#रथयात्राT20:राँची में रथमेला नहीं होने के कारण मेला परिसर में सन्नाटा पसरा है,329 साल में पहली बार टूटी पौराणिक परम्परा..
राँची।झारखण्ड का आज ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ यात्रा है। लेकिन कोरोनावायरस महामारी के कारण ऐसा पहली बार हो रहा है कि राँची में भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर मौसीबाड़ी नहीं जा रहे हैं।मंदिर में ही प्रतीकात्मक रूप से अनुष्ठान संपन्न हुए।आज सुबह से ही पूजा-अर्चना शुरू हो गई। इस दौरान राँची के सांसद संजय सेठ, पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय आदि नेता मौजूद रहे। दोपहर में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पहुंचे और भगवान जगन्नाथ की पूजा की। उन्होंने मंदिर के बाहर से ही दर्शन किया। समस्त अनुष्ठान मंदिर में ही संपन्न कराए गए। नियमित पूजा के बाद लक्ष्यार्चना पूजा की गई। करीब एक घंटे तक लक्ष्यार्चना पूजा में भगवान विष्णू की भव्य पूजा की गई।
मुख्यमंत्री ने भगवान श्री जगन्नाथ की पूजा-अर्चना कर कहा कि झारखण्ड के सवा तीन करोड़ वासियों की कुशलता की कामना की।परमात्मा सभी को स्वस्थ रखे, सुरक्षित रखे।
श्री विष्णु सहस्त्रनाम अर्चना के उपरांत विग्रहों को गर्भ गृह से निकाल कर जयकारे के बीच डोल मंडप में विराजमान कराया गया। आम जन भगवान का दर्शन नहीं कर पायेंगे। एक जुलाई को मंदिर परिसर में ही घुरती रथ यात्रा की रस्म पूरी की जाएगी।
इधर, मंदिर में आम श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित है। खास लोगों को ही मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है। बाहर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है। खास बात ये है कि लक्ष्यार्चना पूजा में पारंपरिक परिधान धोती में ही पूजा पर बैठने की अनुमति है।
राँची के सांसद संजय सेठ ने जगन्नाथपुर मंदिर जाकर पूजा अर्चना की। उन्होंने राँची के समस्त लोगों के लिए सुख समृद्धि की कामना की। उन्होंने कहा कि कोरोना के इस संकट में भगवान जगन्नाथ स्वामी की कृपा समस्त झारखंड वासियों पर बनी रहे। उन्होंने राँची वासियों को रथ मेला की हार्दिक शुभकामनाएं दी।
पौराणिक काल से भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ मौसी के घर (मौसीबाड़ी) जाते हैं। नौ दिनों तक मौसी के घर रुकने के बाद वापस अपने धाम लौटते हैं। इसी बहाने प्रभु जनमानस की दुख-सुख से अवगत होते हैं।
राँची में पिछले 329 सालों से रथयात्रा का आयोजन उल्लासपूर्वक होता रहा है। इस अवसर पर लाखों की भीड़ होती है।
डोल मंडप में नौ दिनों तक विराजेंगे प्रभु
रथयात्रा अनुष्ठान से पूर्व नियमित पूजा-अर्चना होगी। इसके उपरांत सुबह साढ़े सात लक्ष्यार्चणा पूजा होगी। श्रीविष्णु सहस्त्रनाम अर्चना के बाद भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम के विग्रहों को मंदिर परिसर स्थित डोल मंडप में विराजमान कराया जाएगा। हरि शयनी एकादशी एक जुलाई को घुरती रथ यात्रा के दिन भगवान के धाम लौटने की परंपरा निभाई जाएगी। रथयात्रा अनुष्ठान में मंदिर के पुजारी एवं समिति के सीमित लोग ही शामिल होंगे।
रथ मेला नहीं होने के कारण मेला परिसर में सन्नाटा पसरा है।परंपरा टूटने पर सरकार और जिला प्रशासन के खिलाफ रोष–
सवा तीन सौ साल की परंपरा टूटने पर स्थानीय लोगों में काफी रोष है। लोगों का कहना है कि बड़ी मूर्तियों के बजाय छोटी मूर्तियां मौसीबाड़ी ले जाने की इजाजत दी जानी चाहिए। संक्रमण का भय था तो प्रशासन संख्या तय कर देती। भीड़ नहीं होती। धर्म और परंपरा तोडऩा कहीं से भी उचित नहीं है।
नेत्रदान के बाद एकांतवास से लौटे प्रभु
सोमवार को नेत्रदान अनुष्ठान सादगी पूर्वक संपन्न हुआ। सुबह नौ बजे भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा का नेत्रदान किया गया। जय जगन्नाथ के जयकारे के बीच 108 दीपों की महाआरती की गई। पहले भात, दाल, सब्जी आदि भोग लगा, इसके बाद फिर मालपुए का भोग लगाकर भक्तों के बीच प्रसाद बांटे गए।
करीब 11:30 बजे पूजन समाप्त हुआ। तीनों विग्रहों को वापस गर्भ में स्थापित कर कपाट बंद कर दिया गया। हालांकि, इस दौरान में आम श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित रहा। मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रजभूषण मिश्र सहित चार पंडित एवं समिति के कुछ लोगों की देखरेख में चार पंडितों द्वारा संपन्न कराया गया। मंदिर समिति से जुड़े लोग ही पूजा में शामिल हुए।