देश में 90 लाख घरेलू वर्कर्स,गुलामों जैसा सलूक किया जाता है,कुंठित और बीमार लोग परेशान करते,गर्म लोहे के चिमटे से दागते, नंगाकर पीटते…
डेस्क टीम:राँची/नई दिल्ली। “मेरे मामा पांच महीने मुझे पहले काम दिलाने के लिए झारखण्ड से गुरुग्राम लेकर आए। यहां मैं मनीष खट्टर और कमलजीत कौर के घर पर काम करने लगी। घर का सारा काम करने के अलावा उनकी छोटी बच्ची की भी देखभाल करती। कमलजीत कौर किसी बात पर नाराज होती तो मुझे लोहे के गर्म चिमटे से दागती और बुरी तरह पीटती। दोनों पति-पत्नी नंगा करके मारते। प्राइवेट पार्ट्स पर चोट पहुंचाते। चेहरे और हाथों पर ब्लेड चलाते। खाने में थोड़े से चावल देते। भूख से बेहाल होकर कई बार कूड़े के डिब्बे तक से खाना निकालकर खाती।“नाबालिग सीमा (बदला हुआ नाम) ने FIR में यह आपबीती बयां की है। उसे 7 फरवरी को गुरुग्राम से रेस्क्यू कराकर उसे उसके घर सिमडेगा भेज दिया गया।
यह कहानी सिर्फ शहरी आम घरों तक ही नहीं है, बल्कि बॉलीवुड में भी सुनाई दे जाती है। हाल ही में एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दिकी की हाउस हेल्प सपना रॉबिन मसीह ने उन पर आरोप लगाया कि उसे दुबई के घर में अकेला छोड़ दिया गया। उसका आरोप था कि उसके पास खाने-पीने तक की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन बाद में वह अपने बयान से मुकर गई।आखिर क्या वजहें हैं कि कुछ लोग घर में काम करने वालियों के साथ इस तरह की क्रूरता करते हैं? हमें ये भी समझना होगा कि देश में डोमेस्टिक हेल्पर्स की स्थिति कितनी खराब है और उनकी क्या जरूरतें हैं?
देश में 90 लाख से ज्यादा डोमेस्टिक वर्कर्स, मगर पगार तय नहीं
केंद्रीय श्रम मंत्रालय के मुताबिक देश में 91 लाख से अधिक डोमेस्टिक वर्कर्स हैं, जो ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं।नेशनल एलायंस फॉर डोमेस्टिक वर्कर्स (NADW) की फाउंडर रेखा सिंह बताती हैं कि घरों में काम करने वाली महिलाओं के साथ मारपीट, गाली-गलौज और कभी-कभी यौन शोषण तक होता है। उन्हें तय पगार नहीं मिलती। वो बीमार पड़ जाएं तो पगार में से पैसे काट लिए जाते हैं। उन्हें किसी तरह की सोशल सिक्योरिटी नहीं दी जाती।
अपनी मांगों को लेकर घरेलू कामगारों ने हाल ही में नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर डोमेस्टिक वर्कर्स के बैनर तले 20 से अधिक राज्यों में प्रदर्शन किया था। उनकी मांगें क्या हैं आइए जानते हैं-
भारत में हर महीने 10 हजार से कम कमाई
बेंगलुरु की कंपनी babajob.com के सर्वे के मुताबिक, भारत में काम करने वालियों को हर महीने 10,000 रुपए से कम की कमाई होती है। अहमदाबाद में इनको हर महीने 6,500 रुपए मिलते हैं वहीं मुंबई में घर का काम करने के लिए 7,500 रुपए तक दिए जाते हैं। कोलकाता में यह सबसे कम 5,000 रुपए है। छोटे शहरों में यह तनख्वाह 3,000 से 4,000 के बीच रहती है।
अब जरा दुनिया में डोमेस्टिक वर्करों के हालात पर एक नजर डालते हैं।
43% से अधिक डोमेस्टिक हेल्पर्स को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में डोमेस्टिक वर्कर्स कन्वेंशन को अपनाया गया था। 12 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी दूसरों के घरों में काम करने वाली महिलाएं खुद को वर्कर के रूप में स्थापित करने के लिए लड़ रही हैं।पूरी दुनिया में 7.5 करोड़ से अधिक डोमेस्टिक हेल्प अपनी रोज की बुनियादी जरूरतें भी पूरा नहीं कर पाते। पूरी दुनिया में 43% से अधिक डोमेस्टिक हेल्पर्स को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता।
न्यू इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPI) रिसर्च के अनुसार, अमेरिका में 22 लाख से अधिक घर के काम करने वालों को जरूरत से कम सैलरी मिलती है और ये लोग दूसरे कामगारों की तुलना में गरीबी में जीवन जी रहे हैं।एक डोमेस्टिक वर्कर को प्रति घंटे 13.79 डॉलर यानी 1140 रुपए मिलते हैं जबकि सामान्य वर्कर को 22 डॉलर यानी 1800 रुपए मिलते हैं।
अमेरिका में जहां 90% से अधिक डोमेस्टिक वर्कर्स महिलाएं हैं वहीं अरब देशों और साउथ एशिया के देशों में डोमेस्टिक हेल्प महिलाएं 50 से 55% हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि डोमेस्टिक वर्करों में भी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम सैलरी मिलती है।
कुंठित लोग कामवालियों को करते हैं प्रताड़ित
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र विभाग के प्रोफेसर एके जोशी बताते हैं कि डोमेस्टिक हेल्प से क्रूरता सभी नहीं करते। हेल्प को प्रताड़ित करने वाले मानसिक रूप से कुंठित और बीमार होते हैं।हेल्प को टॉर्चर करके उन्हें खुशी मिलती है। जो लोग जीवन में सफल नहीं हो पाते या कुछ खास न कर पाने की कुंठा तले दबे होते हैं, उन्हें अपने से कमजोर लोगों को कष्ट देने में आनंद मिलता है।
डोमेस्टिक हेल्प में अधिकतर एथनिक समुदाय के
ILO के अनुसार, पूर दुनियाभर में काम रहे डोमेस्टिक वर्करों में से अधिकतर पिछड़े वर्ग के होते हैं। अमेरिका में 55 से अधिक डोमेस्टिक वर्कर ब्लैक और हिस्पैनिक समुदाय के हैं। इसी तरह साउथ अफ्रीका और ब्राजील में 60% से अधिक घरेलू कामगार अफ्रीकन मूल के हैं। भारत में भी डोमेस्टिक हेल्प के रूप में काम करे रहे अधिकतर लोग पिछड़े समुदाय से हैं।
ह्मूमन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए काम कर रही संस्था बाल कल्याण संघ ने इस पर स्टडी की है। इसमें उन 70 लड़कियों से बात की गई है जिन्हें मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया है।स्टडी के अनुसार, 70 लड़कियों में 90% ST और 10% SC से हैं। इनमें से 31% लड़कियों ने कहा कि दलालों ने उन्हें डोमेस्टिक हेल्प के रूप में रखवाया। 20% लड़कियों ने कहा कि उनके साथ फिजिकल और सेक्शुअल अब्यूज भी हुआ। इनमें सबसे ज्यादा 87% लड़कियों ने बताया कि वो अपने घर कभी पैसे नहीं भेज सकीं। इसका कारण यह है कि पैसे दलाल ले लेते थे।
डोमेस्टिक हेल्प से लोग गुलामों की तरह बर्ताव करते हैं, उसकी एक बड़ी वजह प्लेसमेंट एजेंसियों को बड़ी रकम भुगतान कर लड़कियों, महिलाओं को अपने घर में काम पर रखना है। यातना और शोषण का यह सिलसिला दलालों और बिचौलिए से होते हुए शहरों तक दिखाई देता है।
एक लड़की पर बिचौलिए को मिलते हैं 10 हजार
दिल्ली-मुंबई में मौजूद प्लेसमेंट एजेंसियां गांवों में दलाल या बिचौलिए को रखती हैं। ये गांव की ही किसी लड़की से शादी या अच्छी नौकरी का झांसा देकर शहर लाते हैं, जहां वह इन्हें प्लेसमेंट एजेंसी को सौंप देते हैं। एक लड़की पर दलाल को 5,000 से 10,000 रुपए तक मिलता है।
11 महीने के लिए प्लेसमेंट एजेंसी को 1 लाख तक पेमेंट
प्लेसमेंट एजेंसियां लड़कियों को डोमेस्टिक हेल्प के रूप में किसी घर में रखवाती हैं और घर के मालिक से वो 11 महीने का कांट्रैक्ट करती हैं। एजेंसियां एडवांस में 40 हजार से 1 लाख रुपए तक लेती हैं। यही नहीं, ये एजेंसियां डोमेस्टिक हेल्प की सैलरी का एक हिस्सा खुद रखती हैं।
प्लेसमेंट एजेंसी चलाने वाले भी ज्यादातर झारखण्ड और बंगाल के, ठाठ-बाट राजाओं जैसे
मानव तस्करी रोकने के लिए काम कर रही संस्था बाल कल्याण संघ (BKS) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा बताते हैं कि दिल्ली के शकुरपुर इलाके में जाएं तो वहां अनगिनत प्लेसमेंट एजेंसियां हैं। इन एजेंसियों के मालिक किसी राजा की तरह रहते हैं। बिरसा रोजगार सर्विस, पूनम सर्विस सेंटर, महेंद्र प्लेसमेंट एजेंसी, गायत्री प्लेसमेंट एजेंसी, टोप्पो ट्राइबल वेलफेयर सेंटर, सिदो-कानो सेवा केंद्र जैसे नामों वाली एजेंसियों पर शक करना मुश्किल होता है। इनके मालिक भी झारखंड, बंगाल और ओडिशा से ही होते हैं।
‘पीपल्स अवेकनिंग फॉर ट्रैडीशनल रिवाइवल एंड एडवांसमेंट’ (PATRA) की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल झारखंड से 2,500 से 3,000 लड़कियां मेट्रोपॉलिटन शहरों की ओर निकल जाती हैं। उन्हें जबरन वेश्यावृत्ति में भी धकेला जाता है।
प्लेसमेंट एजेंसियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
प्लेसमेंट एजेंसियां थोड़े-थोड़े समय पर नाम और एड्रेस बदल लेती हैं। जिन घरों में वो लड़कियों को रखवाते हैं उन्हें भी पता नहीं चलता कि किस एजेंसी से करार किया गया है। इसलिए ये आसानी से पकड़ में नहीं आते।
पन्ना लाल और बाबा बामदेव ने हजारों लड़कियों को बेचा
झारखण्ड के रहने वाले पन्ना लाल महतो और बाबा बामदेव ह्मूमन ट्रैफिकिंग के किंगपिन रहे हैं। दोनों अभी जेल में हैं। माना जाता है कि बामदेव ने ही पन्ना लाल को ह्मूमन ट्रैफिकिंग के धंधे में उतारा था। पन्ना लाल ने 15 साल में झारखंड की 5,000 लड़कियों को बेचकर 80 करोड़ से अधिक की प्रॉपर्टी खड़ी की। उसे NIA ने 2020 में गिरफ्तार किया था।
कामवालियों के शोषण की बात तो हमने जानी, अब उनके साथ अच्छे बर्ताव और अच्छी सैलरी के उदाहरण भी देख लेते हैं।
सेलिब्रिटीज के यहां नैनी को मिलती हैं लाखों में सैलरी
भारत में सदियों से घरों में काम करने वाले डोमेस्टिक हेल्प को परिवार का ही हिस्सा माना जाता रहा है। पुरुषों को जहां काका, चाचा का दर्जा मिलता रहा है वहीं महिला घरेलू कामगारों को चाची या मौसी कह कर संबोधित किया जाता रहा है।बदलते समय के साथ इन्हें महरी, धाय, दाई कहा गया। ब्रिटिश दौर में महिला घरेलू कामगारों को कहीं आया तो कहीं अम्मा भी कहा जाता था।
उत्तर भारत के कुछ इलाकों में पुरुषों को सेवक और महिलाओं को सेविका भी कहा जाता रहा। आजादी के छह दशकों बाद इसमें बदलाव देखने को मिला, जब उदारीकरण का दौर शुरू हुआ। महिला कामगारों को मेड कहा जाने लगा। हाल के कुछ वर्षों में अब उन्हें ‘डोमेस्टिक हेल्प’ कहा जाने लगा है। कई घरों में तो पेशेवर रूप में उन्हें हाउस स्टाफ कहा जाता है।
नौकरानी या महरी का नाम बदल देने मात्र से काम चलने वाला नहीं है। जरूरत है कि समाज इनके प्रति अपनी सोच बदले। इन्हें सम्मान की नजर से देखे और इज्जत दे क्योंकि इनके होने से ही आज की वर्किंग वुमन, वर्किंग कपल अपने काम पर ध्यान दे पाते हैं, अपने बच्चों को लेकर उन्हें थोड़ी बेफिक्री मिलती है।
समाज को ये नहीं भूलना चाहिए कि ये भी इंसान हैं और इन्हें भी स्नेह की दृष्टि से देखा जाए। संवेदनशीलता के साथ इनका ध्यान रखा जाए और इनके साथ अच्छा व्यवहार हो।
साभार-दैनिक भास्कर.कॉम