नवरात्र में मां अम्बे की पूजा हेतु जरूरी सामग्रियों की लिस्ट देख लें। लाल रंग की गोटेदार चुनरी, लाल रेशमी चूड़ियां, सिन्दूर, आम के पत्‍ते, लाल वस्त्र, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, धूप, अगरबत्ती, माचिस, चौकी, चौकी के लिए लाल कपड़ा, नारियल, दुर्गासप्‍तशती किताब, कलश, साफ चावल, कुमकुम, मौली, शृंगार का सामान, दीपक, घी/तेल, फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग, इलायची, बताशे या मिसरी, कपूर, उपले, फल/मिठाई, चालीसा व आरती की किताब, देवी की प्रतिमा या फोटो, कलावा, मेवे

रंगों का खास है महत्व…

नवरात्रि में रंगों का भी खास महत्व होता है। इस दौरान गहरे या काले कपड़ों को हटाकर नौ दिन के हिसाब से साफ कपड़े पहनने की व्यवस्था कर लें।

ऐसा करने से लाभ मिलने की है मान्यता…

नवरात्रि शुरू होने से एक दिन पहले अपने मुख्य द्वार पर माता के स्वागत के लिए स्वास्तिक बना लें। पूजा घर में जहां माता को स्थापित करना है उस चौकी के आगे भी स्वास्तिक बना लें

ये है हवन सामग्री की सूची

हवन कुंड, आम की लकड़ी, पांच मेवा, घी, लोबान, काले तिल, चावल, जौ, धूप, गुगल, लौंग का जौड़ा, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर जरूर रखें

मानसिक, शारीरिक और अध्‍यात्‍मिक शक्ति का प्रतीक
नवरात्रि मानसिक, शारीरिक और अध्‍यात्‍मिक शक्ति का प्रतीक है। इसलिए हजारों वर्षों से लोग नवरात्रि मना रहे हैं।

जानिये किस दिन कौन-सी देवी की होगी पूजा

17 अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना

18 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा

19 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा

20 अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा

21 अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा

22 अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा

23 अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा

24 अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा

25 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा

ये है पौराणिक मान्यता…

कहते हैं कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत भगवान राम ने की थी। भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के तट पर शारदीय नवरात्रि की शुरुआत की और नौ दिनों तक शक्ति की पूजा की थी और तब जाकर उन्‍होंने लंका पर विजय प्राप्‍त किया था। यही मूल वजह है कि शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।

लगेंगे ये खास मुहूर्त व शुभ योग
इस बार सर्वार्थसिद्धि योग में नवरात्र शुरू हो रहा है। नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना शुभ मुहूर्त में होगी। ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बेहद शुभ माना जाता है, जो पूजा उपासना में अभीष्ट सिद्धि देगा। साथ ही दशहरे तक खरीदारी के लिए त्रिपुष्कर, सौभाग्य और रवियोग जैसे खास मुहूर्त भी रहेंगे। इन शुभ संयोग में प्रॉपर्टी, व्हीकल, फर्नीचर, भौतिक सुख-सुविधाओं के सामान और अन्य तरह की मांगलिक कामों के लिए खरीदारी करना शुभ रहेगा।

इन बातों का भी रखें ध्यान…

नवरात्रि शुरू होने से पहले घर की अच्छे से सफाई कर लें। पूजा घर से लेकर घर के हर कोने को भी अच्छे से साफ कर ले। मान्यता है कि गंदे घर में माता को विराजमान करने से भक्तों को मां की कृपा नहीं मिलती है।

कलश स्थापना विधि…

एक मिट्टी का कलश लें। उसमें मिट्टी की एक मोटी परत बिछाएं। फिर जौ के बीज डालकर उसमें मिट्टी डालें। इस कलश को मिट्टी से भरें। इसमें इतनी जगह जरूर रखें कि पानी डाला जा सके। फिर इसमें थोड़े-से पानी का छिड़काव करें।

ये है नवरात्र कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त सभी शुभ कार्यों के लिए अति उत्तम होता है। जो मध्यान्ह 11:36 से 12:24 तक होगा। चूंकि, चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना प्रशस्त नहीं माना गया है। अतः चित्रा नक्षत्र की समाप्ति दिन में 2:20 बजे के बाद किया जा सकेगा।स्थिर लग्न कुम्भ दोपहर 2:30 से 3:55 तक होगा साथ ही शुभ चौघड़िया भी इस समय प्राप्त होगी अतः यह अवधि कलश स्थापना हेतु अतिउत्तम है। दूसरा स्थिर लग्न वृष रात में 07:06 से 09:02 बजे तक होगा परंतु चौघड़िया 07:30 तक ही शुभ है अतः 07:08 से 07:30 बजे के बीच मे कलश स्थापना किया जा सकता है।

शुभ मुहूर्त का रखें ध्यान

कलश स्थापना या कोई भी शुभ कार्य शुभ समय एवं तिथि में किया जाना उत्तम होता है। इसलिए इस दिन कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाना अत्यावश्यक है।

कलश स्थापना में ये है जरूरी..

पवित्र और शुभ कार्यों का आरंभ करने में नारियल को जरूर रखा जाता है। मान्यता है नारियल में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का वास होता है। ऐसे में नवरात्रि पर कलश स्थापना के साथ लाल कपड़े में नारियल जरूर रखें।

घोड़े पर सवार आएंगी मां दुर्गा

विद्वानों के अनुसार इस बार शनिवार को घट स्थापना होने से देवी का वाहन घोड़ा रहेगा। इसके प्रभाव से पड़ोसी देश से तनाव बढ़ने की आशंका है और देश में राजनीतिक उथल-पुथल भी हो सकती है।

पहले दिन देवी को लगाएं इनका भोग

नवरात्र के पहले दिन देवी दुर्गा की प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है और मान्यता है कि अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है। ऐसा करने पर हर तरह की बीमारी दूर होती है।

जान लीजिए नवरात्रि की तिथियां

17 अक्टूबर से नवरात्रि शुरू हो जाएगी। इसी दिन प्रतिपदा यानी पहली तिथि में घट स्थापना होगी, इसके बाद 18 को नवरात्र का दूसरा दिन, 19 को तीसरा, 20 को चौथा, 21 को पांचवां, 22 छठा, 23 को सातवां दिन रहेगा। 24 तारीख को सूर्योदय के वक्त अष्टमी और दोपहर में नवमी तिथि रहेगी। इसलिए धर्मसिंधु ग्रंथ के अनुसार, अगले दिन शाम के समय यानी विजय मुहूर्त में दशमी तिथि होने से 25 अक्टूबर को दशहरा पर्व मनाना चाहिए।

प्रतिपदा तिथि के दिन होता है

कलश स्थापना का विधान
इस शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल पक्ष की उदय कालिक प्रतिपदा तिथि 17 अक्टूबर दिन आज शनिवार से शुरू हो रहे हैं । प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है।

25 दिनों के विलंब से शुरू हो रहे हैं नवरात्र

हिन्दू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व होता है। नवरात्र मां नवदुर्गा की उपासना का पर्व है। ये हर साल श्राद्ध खत्म होते ही शुरू होता है, लेकिन इस बार अधिक मास लगने के कारण नवरात्रि 25 दिन देरी से शुरू हो रही हैं।

माँ शैलपुत्री पूजा
नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं। नवरात्रि में पहले दिन कलश स्थापना होती है। इसी के साथ नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। आइए जानें नवरात्रि में किस प्रकार करनी चाहिए कलश स्थापना

ऐसे करें घट स्थापना

-चौकी पर लाल आसन बिछाकर देवी भगवती को प्रतिष्ठापित करें
-ईशान कोण में घटस्थापना करें
-कलश में गंगाजल, दो लोंग के जोड़े, सरसो, काले तिल, हल्दी, सुपारी रखें
-कलश में जल पूरा रखें, सामर्थ अनुसार चांदी का सिक्का या एक रुपये का सिक्का रखें
-कलश के चारों ओर पांच, सात या नौ आम के पत्ते रख लें
-जटा नारियल पर लाल चुनरी बांध कर नौ बार कलावा बांध दें। ( गांठ न लगाएं)
( नारियल को पीले चावल हाथ में रखकर संकल्प करें और फिर नारियल कलश पर स्थापित कर दें। कलश का स्थान न बदलें। प्रतिदिन कलश की पूजा करें)
-कलश स्थापना से पहले गुरु, अग्रणी देव गणेश, शंकरजी, विष्णुजी, सर्वदेवी और नवग्रह का आह्वान करें।
-जिस मंत्र का जाप संकल्प लें, उसी का वाचन करते हुए कलश स्थापित करें

घट स्थापना का मुहूर्त ( शनिवार)

शुभ समय – सुबह 6:27 से 10:13 तक ( विद्यार्थियों के लिए अतिशुभ)
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 11:44 से 12:29 तक ( सर्वजन)
स्थिर लग्न ( वृश्चिक)- प्रात: 8.45 से 11 बजे तक ( शुभ चौघड़िया, व्यापारियों के लिए श्रेष्ठ)

किस राशि के लिए शुभ
सभी राशियों के लिए शुभ। मेष और वृश्चिक के लिए विशेष फलदायी।

आज का शुभ रंग : लाल
मां शैलपुत्री को लाल रंग बहुत प्रिय है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल और मीठा पान भेंट करें।

किस रंग के कपड़े पहनें
भक्त पूजा के समय लाल और गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें।

आज के दिन का महत्व
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अगर जातक शैलपुत्री का ही पूजन करते हैं तो उन्हें नौ देवियों की कृपा प्राप्त होती है।

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