Chaitra Navratri 2021:आज महानवमी पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा,”हीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः।”

झारखण्ड न्यूज, राँची।नवरात्रि के नौ दिन महानवमी तिथि पर समाप्त हो जाते हैं।माँ नवमी तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है, इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है।माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्त रोग मुक्त हो जाते हैं।तथा सिद्धियां प्राप्त होती हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव भी माँ सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना करते हैं।


माँ दुर्गा का अंतिम और नौवां स्वरूप सिद्धीदात्री है। महानवमी या दुर्गा नवमी पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा होती है। मान्यताओं के अनुसार, मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों की सभी तकलीफें दूर हो जाती हैं तथा वह रोग मुक्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। जो भी भक्त मां सिद्धिदात्री की पूजा करता है वह सभी सिद्धियों में निपुण हो जाता है। मां सिद्धिदात्री को सिद्धि और मोक्ष की देवी कहा जाता है। मां सिद्धिदात्री को कई नाम से पुकारा जाता है जैसे अणिमा, लघिमां, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, वाशित्व, सर्वज्ञत्व आदि। मां अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं तथा हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करने की शक्ति प्रदान करती हैं।

माँ सिद्धिदात्री की आरती:

जय सिद्धिदात्री मां, तू सिद्धि की दाता।

तू भक्तों की रक्षक, तू दासों की माता।

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।

जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।

तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है।

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।

तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो।

तू सब काज उसके करती है पूरे।

कभी काम उसके रहे ना अधूरे।

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।

रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।

जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली।

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।

महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।

भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।

माँ सिद्धिदात्री की कथा:
माँ सिद्धिदात्री की प्रसिद्ध कथाओं के अनुसार, भगवान शिव मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर रहे थे तब प्रसन्न होकर माँ सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को आठों सिद्धियों का वरदान दिया था। मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने के बाद भगवान शिव का आधा शरीर देवी के शरीर का रूप ले लिया था। इस रूप को अर्धनारीश्वर कहा गया। जब महिषासुर ने अत्याचारों की अति कर दी थी तब सभी देवतागण भगवान शिव और प्रभु विष्णु के पास मदद मांगने गए थे। महिषासुर का अंत करने के लिए सभी देवताओं ने तेज उत्पन्न किया जिससे मां सिद्धिदात्री का निर्माण हुआ।

माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं. जैसा कि मां के नाम से ही प्रतीत होता है माँ सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं. हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थस्थान है।

मां सिद्धिदात्री का भोग

महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करके उन्हें तिल का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से मां सिद्धिदात्री अनहोनी से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।