सड़कों और गलियों में साइकिल और स्कूटी चलाने वाले आंखों से 100% दिव्यांग छोटे लाल उरांव उनके लिए प्रेरणास्रोत है,जो जिंदगी को बोझ समझने लगाते हैं…
लातेहार। झारखण्ड के लातेहार जिले में छोटेलाल उरांव की चर्चा हर कोई क्यों करते हैं। जो लोग शारीरिक तौर पर असमान्य होते हैं वे प्रायः समाज में उपहास के शिकार होते हैं। इन्हीं असमान्य लोगों में कुछ लोग समाज के तानों को सुनकर खुदकुशी कर लेते हैं, तो कुछ तानों को अनसुना कर खुद को एक सामान्य व्यक्ति के रूप में विकसित कर समाज के मुंह पर तमाचा जड़कर उनकी बोलती बंद करा देते हैं। उन्हीं में से एक नाम है सदर प्रखंड के पांडेयपुरा पंचायत अंतर्गत सालोडीह गांव के एक आदिवासी परिवार में जन्मे छोटे लाल उरांव का। वह आंखों से 100% दिव्यांग है। इसके बावजूद वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह जिंदगी जी रहे हैं।
अपनी जमीन पर खेती-बाड़ी करते हैं। दिहाड़ी मजदूरी भी करते हैं। जो आय होती है, उससे अपने वृद्ध माता-पिता, पत्नी व दो बच्चों का भरण पोषण करते हैं। मौका मिलने पर वह खाना बना लेते हैं। साइकिल से गांव की गलियों में घूम लेते हैं, किसी की स्कूटी मिल गई तो वह भी चला लेते हैं। वह कहते हैं कि यह सब प्रभु की कृपा से कर पाता हूं। वहीं गांव के ग्रामीण उनके सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जीने के तौर तरीके से अचंभित रहते हैं। आंखों से 100% दिव्यांग छोटे लाल उरांव उनके लिए प्रेरणास्रोत है, जो जिंदगी को बोझ समझने लगते हैं। पिता एतवा उरांव ने कहा जब वह तीन साल का था, तब उसके चेहरे और आंखों पर चेचक का दाना हो गया था। इससे उसके आंखों की रोशनी चली गई।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट-
ऐसा संभव है। क्योंकि, वैसे व्यक्तियों में सुनने, सूंघने, संतुलन बनाए रखने, त्वचा स्पर्श और हवा में कंपन को महसूस करने की शक्ति सामान्य व्यक्तियों से ज्यादा बढ़ जाती है। जिससे वह दृष्टि की कमी को पूरा कर लेते हैं। डॉ. एसके सिंह, सेवानिवृत्त सिविल सर्जन लातेहार।
रिपोर्ट-साभार