झारखण्ड:भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस,पुण्यतिथि के मौके पर श्रधांजलि,सीएम समेत कई नेताओं और सामाजिक लोगों ने दी श्रधांजलि..
जोहार।झारखण्ड के धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा जी को शहादत दिवस पर झारखण्ड न्यूज की पूरी टीम और तमाम जुड़े सदस्यों की ओर से श्रधांजलि 💐💐
राँची।9 जून भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस है।पुण्यतिथि के मौके पर सीएम हेमंत सोरेन,पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, मंत्री आलमगीर आलम, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, सुदेश महतो, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, समेत कई नेताओं और सामाजिक लोगों ने श्रद्धांजलि दी। भगवान बिरसा मुंडा को भारतीय समाज एक ऐसे नायक के तौर पर जानता है, जिसने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।उलगुलान की शुरुआत करने वाले ये वो शख्स थे जो जननायक के तौर पर इतिहास में दर्ज हो गए. बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिये थे अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था।जहां 9 जून 1900 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली इस दिन झारखण्ड समेत पूरे देश में उनका शहादत दिवस मनाया जाता है।
उन्हें साल 1900 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए गिरफ्तार किया गया और 9 जून 1900 को रहस्यमयी परिस्थितियों में राँची जेल के अंदर उनकी मौत हो गई।वे साल 1897 से 1900 के बीच अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध लड़ते रहे। अंग्रेजों ने उन पर उस दौर में 500 रुपये की इनामी धनराशि रखी थी।
कई गुणों से निपुण थे.
भगवान बिरसा मुंडा के निशाने में भी अचूक थे, बांसुरी बजाने में भी निपुण थे. इनका निशाना तो अचूक होता था।जन कल्याण की भावना उनमें इतनी थी कि लोग उन्हें धरती आबा कहते थे. उनकी लोगों में विश्वास बढ़ने के कारण उनके विचारों से लोग काफी प्रभावित होने लगे, जिससे अंग्रेजों के कान खड़े हो गए. अंग्रेज उनको शक की निगाहों से देखने लगें और इसी शक के कारण अंग्रेज उन्हें जेल में भी बंद कर दिया।बिना किसी कारण के जब अंग्रेजों ने इन्हें जेल में बंद कर दिया, कुछ दिनों बाद जेल से निकलने के बाद वे अंग्रेजों के खिलाफ और आक्रोशित हो गए. इसी के बाद उन्होंने बिरसा सेना का गठन किया और अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर विद्रोह शुरू किया।
उतिहातू में हुआ था भगवान बिरसा मुंडा का जन्म
उलिहातू भगवान बिरसा मुंडा का जन्म स्थान है. इसी उलिहातू में 15 नवंबर,1875 को भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।
राँची जेल में ली थी अंतिम सांस
राँची शहर के बीच में स्थित पुराना जेल है, जहां 3 फरवरी, 1900 को गिरफ्तारी के बाद उन्हें रखा गया था. जहां 9 जून 1900 को उन्होंने अंतिम सांस ली थी. वह कक्ष आज भी सुरक्षित रखा गया है जिसमें उन्होंने अंतिम सांस ली थी।अब इस जेल का पुनरुद्धार किया जा रहा है।परिसर में ही बिरसा मुंडा की विशाल प्रतिमा लगाई गई है।
कोकर में है समाधि स्थल
झारखण्ड की राजधानी राँची के कोकर में स्थित है भगवान बिरसा मुंडा का समाधि स्थल।यहां बिरसा मुंडा का अंतिम संस्कार किया गया था अब इस स्थान को विकसित कर यहां भगवान बिरसा मुंडा की भव्य समाधि बनायी गयी है।