#Durga Puja 2020:माँ दुर्गा के दर्शन व अष्टमी पूजन के लिए उमड़ी भीड़,पंडाल के अंदर जाने की अनुमति नहीं..
राँची।पट खुलने के बाद दो दिनों तक जहां पंडाल खाली थे, वहीं शनिवार को अष्टमी पूजन तथा माँ दुर्गे के दर्शन के लिए महिलाओं की भीड़ जुट रही है।सुबह से ही दर्शन-पूजन के लिए विभिन्न पूजा पंडालों में लंबी कतारें लगी हैं। पंडाल के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।महिलाएं बाहर से ही पूजा कर रही हैं। खासकर खोइंछा भरने वाली महिलाओं की तादाद ज्यादा है।
परंपरानुसार नवरात्र की अष्टमी व नवमी तिथि को सुहागन महिलाएं अक्षय सुहाग की कामना से माता को सुहाग की वस्तुएं चढ़ाती हैं।सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति केतारी बागान नामकुम, मोरहाबादी स्थित गीतांजलि दुर्गा पूजा समिति, कोकर दुर्गा पूजा एवं अन्य पंडालों में सुबह से ही भीड़ उमड़ी।
संधि पूजा सम्पन्न
महाअष्टमी को दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है। महाअष्टमी पर संधि पूजा की गई। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि क्षण या काल कहते हैं। संधि काल का समय दुर्गा पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। क्योंकि यह वह समय होता है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि का आरंभ होता है। मान्यता है कि, इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध किया था।
संधि पूजा के समय देवी दुर्गा को पशु बलि चढ़ाई जाने की परंपरा है। हालांकि अब मां के भक्त पशु बलि चढ़ाने की बजाय प्रतीक के तौर पर केला,भतुहा और गन्ना जैसे फल व सब्जी की बलि चढ़ाया।इसके अलावा संधि काल के समय 108 दीपक जलाये जाते हैं।
दुर्गा बलिदान
दुर्गा बलिदान का तात्पर्य दुर्गा पूजा के समय दी जाने वाली पशु बलि से है। यह हमेशा नवरात्रि की नवमी तिथि को दी जाती है। बलिदान के लिए अपराह्न का समय अच्छा माना गया है। हालांकि अब लोग पशु बलि की जगह सब्जियों के साथ सांकेतिक बलि देते हैं।
सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव
जिस दिन मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी जिस दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव होता है। यह विदाई का उत्सव होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पान के पत्ते से मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। उसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और उत्सव मनाती हैं। एक दूसरे के सुहाग की लंबी आयु की शुभकामनाएं भी देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि मां दुर्गा 9 दिन तक मायके में रहने के बाद ससुराल जा रही हैं, इस अवसर पर सिंदूर उत्सव मनाया जाता है।