काश,हर घर में संगीता जैसी बहू हो:ऐसी बहू जो भारी संकटों के बीच भी अपने बीमार ससुर और पति की सेवा से पीछे नहीं हट रही…..
राँची। कोई भी बहन जिसका मात्र एक भाई हो,और उस एकलौते भाई की शादी हो रही हो, क्या वो बहन अपने भाई की शादी में शामिल होने से स्वयं इनकार कर सकती है। उत्तर होगा- कभी नहीं, किसी जिंदगी में नहीं। पर, राँची के द्वारकापुरी इलाके में खजूरिया तालाब में रहती हैं 40 वर्षीया संगीता देवी, जिन्होंने अपने एकलौते भाई की शादी में शामिल होने से यह कहकर इनकार कर दिया कि वो अपने बीमार ससुर को इस हालात में छोड़कर नहीं जा सकती। मतलब धर्म और फर्ज की जहां बात आई। संगीता ने फर्ज को अहमियत दे दी।
बता दें कि संगीता देवी के ससुर पिछले दस वर्षों से बीमार है। मतलब हमेशा उनका एक पांव अस्पताल में तो एक पांव घर में रहता है। कब उनकी हालत बिगड़ जायेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए अपने ससुर की हालात को देख वो अपने भाई की शादी में शामिल होने से इनकार कर दी तथा अपनी अनुपस्थिति को लेकर मायके वालों से उसने माफी मांग ली। मायके वाले भी संगीता के इतने अच्छे हैं कि वो हालात को देखते हुए कभी संगीता से नाराज नहीं हुए।
आश्चर्य देखिये कि पिछले दस वर्षों से ससुर की तबियत खराब, यानी ससुर की सेवा की जिम्मेदारी संगीता पर है, वहीं एक साल पहले उसके पति की ब्रेन हेमरेज हो गई। मतलब एक साल से पति की भी हालत ठीक नहीं। अब पहले एक की सेवा करने में समय लगती थी, अब घर में दो-दो लाचार हो गये। पहली बात कि घर में एक आदमी की तबियत खराब रहे, तो आदमी किसी तरह खुद को संभाल लेता है। पर घर में दो-दो लोग, वो भी कमाने वाले बीमार हो जाये, तो घर की क्या दशा होती हैं, समझी जा सकती है।
संगीता जब ससुराल आई थी। तो उसके तीन साल बाद ही उसकी सास चल बसी। मतलब जब घर में उसे बहू का सुख पाना था, तो घर की सारी जिम्मेवारी संगीता पर आ गई, मतलब बहू का सुख गायब हो गया, जिम्मेदारी की बोझ उसके सर पर आ गई। आज भी उसके घर में उसके रिश्तेदार या आस-पास के लोग आते-जाते हैं, तो संगीता की इस दिलेरी का बखान करते नहीं थकते। कई महिलाएं कहती है कि हम संगीता की जगह होते तो इन परेशानियों को सहन नहीं कर पाते, पर संगीता पर कई दुखों के पहाड़ टूटे हैं, पर वो उफ्फ तक नहीं की।
आस-पास के लोग बताते है कि संगीता की दो-दो ननदें, इसी आस-पास में रहती हैं। पर इनमें से एक बड़ी ननद तो कभी-कभार उसके घर आकर समस्याओं में हाथ बंटा देती हैं, पर छोटी ननद उससे इतनी दूरियां बना ली कि उसके घर से यहां कोई संगीता की सुध लेने भी नहीं आता। संगीता के तीन बच्चे हैं। जिनमें दो लड़की और एक लड़का है। सभी पढ़ाई कर रहे हैं।
ऐसे भी जितने लोग, उतनी किस्म की बातें, कोई संगीता से सबक लेता हैं, तो कोई उसकी दुख को बांटने का काम करता हैं और कुछ ऐसे भी हैं कि उसकी विपत्तियों का मजाक भी उड़ाते हैं, पर इन सभी से दूर संगीता, अपने बीमार ससुर व बीमार पति को बेहतर ढंग से देख रही हैं, सेवा दे रही हैं। वो भी बिना किसी के आगे हाथ पसारें। बिना किसी के सहयोग के। वो आगे बढ़ती चली जा रही है।
आस-पड़ोस के लोगों ने बताया कि संगीता कोई ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है,पर उसने जिंदगी जीने का जो भी ज्ञान सीखा है, वो शायद ही किसी को पता हो। यहां तो कई बहूएं हैं पर जो संगीता ने बहू का जो फर्ज निभाया है। वो विरले ही देखने को मिलता है। काश, हर घर में संगीता जैसी बहू हो।
साभार-विद्रोही24 डॉट कॉम