#jharkhand:कभी डायन के नाम पर प्रताड़ित हुई,लेकिन हार नहीं मानी,सैकड़ों लोगों का सहारा बनीं छुटनी महतो,मिला पद्मश्री पुरस्कार
राँची।झारखण्ड के लिए सोमवार का दिन गौरव भरा रहा।गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों और राष्ट्रपति पदक की घोषणा की गयी।झारखण्ड में डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभानेवाली सरायकेला-खरसावां निवासी छुटनी महतो को ‘पद्मश्री’ पुरस्कार दिया जायेगा।वहीं, नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में अपने साथियों की जान बचाते हुए शहीद होनेवाले लोहरदगा निवासी एएसआइ बनुआ उरांव को मरणोपरांत ‘राष्ट्रपति वीरता पदक’ पुरस्कार देने की घोषणा की गयी।
झारखण्ड में सात छऊ कलाकारों को पद्मश्री अवार्ड दिलाने वाले कलानगरी के रूप में विख्यात सरायकेला के नाम एक और पद्मश्री अवार्ड जुड़ गया है। यह अवार्ड कोई कलाकार नहीं बल्कि अपने संघर्ष की बदौलत प्रताड़ित महिलाओं का सहारा बनी छुटनी महतो को मिला है। छुटनी महतो को डायन के नाम पर घर से निकाल दिए जाने के बाद वह चुप नहीं बैठी, बल्कि डायन के नाम पर प्रताड़ित लोगों का सहारा बनीं। आज वह झारखण्ड ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों के प्रताड़ित महिलाओं के लिए ताकत बन चुकी हैं। लगभग 63 वर्षीया छुटनी महतो सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड के भोलाडीह बीरबांस का रहने वाली हैं। छुटनी निरक्षर हैं लेकि हिन्दी, बांगला और ओड़िया पर उसकी समान पकड़ है।
पहली बार सुना पद्मश्री अवार्ड का नाम
छुटनी महतो को पद्मश्री अवार्ड मिलने की सूचना मीडिया से मिली। उन्होंने बताया कि इससे पहले इस पुरस्कार के बारे में वह नहीं जानती थीं। वह अवार्ड मिलने की सूचना से खुश हैं। अब वह दोगुनी खुशी व उत्साह के साथ कार्य करेंगी और जीवनपर्यंत प्रताड़ित महिलाओं के खिलाफ आवाज उठाएंगी। उन्होंने कहा कि मेरा यह पद्मश्री अवार्ड मेरे साथ काम करने वाली सभी महिलाओं के मेहनत का प्रतिफल है।
संघर्ष से शिखर पर पहुंचने का सफर
गम्हरिया के महताइनडीह के लोगों ने गांव में घटने वाली घटनाओं को डायन से जोड़ कर छुटनी को डायन की संज्ञा दे दी थी। ग्रामीणों ने तथाकथित तांत्रिक के कहने पर डायन के नाम पर छुटनी को मल-मूत्र पिलाया। इतना ही नहीं पेड़ से बांधकर पीटा। इसके बाद हत्या की योजना बनाने लगे। इस बात की भनक लगते ही छुटनी अपने चारों बच्चों के साथ गांव छोड़ कर भाग गयी। कुछ माह इधर-उधर गुजारने के बाद अपने मायके झाबुआकोचा पहुंची। यहां कुछ माह रहने के दौरान पति धनंजय महतो भी बच्चों को छोड़कर चला गया। छुटनी बताती हैं कि जब वह गांव वालों के खिलाफ केस करने गई तो पुलिस ने उसकी मदद नहीं की। उसके बाद छुटनी ने कुछ करने की ठानी। उन्होंने अपने जैसी पीड़ित 70 महिलाओं का एक संगठन बनाया और इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी। वह गैर सरकारी संस्था आशा के संपर्क में आईं और उन्हें उनका उद्देश्य मिल गया।
आज वह सरायकेला के बीरबास पंचायत के भोलाडीह में संचालित परिवार परामर्श केंद्र की संयोजिका हैं। डायन के नाम पर प्रताड़ित महिलाओं की सहायता को वह अपना धर्म मानती हैं।
उनसे लड़ाई जो महिलाओं का सम्मान नहीं करते
छुटनी ने बताया डायन के नाम पर मैंने गहरा जख्म झेला है। चार बच्चों को लेकर घर छोड़ना पड़ा। ओझा के कहने पर ग्रामीणों ने ऐसा जुल्म किया, जिसकी कल्पना सभ्य समाज नहीं कर सकता है। पुलिस प्रशासन भी ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है। मैं उस असभ्य समाज से लोहा ले रही हूं, जहां नारी को सम्मान नहीं मिलता। मरते दम तक मेरा संघर्ष जारी रहेगा।
डायन प्रताड़ना को लेकर बना कानून
छुटनी की जिद ही थी कि डायन प्रताड़ना को लेकर सरकार कानून बनाने को विवश हुई और लगभग छह राज्यों में डायन प्रताडना को लेकर कानून बना। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी व उनके मंत्रिमंडल ने इसे कानून का शक्ल देकर डायन प्रथा के खिलाफ कानून बनाया और इसके बाद छह राज्यों में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम लागू हो गया।