गुमला:शहीद जवान को दी गई अंतिम विदाई,उपायुक्त-एसपी समेत सैकड़ो ग्रामीणों ने दी शहीद जवान को श्रद्धांजलि,पूरा गांव गमगीन…..

गुमला।झारखण्ड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के गोईलकेरा जंगल मे नक्सलियों द्वारा बिछाए गए आईईडी की चपेट में आने से गुमला के लाल संतोष उरांव शहीद हो गये थे। उनका पार्थिव शरीर शानिवार को जैसे ही सड़क मार्ग से उसके पैतृक गांव तुरिया डीह पहुँचा तो पूरा गांव गमगीन हो गया।सुबह करीब 9 बजे पार्थिव शरीर को लेकर पुलिस प्रशासन प्रखंड मुख्यालय में प्रवेश कर गये। भारत माता की जय, संतोष उरांव अमर रहे का नारा लगने लगा। पार्थिव शरीर पर पुष्प वर्षा होने लगी। घाघरा प्रखंड मुख्यालय के चांदनी चौक में सड़क के दोनों तरफ लोगों की भीड़ थी । शहिद संतोष की माँ गीता देवी बेटे के पार्थिव शरीर से लिपट कर रोने लगी। पत्नी फुल सुंदरी भी अपने आंसू नहीं रोक सकी। शहीद संतोष के दोनों बच्चे 8 वर्षीय बेटा सिद्धार्थ और 5 वर्षीय आदित्य भी पिता के शव को निहारते रहे। दोपहर में सरना रीति रिवाज के साथ शहीद जवान को गांव में अंतिम विदाई दी गयी।

डीसी कर्ण सत्यार्थी, एसपी हरवेंद्र सिंह,अभियान एसपी मनीष कुमार,एसडीपीओ मनीष चंद्रलाल,थाना प्रभारी अमित चौधरी सहित सीआरपीएफ की पूरी टीम ने सलामी दी। साथ ही अधिकारियों ने पुष्प समर्पित कर अंतिम विदाई दिया। मौके पर डीसी व एसपी ने शहीद की पत्नी, माँ व उसके दोनो बच्चो से बातचीत कर ढाढ़स बधाया । एक लाख रुपये का चेक भेंट की। मौके पर डीसी ने कहा कि सरकार व जिला प्रशासन पूरी तरह से परिवार के साथ है। शहीद जवान संतोष के परिवार व आश्रित को हर सरकारी सुविधा प्रदान की जाएगी।

बचपन के दोस्त ने बताया कि सभी की चिंता करता था शहीद संतोष के अंतिम संस्कार के दौरान बचपन के दोस्त सहदेव भगत भीड़ से अलग हटकर काफी रो रहे थे। दोनों ने स्कूल और कॉलेज साथ पढ़ाई की है। उन्होंने कहा, संतोष सभी की चिंता करता था । हमेशा गांव के युवाओं को देश सेवा में शामिल होने के लिए अभी से मेहनत करने की सलाह देता था।

शहीद जवान की कमाई से चलता था पूरा परिवार

संतोष के भाई संत राम उरांव ने कहा, संतोष के शहीद हो जाने से पूरा परिवार अब बेसहारा हो गया है। संतोष के ही कमाई से घर चलता था। पूरे परिवार के देखरेख की जिम्मेदारी वह खुद उठाता था। वह अपने बच्चो के साथ उनके भी दो बच्चो की पढ़ाई व परवरिश राँची के लिवंस एकेडमी स्कूल में कराते थे। चारो बच्चो को वह पढ़ा लिखाकर काबिल बनाना चाहता था। भाई ने कहा कि संतोष का कहना रहता था कि वह बच्चों की चिंता छोड़ दे। वह खुद उन्हें पढ़ा लिखाकर अपने कदमो में खड़ा कर देगा। तुम सिर्फ माँ और घर का अच्छे से ख्याल रखना।