कोरोना के खतरे के कारण लोकआस्था के सबसे बड़े पर्व छठ की उत्साह पड़ी फीकी
राँची। लोकआस्था का महापर्व ‘चैती छठ’ आज नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए श्रद्धालुओं में उत्साह भरा माहौल नहीं दिख रहा है। व्रतियों का कहना है कि पूरे देश में लॉकडाउन है, ऐसी परिस्थिति में छठ करना संभव नहीं है। उनका मानना है कि यह पूजा अकेले नहीं की जा सकती, इसमें पूरा परिवार और सगे-संबंधी साथ होते हैं। इस कारण इस माहौल में पूजा करने में काफी परेशानी होगी।
छठ मुख्यतः बिहार और उत्तरप्रदेश में प्रचलित रहा है लेकिन वर्तमान में यह पर्व बिहार-उत्तर प्रदेश के अलावा विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। जहां-जहां बिहार के लोग रहने गए अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और धरोहर के रूप में छठ को भी ले गए और आज यह पर्व को इतना ज्यादा पसंद किया जाने लगा है कि विदेशों में भी अब इसके गीत गूंजने लगे हैं। साल में दो बार चैत्र और कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष में महापर्व छठ व्रत होता है, जिसमें श्रद्धालु भगवान भास्कर की अराधना करते हैं।
इस पर्व को करने वालों में पुरुष से अधिक महिला की संख्या होती है।इस साल चैती छठ में श्रद्धालुओं में उत्साह भरा माहौल नहीं दिख रहा है।कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए कई व्रतियों ने छठ पर्व करना रद्द कर दिया है। हालांकि कुछ लोग अपने घर पर रहकर ही चैती छठ मना रहे हैं।व्रतियों की दुआ है कि देश बस, कोरोना वायरस से जंग जीत जाए। छठ को लेकर घर-घर में छठ के गीत गूंजने लगते हैं। “ केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय, आदित लिहो मोर अरगिया., दरस देखाव ए दीनानाथ., उगी है सुरुजदेव., हे छठी मइया तोहर महिमा अपार., कांच ही बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाय ….. , गीत से पूरा वातावरण गुंजायमान हो जाता था लेकिन इस बार छठ पर आधारित गीत सुनने को नहीं मिल रहे हैं।
चैती छठ के पहले दिन व्रती नर-नारियों ने नहाय-खाय के संकल्प के तहत निर्मल जल में स्नान करने के बाद अरवा भोजन ग्रहण कर इस व्रत को शुरू किया। इसके बाद व्रती खरना के दिन कल दिनभर के निर्जला उपवास के बाद सूर्यास्त होने पर भगवान सूर्य की पूजा कर एक बार ही दूध और गुड़ से बनी खीर खायेंगे और उनका करीब 36 घंटे का निराहार-निर्जला व्रत शुरू हो जायेगा। इस महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को फल और कंद मूल से प्रथम अर्घ्य अर्पित करेंगे। इसके अगले दिन प्रात: व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देंगे और उनके पारण करने के बाद व्रत की समाप्ति होगी ।