VAT SAWITRI VRAT:देश में सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग के दीर्घायु होने और उनकी कुशलता के लिए ‘वट सावित्री’ व्रत पूजा-उपासना कर रही हैं..
राँची।कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन 4 के बीच वट सावित्री व्रत पूजा मनाया जा रहा है।आज ज्येष्ठ महीने की अमावस्या है।इस दिन वट सावित्री व्रत मनाया जाता है।इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग के दीर्घायु होने और उनकी कुशलता के लिए पूजा-उपासना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री व्रत कथा के श्रवण मात्र से महिलाओं के पति पर आने वाली बुरी बला टल जाती है। इस पर्व को देश के सभी हिस्सों में मनाया जाता है।सनातन धर्म में पति ही परमेश्वर का दूसरा रूप है। प्रत्येक स्त्री का कामना होता है कि वह सुहागन रहे।स्वयं कोई कष्ट हो पर पति दीर्घायु और स्वस्थ्य हो। इसी कामना का व्रत है वटसावित्री।वट सावित्रि व्रत का महत्व जैसा कि इस व्रत के नाम और कथा से ही ज्ञात होता है कि यह पर्व हर परिस्थिति में अपने जीवनसाथी का साथ देने का संदेश देता है।
इससे ज्ञात होता है कि पतिव्रता स्त्री में इतनी ताकत होती है कि वह यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ला सकती है। वहीं सास-ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की सीख भी इस पर्व से मिलती है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और उन्नति और संतान प्राप्ति के लिये यह व्रत रखती हैं।
प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि ऋषिकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार वट सावित्री अमावस्या की पूजा और व्रत इस वर्ष 22 मई को मनाया जा रहा है।
कोरोना वायरस के संकट में घरों में ही मनाया जा रहा है–
इस बार कोरोना महामारी के चलते महिलाएं घर पर ही वट सावित्री की पूजा कर रही है तो कुछ बाहर भी निकले हैं।कहीं घर से बाहर बरगद के पेड़ के पास पहुंचकर पूजा कर रही है तो कहीं बरगद की पेड़ ही घर ले आया है।गमले में छोटा बरगद का पेड़ में पूजा कर रही है।
यह व्रत स्त्रियों के वैधव्यादि दोषों के निराकरण एवं पुत्र व पति आदि के सुख, सुरक्षा ओैर सौभाग्य के लिए विशेष प्रशस्त माना जाता है। बरगद का पेड़ चिरायु होता है। अतः इसे दीर्घायु का प्रतीक मानकर परिवार के लिए इसकी पूजा की जाती है। हालांकि लॉकडाउन की वजह से महिलाएं इस बार पारंपरिक तरीके से बरगद के पेड़ के नीचे सामुहिक नहीं कर पा रही है लेकिन कुछ सामाजिक दूरियां बनाकर कर रही है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन ही माता सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। अतः इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। महिलाएं भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा करती हैं। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
अब वट सावित्री पूजा की व्रत-कथा
पौरणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में भद्र देश के राजा अश्वपति बड़े ही प्रतापी और धर्मात्मा थे। उनके इस व्यवहार से प्रजा में सदैव खुशहाली रहती थी, लेकिन अश्वपति स्वयं प्रसन्न नहीं रहते हैं, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थीं। राजा अश्वपति संतान प्राप्ति हेतु नित्य यज्ञ और हवन किया करते थे, जिसमें गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां दी जाती थीं।
उनके इस पुण्य प्राप्त से एक दिन माता गायत्री प्रकट होकर बोली-हे राजन! मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हुई हूं। इसलिए तुम्हें मनचाहा वरदान दे रही हूं। तुम्हारे घर जल्द ही एक कन्या जन्म लेगी। यह कहकर माता गायत्री अंतर्ध्यान हो गईं।कालांतर में राजा अश्वपति के घर बेहद रूपवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री बड़ी हुई तो उनके लिए योग्य वर नहीं मिला। इसके बाद राजा अश्वपति ने अपनी कन्या से कहा-हे देवी! आप स्वयं मनचाहा वर ढ़ूंढकर विवाह कर सकती है।
तब सावित्री को एक दिन वन में राजा द्युमत्सेन मिले। सावित्री ने मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया। यह देख नारद जी राजा अश्वपति के पास आकर बोले-हे राजन! आपकी कन्या ने जो वर चुना है, उसकी अकारण जल्द ही मृत्यु हो जाएगी। आप इस विवाह को यथाशीघ्र रोक दें।
राजा अश्वपति के कहने के बावजूद सावित्री नहीं मानी और राजा द्युमत्सेन से शादी कर ली। इसके अगले साल ही नारद जी के कहे अनुसार-राजा द्युमत्सेन की मृत्यु हो गई। उस समय सावित्री अपने पति को गोदकर में लेकर बैठी थी। तभी यमराज आकर राजा द्युमत्सेन की आत्मा को लेकर जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।
यमराज के बहुत मनाने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें वरदान मांगने का प्रलोभन दिया। सावित्री ने अपने पहले वरदान में सास-ससुर की दिव्य ज्योति मांगी ( ऐसा कहा जाता है कि सावित्री के सास ससुर अंधे थे) दूसरे वरदान में छिना राज-पाट मांगा और दूसरे तीसरे वरदान में सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा, जिसे यमराज ने तथास्तु कह स्वीकार कर लिया।
इसके बाद भी जब सावित्री यमराज के पीछे चलती रही तो यमराज ने कहा-हे देवी ! अब आपको क्या चाहिए ? तब सावित्री ने कहा-हे यमदेव आपने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया, लेकिन बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं? यह सुन यमराज स्तब्ध रह गए। इसके बाद उन्होंने राजा द्युमत्सेन को अपने प्राण पाश से मुक्त कर दिया। कालांतर से ही सावत्री की पति सेवा और भक्ति की कथा सुनाई जाती रही है।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि
बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें।
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।
भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।
पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।