पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने की सहायक पुलिसकर्मियों से मुलाकात, कहा: हेमंत सरकार इनके साथ कर रही अमानवीय व्यवहार
राँची। नौकरी में परमानेंट करने की मांग को लेकर पिछले शनिवार से अपने अधिकारों के लिए आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मियों से बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुलाकात की। इस दौरान रघुवर दास ने कहा कि नक्सल क्षेत्र के युवाओं को गुमराह होने से बचाने के लिए हमारी सरकार ने अनुबंध पर सहायक पुलिस में आदिवासी- मूलवासी युवाओं को नियुक्त किया। नक्सलवाद पर काबू पाने में इनकी भूमिका अहम रही। आदिवासी-मूलवासी की हितैषी होने का दावा करनेवाली वर्तमान सरकार इनके साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है।वहीं उन्होंने भूमि सम्बंधी पर भी सरकार पर हमला बोले।
उन्होंने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आदिवासी-मूलवासी युवक-युवतियों को नक्सलियों के चंगुल से बचाने के लिए हमारी सरकार ने अनुबंध पर सहायक पुलिस की नियुक्ति शुरू की थी। तीन साल के अनुबंध के बाद नियमित बहाली करने का लक्ष्य था। इसके लिए समुचित प्रावधान भी किये गये।आदिवासी-मूलवासियों की हितैषी होने का दावा करनेवाली वर्तमान सरकार इन पर अत्याचार कर रही है। उक्त बातें पूर्व मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास ने कहीं। वे आज मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे सहायक पुलिसकर्मियों से मुलाकात करने पहुंचे। उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले लगातार खबरें आती थीं कि गरीबी से त्रस्त नक्सल प्रभावित क्षेत्र के युवाओं को डरा कर या बरगलाकर नक्सली अपने दस्ते में शामिल करते हैं। इसे देखते हुए सरकार ने फैसला किया कि इन क्षेत्रों के युवाओं को अनुबंध के आधार पर सहायक पुलिस में भर्ती किया जायेगा। तीन साल के बाद इनकी नियुक्ति नियमित रूप में कर ली जायेगी। इनकी नियुक्ति से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों को लगाम लगाने में काफी मदद मिली। इन्होंने काफी ईमानदारी से काम किया। कोरोना के दौरान भी इनका कार्य सराहनीय रहा। अब हेमंत सोरेन की सरकार ने इनकी नियुक्ति पर रोक लगा कर इनके साथ अन्याय किया है। यह अमानवीय व्यवहार है। सरकार को संवदेनशील होकर इनकी जायज मांगे माननी चाहिए।
श्री रघुवर दास ने कहा कि झामुमो एक साल में पांच लाख नियुक्ति करने का वादा कर सत्ता में आयी। लेकिन अब उसे अपना वादा याद नहीं है। नयी नियुक्तियां तो दूर की बात है, हमारे समय रोजगार पाये लोग आज बेरोजगार हो रहे हैं। चाहे सहायक पुलिस हो या अन्य अनुबंधकर्मी। इसी प्रकार स्थानीय बच्चों को नौकरी देनेवाली कंपनियां झारखंड से अपना कारोबार समेट रही हैं। सरकार की नीतियों के कारण लोग बेरोजगार हो रहे है। मैं सरकार के मांग करता हूं कि इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करें। जबतक प्रक्रिया चलती है, तब तक इनका अनुबंध विस्तार करे। सहायक पुलिस कर्मियों को आंदोलन करते चार दिन हो गये हैं, लेकिन अब तक न तो कोई मंत्री न ही अधिकारी इनकी समस्या सुनने आया है। उलटे इनपर एफआइआर की जा रही है, इनकी परिवार वालों को धमकाया जा रहा है। लोकतंत्र में इस प्रकार का दमन बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। जिस सरकार ने आंदोलनकारी का चोला पहनकर जनता के सामने भाजपा सरकार की बदनामी की और सत्ता हासिल की। वही सरकार मुंह छिपाये घुम रही है। इन सहायक पुलिसकर्मियों के दर्द को दरकिनार कर अपनी जिम्मेवारी से भाग रही है सरकार। ये तपती धुप और कोरोना महामारी के बीच अपने घर से दूर छोटे-छोटे बच्चों को लेकर आंदोलन करने को बाध्य हैं। राज्य सरकार एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाकर इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करे, वरना भाजपा आंदोलन करने को बाध्य होगी। श्री दास ने कहा कि बिहार से लौटने के बाद सहायक पुलिसकर्मियों के साथ वे भी एक दिन का सांकेतिक आंदोलन करेंगे।
झारखण्ड लैंड म्यूटेशन बिल केे सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल का काम है नीतियां बनाना और ब्यूरोक्रेसी का काम है, उसे लागू कराना। लेकिन इस सरकार में उल्टा हो रहा है। ब्यूरोक्रेट्स नीतियां बना रहे हैं और मंत्रिमंडल उसको लागू कर रहा है। वर्तमान सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री कहते हैं कि उन्होंने कैबिनेट में आया संलेख पढ़ा ही नहीं और यह पास हो गया। इसी तरह जब हेमंत सोरेन जी पिछली बार मुख्यमंत्री बने थे और सीसैट को समाप्त किया था, तब भी उन्होंने विधानसभा में माना था कि अधिकारियों ने उनसे हस्ताक्षर करवा लिए थे। श्री दास ने कहा कि यह बिल मेरे समय में भी राजस्व विभाग के द्वारा आया था, लेकिन इसमें आदिवासी मूलवासियों की जमीन लूटने का डर था, इस कारण दो-दो बार इसे वापस लौटा दिया गया था। झामुमो के बड़े-बड़े नेता, बिल्डर आदि ने गरीब आदिवासियों को जमीन को लूटने का काम किया था, अब अपनी जमीन को बचाने के लिए उस अधिकारी पर कोई कार्यवाही ना हो, यह बिल लाया गया है।
रघुवर दास के कार्यकाल में ही हुई थी सहायक पुलिसकर्मियों की नियुक्ति
राज्य के 12 नक्सल प्रभावित जिलों में साल 2017 में रघुवर दास के कार्यकाल में ही 2500 सहायक पुलिसकर्मियों की कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति की गई थी। सहायक पुलिसकर्मियों का कहना है कि अनुबंध खत्म हो जाने के बाद उन्हें परमानेंट कर देने की बात कही गई थी। लेकिन, अभी तक उन्हें परमानेंट करने की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। सहायक पुलिसकर्मियों का कहना है कि नियुक्ति के दौरान उन्हें सिर्फ अपने थाना क्षेत्र में ही ड्यूटी करने की बात कही गई थी लेकिन वे अपने थाना समेत अपने जिला और अन्य जिलों में भी कई तरह की ड्यूटी कर चुके हैं।
सहायक पुलिसकर्मियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होगी, वे लोग किसी कीमत पर अपने गृह जिला नहीं लौटेंगे। 12 जिलों से आए सहायक पुलिसकर्मियों से संबंधित जिलों के एसपी और सार्जेंट मेजर लगातार संपर्क कर उन्हें वापस ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। मोरहाबादी मैदान में भी दो से तीन एसपी प्रतिदिन सहायक पुलिस कर्मियों को समझाने के लिए आ रहे हैं, लेकिन उनकी बात कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं है।
मोरहाबादी मैदान के चारों ओर लगी बैरिकेडिंग
एहतियातन मोरहाबादी मैदान के समीप सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। मैदान से बाहर निकलने वाले चारों तरफ के रास्ते में बैरिकेडिंग की गई है। पुलिस बल तैनात किए गए हैं। वरीय पुलिस अधिकारियों द्वारा सख्त हिदायत दी गई है कि किसी भी हाल में सहायक पुलिस कर्मियों को सीएम आवास और राजभवन की ओर नहीं जाने दिया जाए। हालांकि, सहायक पुलिसकर्मी लगातार अपनी बात सीएम तक पहुंचाने के लिए राजभवन की ओर जाने का प्रयास कर रहे हैं। सहायक पुलिस कर्मियों पर दबाव बनाने के लिए प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आवेदन के आधार पर प्राथमिकी भी दर्ज की जा चुकी है। हालांकि इसके बाद भी सहायक पुलिसकर्मी मानने के बजाय और भी ज्यादा आक्रोशित हो गए हैं।