झारखण्ड का ऐसा गांव जहां लोगों के लिए खटिया ही है एंबुलेंस,सालों से ऐसे ही पहुंचते हैं अस्पताल।
■गांव के नीतेश हेम्ब्रम कहते हैं कि यह नजारा इस गांव के लिए कोई नई बात नहीं. सालों से इसी तरह वे लोग मरीजों और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाते रहे हैं. सरकार और जिला प्रशासन से सड़क की मांग करते थक चुके, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।बता दें कई सालों तक गुरु जी यहाँ से सांसद रहें हैं।
दुमका।आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से 20 साल पहले अलग झारखण्ड राज्य बना।लेकिन आज भी उपराजधानी दुमका में कई ऐसे गांव हैं, जो सड़क से नहीं जुड़ पाये हैं।नतीजा गांव के मरीज एवं गर्भवती महिलाओं को खटिया पर लादकर कई किलोमीटर दूर मेनरोड तक पहुंचाया जाता है।वहां से एंबुलेंस के जरिये वे अस्पताल पहुंचते हैं। जरमुंडी प्रखंड के हाथगार गांव का यही हाल है. यह गांव आज भी सड़कविहीन है।
सड़क नहीं होने के चलते गांव तक नहीं पहुंचती एंबुलेंस
जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर पर बसा है जरमुंड़ी प्रखंड का हाथगार गांव।गांव के मोहन मुर्मू कई महीनों से खाट पर पड़ा है।एक साल पहले रोड एक्सीडेंट में मोहन का एक पैर टूट गया।स्थानीय स्तर पर इलाज करवा कर घर लौटा, लेकिन पैर ठीक नहीं हुआ।शहर जाकर अच्छे अस्पताल में इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे।हालांकि एक सामाजिक कार्यकर्ता के सहयोग से जब मोहन को शहर ले जाने की बारी आई, तो गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाई।नतीजा दो किलोमीटर तक मोहन को खटिया पर ढोकर पक्की सड़क तक पहुंचाया गया।तब जाकर वह एंबुलेंस से अस्पताल के लिए गया।
गांव के नीतेश हेम्ब्रम कहते हैं कि यह नजारा इस गांव के लिए कोई नई बात नहीं. सालों से इसी तरह वे लोग मरीजों और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाते रहे हैं. सरकार और जिला प्रशासन से सड़क की मांग करते थक चुके, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
मंत्री ने दिलाया सड़क का भरोसा
सामाजिक कार्यकर्ता कालीचरण ने बताया कि उन्हें मोहन के बारे में जानकारी मिली, तो शहर ले जाकर इलाज कराने का फैसला लिया. लेकिन गांव तक सड़क नहीं होने के चलते मोहन को बाहर ले जाने में काफी दिक्कत हुई।इमरजेंसी केस में गांववाले भगवान भरोसे ही रहते होंगे।
हालांकि स्थानीय विधायक और कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने भरोसा दिलाया है कि हाथगार गांव को जल्द ही सड़क से जोड़ा जाएगा. सरकार इस तरह के विषय पर काफी संवेदनशील है।
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