#रक्षाबंधन:देश में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है,चीनी वायरस कोरोना ने पर्व त्योहार पर बंधन सा लगा दिया है..
रक्षाबंधन आज:राखी बांधने के लिए दिनभर में हैं 3 मुहूर्त, भविष्योत्तर पुराण कहता है रक्षाबंधन पर्व के बाद भी बांधी जा सकती है राखी।
कोराना की वजह से आज राखी न बांध पाएं तो जन्माष्टमी तक किसी भी शुभ मुहूर्त में किया जा सकता है रक्षाबंधन
अगस्त्य संहिता के अनुसार गौ माता को राखी बांधने से हर तरह के दोष होते हैं दूर
राँची: 03 अगस्त सोमवार यानी आज रक्षाबंधन पर्व हर्षोउल्लाह के साथ मनाया जा रहा है।इस बार वैश्विक महामारी चीनी वायरस कोरोना ने पर्व त्योहार पर बंधन सा लगा दिया है।लेकिन इस अमिट भाई बहन के बंधन को नहीं रोक पाया है।भाइयों की कलाई पर कोरोना काल के बंधन के वाबजूद बहनों ने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र का बंधन बांध रहे हैं।राखी (रक्षा सूत्र )का महत्व बहुत ही है।सावन महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा पर ये त्योहार मनाया जाता है।भविष्य पुराण के अनुसार, सबसे पहले देवराज इंद्र को उनकी पत्नी शचि ने राखी बांधी थी,जिससे इंद्र को युद्ध में जीत मिली।इसके अलावा वामन पुराण के अनुसार, राजा बलि को लक्ष्मीजी ने राखी बांधी थी। पहले रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के लिए ही नहीं था।वैदिक और पौराणिक काल में निरोगी रहने, उम्र बढ़ाने और बुरे समय से रक्षा के लिए योग्य ब्राह्मणों द्वारा अन्य लोगों को रक्षा सूत्र बांधा जाता था।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेताओं ने रक्षाबंधन पर देश वासियों को शुभकामनाएं दी है।
दिनभर में रक्षाबंधन के 3 मुहूर्त
इस बार रक्षाबंधन पर सुबह 9.29 बजे तक भद्रा रहेगी। भद्रा के बाद ही बहनों को अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधना चाहिए। 3 तारीख को सुबह 7.30 बजे के बाद पूरे दिन श्रवण नक्षत्र रहेगा। इसके साथ ही पूर्णिमा भी रात में 9.30 तक रहेगी। इसलिए सुबह 9.29 के बाद पूरे दिन राखी बांध सकते हैं।
सुबह 9:35 से 11.07 तक
दोपहर 2.35 से 3.35 तक
शाम 4.00 से रात 8.35 तक
पंडितों के अनुसार,रक्षाबंधन के दिन भाई के नाम की राखी निकालकर घर के पूजा स्थान पर भगवान के पास रखें। इसके बाद जब भी भाई-बहन साथ हो तब रक्षाबंधन किया जा सकता है।
सालभर में कभी भी किया जा सकता है रक्षाबंधन
काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र बताते हैं कि कोरोना के कारण अगर रक्षाबंधन के दिन बहन भाई को राखी न बांध सके तो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी तक रक्षाबंधन की परंपरा है। इन अगले आठ दिनों में किसी भी शुभ मुहूर्त में राखी बांधी जा सकती है। सिर्फ भद्रा और ग्रहण काल में ये शुभ काम नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही भविष्योत्तर पुराण में बताया गया है कि रक्षाबंधन पूरे साल में कभी भी किया जा सकता है।
रक्षाबंधन पर पूजा की थाली में नारियल के साथ पानी का कलश, चंदन या कुमकुम, चावल, रक्षा सूत्र, मिठाई और दीपक का होना जरूरी है। विद्वानों को कहना है कि इनके बिना रक्षाबंधन अधूरा माना जाता है।
रक्षाबंधन पर जरूरी चीजें
पानी का कलश – पूजा की थाली में तांबे का कलश होना होना चाहिए। कलश के पानी में तीर्थों और देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए भगवान और तीर्थों को साक्षी मानकर ये पवित्र कार्य किया जाता है।
चंदन और कुमकुम – रक्षाबंधन पर पूजा की थाली में चंदन और कुमकुम सबसे जरूरी है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि किसी भी शुभ काम की शुरुआत तिलक लगाकर ही की जानी चाहिए। इसलिए रक्षाबंधन में सबसे पहले बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाते हुए उसकी लंबी उम्र की कामना करती है।
चावल – तिलक के बाद माथे पर अक्षत लगाया जाता है। चावल को अक्षत कहा जाता है। जिसका अर्थ है अक्षत यानी जो अधूरा न हो। इस तरह अक्षत लगाने से ही रक्षाबंधन का कार्य पूर्ण माना जाता है।
नारियल – नारियल को श्रीफल कहा जाता है। श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी और समृद्धि। इसलिए भाई-बहन के जीवन में लक्ष्मी और समृद्धि की कामना से पूजा की थाली में नारियल का होना जरूरी है।
रक्षा सूत्र (राखी) – मणिबंध यानी कलाई पर रक्षासूत्र बांधने से हर तरह के दोष खत्म होते हैं। माना जाता है कि मौली के धागे का कलाई की नसों पर दबाव पड़ने से सेहत संबंधी परेशानियां नहीं रहती।
मिठाई – राखी बांधने के बाद मिठाई खिलाना इस बात का संकेत है कि रिश्तों में कभी कड़वाहट न आए। धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर शुभ काम को करने के बाद मुंह मीठा करना चाहिए। इससे मन प्रसन्न रहता है।
दीपक – दीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को भाई-बहन से दूर रखती है, जिससे दोनों के बीच प्रेम बढ़ता है। इसलिए रक्षाबंधन के बाद दीपक जलाकर भाई की आरती की जाती है।
धर्म ग्रंथों के बताए गए हैं 7 तरह के रक्षा सूत्र
विप्र रक्षा सूत्र – रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ या जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।
गुरु रक्षा सूत्र – गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे अपने शिष्य के दाहिने हाथ में बांधते है।
मातृ-पितृ रक्षा सूत्र – अपनी संतान की रक्षा के लिए माता-पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में करंडक कहा जाता है।
स्वसृ-रक्षा सूत्र – कुल पुरोहित या वेदपाठी ब्राह्मण के रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहन भाई की दाईं कलाई पर मुसीबतों से बचाने के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इस बारे में बताया गया है। इससे भाई की उम्र और समृद्धि बढ़ती है।
गौ रक्षा सूत्र – अगस्त संहिता के अनुसार गौ माता को राखी बांधने से हर तरह के रोग- शोक और दोष दूर होते हैं। यह विधान भी प्राचीन काल से चला आ रहा है।
वृक्ष रक्षा सूत्र – किसी का कोई भाई ना हो तो उसे बरगद, पीपल, गूलर के पेड़ को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए। पुराणों में ये बात खासतौर से बताई गई है।
अश्वरक्षा सूत्र – ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता के अनुसार पहले घोड़ों को भी रक्षा सूत्र बांधा जाता था। इससे सेना की भी रक्षा होती थी। आजकल घोड़ों की जगह गाड़ियों को भी ये सूत्र बांधा जाता है।