सेंट्रल जेल की महिला कैदी बनी मां, हत्या मामले में काट रही आजीवन कारावास की सजा
पलामू। मेदिनीनगर सेंट्रल जेल में सजाएफ्ता एक महिला कैदी आज मां बन गयी. आज तड़के उसने पलामू मेडिकल काॅलेज अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया. जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. डाक्टरों के परामर्श के बाद महिला को पुनः सेंट्रल जेल ले जाया जाएगा. महिला के साथ उसकी नवजात भी जेल में रहेगी और अपनी मां के किए की सजा भुगतेगी.
प्रसव पीड़ा के बाद हुई थी भर्ती
महिला सुरक्षाकर्मी ने बताया कि तड़के महिला कैदी को प्रसव पीड़ा हुआ. बाद में एम्बुलेंस से सुरक्षा के बीच महिला का प्रसव कराने के लिए पीएमसीएच में भर्ती कराया गया. सुबह में महिला का नार्मल डिलेवरी हुआ और उसने एक स्वस्थ्य बच्ची को जन्म दिया. डाक्टरों के अनुसार बच्ची का वजन नियमानुसार है. स्वास्थ्य लाभ पूरा होने के बाद महिला कैदी को अस्पताल से छुट्टी दे दी जायेगी.
गढ़वा की है महिला कैदी
महिला कैदी गढ़वा के उरसुगी कुसमा गांव निवासी सतेन्द्र उरांव की पत्नी 35 वर्षीया पत्नी मानो देवी है. मानो देवी के प्रेग्नेंट रहते हुए एक हत्या मामले में गढ़वा न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी. इसके बाद उसे मेदिनीनगर केन्द्रीय कारा में शिफ्ट किया गया. पिछले सात माह से वह केन्द्रीय कारा में है. इससे पहले वह हत्याकांड में ढाई साल की सजा गढ़वा मंडलकारा में काट चुकी है. जमानत के बाद बाहर आने पर वे प्रेग्नेंट हुई. सुनवाई के बाद महिला को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी.
नहीं पहुंचे परिवार वाले, पति बाहर रह कर करता है मजदूरी
बच्ची का पिता सकेन्द्र उरांव बाहर रहकर मजदूरी करता है. जेल प्रशासन ने जब महिला के परिवार वालों को फोन कर बच्ची होने की जानकारी दी तो ससुर छेदी उरांव ने आने से इंकार कर दिया. जब से मानो देवी जेल गई है. उससे मिलने पति कभी भी नहीं आया. ससुर दो बार आये थे.
जमीन विवाद में हत्या बना जेल जाने की वजह
महिला कैदी के अनुसार जमीन विवाद के मामले में गांव में एक हत्या हुई और उसमें उसे फंसा दिया गया. जिसकी हत्या हुई थी उसका शव फांसी पर लटकता हुआ उसके भंडार में मिला था. इसी आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसका तीन साल का बेटा भी जेल में था. जो अब एक माह पहले जमानत के बाद घर जा चुका है. इस मामले में कई अन्य आरोपी बनाए गए थे, लेकिन सभी छूट गए उसको सजा हो गयी.
कहां रहेगा नवजात? क्या कहता है नियम?
मेदिनीनगर केन्द्रीय कारा के अधीक्षक प्रवीण कुमार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के अनुसार बच्ची छह साल तक अपने मां के साथ जेल में रह सकती है. जेल प्रशासन उसकी देखभाल और परवरिश करेगा. इसके बाद बच्ची के परिवार का कोई सदस्य मां के कहने पर बच्ची को रख सकता है. यदि परिवार वाले बच्ची को नहीं रखते तो आगे की जिम्मेवारी जिला प्रशासन की होगी. जेल सुप्रिटेंडेंट ने कहा कि नवजात बच्ची का जन्म प्रमाण पत्र हो या अन्य कोई कागजात, उसमें जेल में रहते हुए जन्म लेने का कोई उल्लेख नहीं होगा. जेल प्रशासन उसका जन्म प्रमाण पत्र बनवायेगा.