राजनीति:बंगाल से लेकर असम तक भाजपा को सफलता,साथ में सबक भी मिले
झारखण्ड न्यूज,राँची।देश में पांच विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए सफलता के साथ कुछ सबक भी दे गए हैं। इन पांचों चुनाव में भाजपा ने कहीं कुछ खोया नहीं है। वह आगे ही बढ़ी है, लेकिन पश्चिम बंगाल के चुनाव को वह जिस ऊंचाई पर ले गई थी उसे वह कायम नहीं रख सकी। असम मे भाजपा की सरकार बरकरार रही है और पुडुचेरी में वह गठबंधन सरकार की स्थिति में पहुंच गई है। तमिलनाडु और केरल में भी उसके हाथों में इस बार पिछली बार से ज्यादा है।
कोरोना काल में इन पांच विधानसभाओं के चुनाव पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थी। सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल पर थी, जहां भाजपा ने अबकी बार दो सौ पार का बेहद महत्वाकांक्षी नारा दिया था। इसके पीछे उसका आधार 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली सफलता थी। हालांकि इससे बहुत दूर रह गई। भाजपा ने यहां पर धुंआधार चुनाव अभियान चलाया था और चुनाव की कमान खुद अमित शाह संभाले हुए थे। जबकि ममता बनर्जी ने अकेले ही मोर्चा संभाला और भाजपा को बहुत दूर कर तीसरी बार अपनी सत्ता का रास्ता प्रशस्त किया।
बंगाल में सरकार नहीं, ताकत बढ़ी:
भाजपा नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में सबसे दमदार चुनाव अभियान चलाया था। देशभर के नेताओं को उतारा था। तमाम केंद्रीय मंत्री एक एक विधानसभा की कमान संभाले हुए थे। इसके बावजूद ममता बनर्जी ने बड़ी जीत हासिल की है। हालांकि भाजपा का प्रदर्शन पिछली बार की तीन सीटों की तुलना में बहूत अच्छा कहा जाएगा। लेकिन उसके महत्वकांक्षी दावे की तुलना में वह कम है। भाजपा के लिए सबसे अहम बात यह है कि उसने राज्य की राजनीति में कांग्रेस और वामपंथी दलों को लगभग बाहर कर दिया है और ममता बनर्जी के मुकाबले सीधे मैदान में है। उसकी ताकत भी इतनी बन गई है कि वह जमकर मुकाबला कर सकती है।
असम की जीत पूर्वोत्तर के लिए अहम :
असम में भाजपा ने एक बार फिर अपने गठबंधन को बहुमत दिला कर सत्ता बरकरार रखी है। यहां पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन से उसका कड़ा मुकाबला था। यही वजह है कि अपने दम पर वह बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई है, लेकिन गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला है। पार्टी की पूर्वोत्तर के गणित के लिए यह जीत काफी महत्वपूर्ण है। असम पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा प्रदेश है और बाकी राज्यों की राजनीति उससे काफी प्रभावित होती है।
दक्षिण में बदलावों में बनी जगह : दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में भाजपा बड़ी ताकत नहीं थी और उसके पास अपनी जमीन तलाशने की चुनौती थी। तमिलनाडु में बदलाव के माहौल में उसके गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन हार इतनी बुरी नहीं हुई। तमिलनाडु में भाजपा ने अपने उम्मीद और अनुमान के अनुसार प्रदर्शन किया है। पुडुचेरी में उसने तोड़फोड़ कर जो चुनावी गणित बनाया था उसमें सफल रही है और इस केंद्र शासित प्रदेश में उसकी गठबंधन सरकार का रास्ता भी बना है। यहां से वह आगे तमिलनाडु की राजनीति के लिए नया रास्ता खोज सकती है।
आगे के चुनाव के लिए सीख : भाजपा को अब अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के विधानसभा चुनाव में जाना है। इस दृष्टि से इन विधानसभा चुनाव के नतीजे उसके लिए एक सबक के रूप में भी रहेंगे कि धुआंधार चुनाव अभियान और बड़े दावों के लिए उसे राज्यों में मजबूत नेतृत्व खड़ा करना होगा। पश्चिम बंगाल में मजबूत नेतृत्व की कमी को पार्टी महसूस कर रही है। ममता बनर्जी ने इस पर भीतरी और बाहरी का मुद्दा खड़ा कर भाजपा की रणनीति को कमजोर भी किया। असम में उसकी सफलता का कारण राज्य में सर्बानंद सोनोवाल और हेमंत विश्व शर्मा की जोड़ी रही और दूसरी तरफ विपक्ष नेतृत्व की कमी से जुझ्ता रहा। वहीं पश्चिम बंगाल में भाजपा अपने केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे थी। चूंकि चुनाव राज्य का था, इसलिए ममता बनर्जी उस पर भारी पड़ी।कुल माने तो भाजपा ने बहुत कुछ पाया है आगे रणनीति बदलकर और कुछ पाया जा सकता है।
भाजपा के चुनावी रणनीतिकार गच्चा खा गए:
इधर बंगाल चुनाव के बारे में कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो ममता बनर्जी ने कोरोना मुद्दा उठाकर चार फेज में भाजपा के नेताओं को जनता से सम्पर्क को रोकने में कामयाब हो गई।जब चौथे चरण के मतदान के बाद भाजपा चुनाव प्रचार में जोर पकड़ने लगा तो मुद्दा कोरोना के बढ़ने का होने लगा।इसी बीच प्रधानमंत्री के कई कार्यक्रम ना होना समर्थकों में उत्साह कम हो गया।इसी का फायदा ममता बनर्जी ने उठाना शुरू किया।और बांकी बचे तीन फेज में अपने लोगों को भेजकर सम्पर्क साधा और नतीजा सामने है।