भारतीय संस्कृति में सनातन स्वरूप होली पर्व की महत्ता
राँची: अति प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में सनातन स्वरूप में चले आ रहे होली पर्व की सदैव से सभी वर्णो में मान्यता रही है। कभी वसंतोत्सव तो कभी मदनोत्सव के रूप में इसके नाम और परंपराएं बदलती रही हैं। होली प्रकृति के साथ एकाकार होने का संदेश तो देता ही है। कृषि और जनजीवन की परंपरा और संस्कृति से भी समरस रूप में जुड़ा हुआ है। इसके साथ अनेक धार्मिक-पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। समय के साथ उनमें परिवर्तन होता गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद को जलाकर मार डालने की मंशा लेकर अग्निकुंड में बैठने वाली उनकी बुआ होलिका कालांतर में लोक संस्कृति में होलिका माई के नाम से प्रतिष्ठित हो गई। धर्मभीरू जनमानस होली के दिन बनने वाले पकवानों को पहले तथाकथित होलिका माई को समर्पित करने के बाद ही चखता है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वैसे तो सभी तीज-त्योहार कृषि से जुड़े हुए हैं। होली पर्व भी इससे अछूता नहीं है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार पूर्व में होलिका दहन औषधीय लकड़ियों को जलाकर वातावरण को शुद्ध बनाने की वैज्ञानिक परंपरा थी। इसी समय खेतों में पकने को तैयार नवान्नों यथा जौ, गेहूं, मटर, चना आदि को भी उसी औषधीय अग्निकुंड में भूनकर लोग खाते थे। इससे तमाम व्याधियों के ठीक होने की बात कही जाती थी। लोग आग जलाकर उसके आसपास ढोल-मजीरे बजाकर फाग गाते थे और खुशियां मनाते थे। दूसरे दिन धुरड्डी होती थी। टेसू, पलाश, हरसिंगार और सेमल के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों की एक-दूसरे पर प्रेमपूर्ण बौछार की जाती थी।
आयुर्वेद के जानकार बताते हैं कि ये औषधीय रंग वातावरण परिवर्तन की वजह से होने वाले शारीरिक और चर्म रोगों को ठीक कर देने में सहायक होते थे। परंतु अब स्थितियां बदल गई हैं अब की होलिका में नवान्नों की जगह कूड़ा-करकट और अपशिष्ट डालकर वातावरण को और प्रदूषित किया जा रहा है। अब इसमें नवान्न भूनकर खाने को कौन कहे अंधविश्वासपूर्ण मान्यता है कि शरीर में भूनी सरसों का उबटन लगाकर उसकी मैल को डालने से शरीर के रोग दूर होते हैं। सो उसके साथ घर का सारा कूड़ा-कचरा होलिका में डालकर जला देना लोगों ने धार्मिकता का प्रतीक मान लिया है।
फाल्गुन की पूर्णिमा पर आज सोमवार को परंपरा के मुताबिक होलिका दहन किया जाएगा।शहर में विभिन्न इलाकों में कई संगठनों की ओर से होलिका दहन की तैयारी कर ली है।कई इलाकों के मुहल्लों में अगजा के लिए लकड़ी मांगने वाले युवकों का समूह घर घर घूमे।
मारवाड़ी समाज द्वारा सूखे गोबर कंडिका को अग्निदेव को अर्पित किया जायेगा।श्रद्धालुओं द्वारा नए अन्न में झंगरी और गेहूं की बाली अग्नि को अर्पित किया जाएगा।आग में पकाने के बाद लोग इसे और भस्म को अपने घर भी ले जाएंगे।होलिका दहन के बाद देर रात तक कई लोग दहन स्थल पर होलिका के एक खण्ड के गिरने को दिशा को जानने के लिए समूह में इकट्ठा रहते हैं।खण्ड गिरने की दिशा से समाज और देश के लिए शुभ-अशुभ का निर्णय लिया जाता है।
डोरंडा के शिव-महावीर मंदिर धर्मशाला में आज होली मिलन समारोह सह होलिका दहन समारोह है। शाम 7 बजे से धर्मशाला परिसर में होलिका दहन होगा।इसके बाद देवी देवताओं को गुलाल अर्पित किया जाएगा।इस मौके पर होली मिलन समारोह होगा। होलिका दहन का समय शाम 6.26बजे से रात 8.52बजे।कल होली मनायी जायेगी।