बहू सीता की याचिका से फेरे में पड़े ससुर शिबू सोरेन ! पैसे लेकर वोट देने वाले सांसद-विधायकों पर चलेगा मुकदमा…..सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला….
राँची। सांसद और विधायकों द्वारा रिश्वत लेकर वोट देने या सदन में सवाल पूछने पर आपराधिक मुकदमों से मिली छूट वाले विशेषाधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचुड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव मामले में आए फैसले को पलट दिया है। संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि रिश्वत से जुड़े मामले में सांसद और विधायक मुकदमों से नहीं बच सकते हैं। इस फैसले का सीधा असर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पर पड़ सकता है।क्योंकि संसद रिश्वत कांड मामले में झामुमो के शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1998 में सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय बेंच द्वारा 3:2 के फैसले से आपराधिक मुकदमें से छूट मिल गई थी। इसी केस का हवाला देकर झामुमो विधायक सीता सोरेन ने राज्यसभा हॉर्स ट्रेडिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत की मांग की थी लेकिन पूरा मामला उलटा पड़ गया।
बहू सीता की याचिका से मुसीबत में फंसे गुरुजी….
दरअसल, जामा से झामुमो की विधायक सीता सोरेन पर साल 2012 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी आरके अग्रवाल से डेढ़ करोड़ रु लेकर वोट देने का आरोप लगा था।उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था।उनके धुर्वा स्थित आवास की कुर्की भी हुई थी।बाद में उन्होंने सीबीआई कोर्ट में सरेंडर कर दिया था, जहां से जेल भेज दिया गया था। उन्होंने हाईकोर्ट में इसको चुनौती दी थी लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई थी।तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने ससुर सह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन समेत चार सांसदों को 1993 के संसद रिश्वत कांड में 1998 में मिली राहत का हवाला देते हुए क्रिमिनेल केस से छूट की मांग की थी।तब साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने सीता की याचिका को वृहद पीठ को भेज दिया था। उन्होंने पूर्व के फैसले पर दोबारा विचार करने का फैसला दिया था। उन्होंने कहा था कि क्या किसी सांसद या विधायक को वोट के बदले नोट लेने की छूट दी जा सकती है।क्या कोई ऐसा कर आपराधिक मामलों से बचने का दावा कर सकता है।
शिबू सोरेन से जुड़ा क्या है संसद रिश्वत कांड
1993 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार थी। तब भाजपा ने अल्पमत का हवाला देते हुए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। लेकिन झामुमो के सांसद शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो, सूरज मंडल और साइमन मरांडी ने पैसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था।इसकी वजह से नरसिम्हा राव की सरकार बच गई थी।इसमें जनता दल समेत अन्य सांसदों ने भी मदद की थी। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही थी। तब झामुमो सांसदों ने दलील दी थी कि बरामद पैसे पार्टी फंड के थे।फिर 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संसद रिश्वत कांड का खुलासा किया था। तब शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया था कि नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए वोट के बदले चारों सांसदों को 50-50 लाख रुपए की घूस मिली थी। इसी के बाद सीबीआई जांच शुरु हुई थी।
क्यों मिल गई थी झामुमो सांसदों को राहत
1993 में नरसिम्हा राव के खिलाफ भाजपा के अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में झामुमो के चार सांसदों ने वोट दिया था। इसकी जांच सीबीआई कर रही थी।लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट में मामला चलता रहा। 1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 3:2 के अनुपात से फैसला सुनाया था कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सांसदों को संसद के अंदर दिए गये भाषण या वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है।इसी फैसले को आधार बनाकर राज्यसभा चुनाव में पैसे लेकर वोट की आरोपी शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।
अगर कोई विधायक या सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट दे तो क्या उस पर मुकदमा चलेगा या फिर इस तरह के रिश्वत वाले मामले में उसको बतौर जनप्रतिनिधि हासिल प्रिविलेज (विशेषाधिकार) के तहत कानूनी कार्रवाई से छूट होगी? 7 जजों की संविधान पीठ ने आज इस बेहद अहम सवाल पर सर्वसम्मति से फैसला सुना दिया। बेंच ने 1998 के फैसले (पीवी नरसिम्हा राव मामला) को पलट दिया और साफ तौर पर कहा कि ‘रिश्वत मामलों’ में MP-MLA मुकदमे से नहीं बच सकते।
कोर्ट का ये फैसला ‘सीता सोरेन बनाम भारत सरकार’ मामले में आया है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सांसदों और विधायकों को हासिल विशेषाधिकार की नए सिरे से व्याख्या की है और 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के दौरान इन दोनों अनुच्छेदों की व्याख्या को गलत माना है। ‘राजनीति में नैतिकता’ के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इसको बेहद महत्त्वपूर्ण मामला माना था।
पिछले साल 5 अक्टूबर को सर्वोच्च अदालत ने दो दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। CJI डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस केस की सुनवाई की थी और तकरीबन पांच महीने बाद आज फैसला सुना दिया।
इस मसले पर 1993 से लेकर अब तक तकरीबन 30 बरस चली अदालती कार्रवाई चली।इसमें एक कॉमन कड़ी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और शिबू सोरेन का परिवार रहा। 1998 के फैसले ने जहां रिश्वत कांड में शिबू सोरेन की राह आसान कर दी थी तो सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले नेउनकी बहू सीता सोरेन के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है।
कल्पना सोरेन पर बढ़ सकता है बोझ
सबसे खास बात है कि जिस दिन सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने नोट फॉर वोट मामले में फैसला सुनाया है, उसी दिन पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने राजनीति में इंट्री ली है। गिरिडीह में पार्टी के स्थापना दिवस समारोह के जरिए वह झारखण्ड की राजनीति में कदम रख रही हैं।इससे पहले वह बार-बार कह चुकी हैं कि उनके पति हेमंत सोरेन को ईडी ने जिस बड़गांई वाले लैंड स्कैम मामले में जेल में डाला है, उससे उनका कोई सरोकार है ही नहीं। लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए शुरु काउंट डाउन के बीच सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनकी मुसीबत बढ़ा दी है।अब देखना है कि कल्पना सोरेन इससे कैसे निपटती हैं।
इधर डॉ निशिकांत दुबे ने पश्चिम बंगाल की सांसद महुआ मोइत्रा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वोट फॉर नोट केस में फैसले के वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैसे लेकर सवाल करना तो जहर जैसा है। यह कैंसर की बीमारी के समान है।काश! तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद यह समझतीं। बॉबी ब्राउन, गुस्सी (GUCCI), लुई विटन (Louis Vuitton), हर्म्स ब्रांड (Hermès Brand) आदमी से कुछ भी करवा सकता है।
तृणमूल की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा भी जाएंगी जेल : निशिकांत दुबे
डॉ दुबे ने सोशल मीडिया साइट पर लिखा कि चंद पैसों के लिए देश की सुरक्षा व संसदीय गरिमा के खिलाफ हीरानंदानी व नवानी की दलाली करने वाली तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के कारण जेल जाएंगी? ज्ञात को कि सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों-विधायकों की रिश्वतखोरी से जुड़े अब तक के अपने तमाम फैसलों को पलट दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से झारखण्ड की सत्ताधारी पार्टी झामुमो को बड़ा झटका लगा है। पार्टी प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी मीडिया के मार्फत मिली है। अब इसपर कानूनी सलाह लिया जाएगा कि यह फैसला कब से लागू माना जाएगा।यह देखना है कि आदेश में क्या है।इसी के आधार पर पार्टी अपना स्टैंड क्लियर करेगी।
प्रदेश भाजपा ने भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया है। प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि संविधान की धारा 105 और 194 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। पैसे लेकर वोट देने या सदन में भाषण देने वाले सांसदों और विधायकों को भी अब मुकदमें से छूट नहीं मिल सकती है। 1998 के फैसले के बाद एक धारणा बन गई थी कि नोट फॉर वोट मामले में विधायक और सांसद कानून से भी ऊपर हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का झारखंड में दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकता है। झामुमो के चार सांसदों और विधायक मामले में पुनर्विचार होने की संभावना बढ़ गयी है।