Holika Dahan 2021:आज होलिका दहन, बुराई पर अच्छाई की जीत को मनाया जाता है,होलिका की अग्नि में सभी बुराईयों को जला दिया जाता है,जानें किस मुहूर्त में करें होलिका पूजन और दहन।
झारखण्ड न्यूज, राँची।आज फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। आज के दिन होलिका दहन किया जाता है। मान्यता है कि होलिका की अग्नि में सभी बुराईयों को जला दिया जाता है। होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक भी समाप्त हो जाता है। इस दिन लोग सुख समृद्धि और पारिवारिक उन्नति की प्रार्थना करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अपने भाई हिरण्यकश्यप की बातों में होलिका ने प्रहलाद को चिता में जलाने की कोशिश की थी। लेकिन प्रहलाद के बजाय होलिका ही उस चिता में जलकर भस्म हो गई थी। तब से ही होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत को मनाया जाता है।
परम्पराओं के अनुसार बड़ी होली से एक दिन पहले छोटी होली मनाई जाती है। छोटी होली वाले दिन होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत से जोड़ कर देखा जाता है। इस बार ये पर्व 28 मार्च को मनाया जा रहा है। शाम के समय प्रदोष काल में होलिका जलाई जाएगी। इसके बाद अगले दिन यानी 29 मार्च को रंगवाली होली खेली जाएगी।होलिका दहन के दिन जिसे धुलण्डी नाम से भी जाना जाता है।
पूजा विधि: होलिका दहन जिस स्थान पर करना है, उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद वहां सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें। इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें। आप चाहें तो गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं भी बना सकते हैं। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा करें। पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नारियल रखें। साथ में नई फसलें भी रखी जाती हैं। जैसे चने की बालियां और गेहूं की बालियां। कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद सभी सामग्री होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें। ये मंत्र पढ़ें- अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः । अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।। और पूजन के पश्च्यात अर्घ्य अवश्य दें।
होलिका दहन मुहूर्त: होलिका दहन शुभ मुहूर्त में करने की सलाह दी जाती है। भद्रा के समय में होलिका दहन नहीं किया जाता है। इस बार दोपहर 1 बजे तक भद्रा समाप्त हो जाएगा। जिस कारण आप प्रदोष काल शाम के समय में 6 बजकर 37 मिनट से 8 बजकर 56 मिनट के बीच होलिका दहन कर सकते हैं। वहीं होलिका दहन के दिन शुभ योगों में से सर्वोत्तम योग सर्वार्थ सिद्धी योग भी लगा हुआ है।
होली मनाने का कारण: शास्त्रों अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप को अपने बेटे की ये बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। भगवान विष्णु की भक्ति से हटाने के लिए उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को कई तरह की यातनाएं दीं और जब इतना कुछ सहने के बाद भी उसका पुत्र नहीं माना तो अंत में उसने अपनी बहन होलिका को अपने पुत्र को सौंप दिया। होलिका के पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। होलिका प्रह्लाद को जलाने के उद्देश्य से अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी। लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप से खुद होलिका ही आग में जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। इस प्रकार होली का यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
होली की पूजा विधि: रंगवाली होली के दिन प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं का पूजन करें। होलिका की राख की वंदना करके उसे अपने शरीर में लगा लें। इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें। सभी पितरों को नमन करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपके जीवन में सुख-समृद्धि बनाए रखें।
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