Vijayadashami 2021:माँ दुर्गा की विदाई के साथ दुर्गोत्सव संपन्न,महिलाओं ने खूब खेला ‘सिंदूर खेला’
राँची।नवरात्रि में नाै दिन तक माँ दुर्गा की पूजा और भक्ति के बाद आखिर में दसवें दिन विजयादशमी मनाई जाती है।झारखण्ड की राजधानी सहित अन्य जगहों पर विजयादशमी मनाई जा रही है। साथ ही आज दुगोत्सव भी संपन्न हो गया।
सिंदूर खेला की रश्म
आज पंडाल में सिंदूर खेला की रश्मअदायगी हुई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खूब ‘सिंदूर खेला’ का खेल खेला। हालांकि यह क्षण थोड़ी देर के लिए बड़ा ही भावुक था।माँ दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं के आंख नम थे।
सदियों से चली आ रही ‘सिंदूर खेला’ की परंपरा
विजयादशमी को लेकर देश के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग मान्याताएं हैं। इस दिन बंगाल में सिंदूर खेलने की परंपरा होती है,जिसे ‘सिंदूर खेला’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पंडालों में माँ दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। दशमी पर सिंदूर लगाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में ‘सिन्दूर खेला’ का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा करीब चार सौ साल पुरानी है। झारखण्ड की राजधानी राँची में विजयादशमी पर यहां की महिलाएं सिंदूर खेला की रश्मअदायगी की हैं।
सिंदूर खेला के मायने
सिंदूर खेला शादीशुदा महिलाओं का त्योहार माना जाता है। हिन्दू धर्म में सिंदूर का बहुत महत्व होता है, इसे महिलाओं के सुहाग की निशानी माना गया है। मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व है। कहते हैं कि सिंदूर माँ दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है, इसलिए दशमी वाले दिन सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनती है, और मांग में ढेर सारा सिंदूर भर कर पंडाल जाती है, जहां वे माँ दुर्गा को उलूध्वनी निकालकर विदा करती हैं। सभी शादीशुदा महिलाएं माँ दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। उसके बाद माँ को पान और मिठाई का भोग लगाती है, और आखिर में एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को सिन्दूर खेला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका सुहाग सलामत रहता है।
यह है इस खेल से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि माँ दुर्गा साल में एक बार 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। कहते हैं कि जिस तरह से एक लड़की जब अपने मायके आती है, तो उसे खूब प्यार मिलता है, उसकी सेवा की जाती है। उसी तरह माँ दुर्गा के लिए भी जगह-जगह पंडाल लगते हैं और उनकी सेवा की जाती है। जब मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, तो उनकी मांग को सिंदूर से भर कर ही उन्हें विदाई देते हैं।