#मनसा देवी पूजा:इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण मनसा पूजा की रौनक फीकी है,लेकिन प्राचीन काल से चली आ रही पूजा सोमवार को देवी की पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना हो रही।
राँची।नागों की देवी और भगवान शिव की मानस पुत्री देवी मनसा की पूजा झारखण्ड, बिहार,बंगाल समेत अन्य जगहों पर मनाया जाता है।झारखण्ड कोल्हान प्रमंडल क्षेत्र के विभिन्न गांवों में मनसा देवी पूजा धूमधाम के साथ की जाती है। इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण मनसा पूजा की रौनक फीकी है। ना मनसा मंगल के गाने बज रहे हैं और न जांत की धुन सुनाई दे रही है।
पूजा की रीति रविवार से ही प्रारंभ हो गई है और सोमवार को देवी की पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना हो रही। मनसा पूजा झारखण्ड,ओडिशा, पश्चिम बंगाल और आसपास के क्षेत्र के प्रमुख त्योहारों में एक है। हालांकि, देवी की पूजा पूरे देश में होती है। इस अवसर पर मंदिरों में मां मनसा की आकर्षक व भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है। चारों ओर मनसा मंगल और जांत के गीतों से आकाश गुंजायमान रहता है।
माँ मनसा सर्प की देवी
मान्यता है कि शिव पुत्री माँ मनसा सर्प की देवी है। माँ मनसा की पूजा से बिच्छू व सर्पदंश से सुरक्षित रहने के साथ सर्पदोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है। इन्हें शिव पुत्री, विष की देवी, कश्यप पुत्री और नागमाता के रूप में भी माना जाता है। देवी मनसा की पूजा आमतौर पर बरसात के दौरान की जाती है, क्योंकि सांप उस दौरान अधिक सक्रिय रहते हैं। बंगला व ओड़िया पंचांग के अनुसार श्रावण संक्रांति, भादो संक्रांति और आश्विन संक्रांति के दिन मां मनसा की पूजा की जाती है।
जांत और झापान का होता है आयोजन
मनसा पूजा के दौरान जांत और झापान का आयोजन किया जाता है। पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला-खरसवां जिले के अधिकांश गांवों में मनसा मंदिर है, जहां पारंपरिक रुप से देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अवसर पर मनसा मंगल पाठ के अलावा जांत और झापान का आयोजन होता है। जांत में मां मनसा देवी के गुणगान पर आधारित भजन-कीर्तन किया जाता है। इसमें देवी के भक्तों की टोली वाद्य यंत्रों के साथ उनकी कहानी पर आधारित गीत गाती है। वहीं झापान में देवी के भक्त जहरीले सांपों के हैरतअंगेज खेलों का प्रदर्शन करते हैं।
भगवान शिव की मानस पुत्री है मनसा देवी
मान्यता के अनुसार मां मनसा देवी भगवान शिव की मानस पुत्री हैं। वहीं पुराने ग्रंथो में यह भी कहा गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। कुछ ग्रंथो के अनुसार नागराज वासुकी की बहन पाने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें मनसा देवी को भेंट किया था। वासुकी इनके तेज को संभाल न सके और इनके पोषण की जिम्मेदारी नागलोक के तपस्वी हलाहल को दे दी। इनकी रक्षा करते-करते हलाहल ने अपने प्राण त्याग दिए थे। मनसा देवी भक्तिभाव से पूजा करने वाले भक्तों के लिए बेहद दयालु और करुणामयी हैं। मनसा देवी का पंथ मुख्यत: भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में केंद्रित है। माता मनसा देवी, नाम के अनुरूप ही भक्तों की समस्त मंशाओं को पूरी करने वाली देवी हैं। नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के प्रतिमाओं में पुत्र आस्तिक को उनकी गोद में लिए दिखाया जाता है।
घर में मां मनसा देवी की पूजा होती है। इस अवसर पर देवी की आकर्षक प्रतिमा स्थापित की जाती है। सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। पूरे परिवार के लोग देवी की पूजा करते हैं। मां मनसा करुणामयी देवी हैं। इनकी पूजा- अर्चना करने से अनिष्टकारी बाधाओं से छुटकारा मिलता है। बचपन से ही मनसा देवी की पूजा अर्चना कर रहे हैं।
विष की देवी
प्राचीन ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था एंव साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। 14 वी सदी के बाद इन्हे शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। यह मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होंने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था, परंतु यह भी कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ।
मनसा का अर्थ अभिलाषा
मनसा का अर्थ अभिलाषा से भी होता है। हरिद्वार की शिवालिक पहाडि़यों पर स्थित है मनसा देवी का मन्दिर अत्यन्त प्राचीन और सिद्धपीठों में से एक है। मनसा देवी के मन्दिर में एक मूर्ति के पॉच मुख और दस भुजायें है और दूसरी मूर्ति की अठारह भुजायें व एक मुख है। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी। उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ। उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए तथा उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया।
सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ
मनसा विजय के अनुसार वासुकि नाग की माता नें एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई। शिव मनसा को लेकर कैलाश गए। माता पार्वती नें जब मनसा को शिव के साथ देखा तब चण्डी का रूप धारण कर मनसा के एक आँख को अपने दिव्य नेत्र तेज से जला दिया। राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
मनसा देवी की साधना विधि
साधना सामग्री-लाल चन्दन की लकड़ी, नीला व सफेद धागा जो 8-8 अंगुल का हो। कलश के लिए नारियल, सफेद व लाल वस्त्र, फल, पुष्प, दीप, धूप व पॅच मेवा समेत आदि सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए।
प्रातःकाल स्नान ध्यान करके पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र बिछा दे और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछाकर उस पर एक 7 मुख वाला नाग ऑटे का बनाकर स्थापित करें। दूसरे पात्र में एक शिवलिंग स्थापित करें।
पहले गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें उसके बाद भगवान बिष्णु का फिर शिव जी का पंचोपचार पूजन करें। पूजन में धूप, दीप,फल, पुष्प, नैवेद्य आदि सभी को अर्पित करें। यह साधना रविवार को सांय 7 से 11 बजे के बीच करनी चाहिए। साधना करने के लिए रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए। साधना काल में अखण्ड ज्योति जलती रहनी चाहिए।
इस मन्त्र ‘‘ऊॅ हु मनसा अमुक हु फट”का सवा लाख बार जप करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
मन्त्र में जहां पर अमुक शब्द लिखा वहां पर अपनी कोई भी मनोकामना का प्रयोग कर सकते है।
श्री सर्प सूक्त
ब्रह्म्लोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||1||
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य: |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||2||
कद्र्वेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||3||
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य: |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||4||
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||5||
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||6||
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||7||
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||8||
ग्रामे वा यदि वारन्ये ये सर्पप्रचरन्ति |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||9||
स्मुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जलंवासिन: |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||10||
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: |
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||11||
मनसा देवी की साधना से लाभ
मनसा देवी की साधना करने से कैसा भी सर्पदोष हो समाप्त हो जाता है।
आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए मनसा देवी की आराधना करना उत्तम रहता है।
अगर आपके घर में बाधायें बनी रहती है तो मनसा देवी की नियमित पूजा करें। हर बाधा समाप्त हो जायेगी।
किसी के उपर भूत-प्रेत आदि शक्तियों का साया मडरा रहा है तो मनसा देवी की आराधना करने से लाभ मिलता है।
जिस व्यक्ति काफी दवा करने के बाद भी रोग ठीक नहीं होता है, उसे मनसा देवी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से वह शीघ्र ही स्वस्थ्य हो जायेगा।
जिन माताओं बहनों को शारीरिक पीड़ा बनी रहती है, उन्हें मनसा देवी का पूजन करने से अत्यन्त लाभ मिलता है।