इंसानियत@कोरोना:एक जिले में एक ही दिन दो तस्वीरें सामने आई,एक जहां भाई का शव ठेला पर श्मशान घाट ले गया,वहीं दूसरी ओर मुस्लिमों ने दिया हिन्दू पड़ोसी के शव को कंधा,पेश की इंसानियत..
राँची।झारखण्ड में एक जिले में दो तस्वीरें देखने को मिला।एक जहां शव को कंधा देने नहीं आये कोई तो भाई ने शव को ठेले पर ले गया शमशान घाट वहीं दूसरी तस्वीरें शनिवार को ही रामगढ़ शहर के दुसाद मोहल्ला में दर्जनों मुसलमानों ने कोरोना महामारी के दौर में न सिर्फ एक हिन्दू पड़ोसी के अंतिम संस्कार का पूरा इंतज़ाम किया बल्कि अर्थी को दो किलोमीटर दूर दामोदर नदी के पास स्थित श्मशान घाट तक कंधा देते हुए पहुंचाया।रामगढ़ शहर के दुसाद मोहल्ला के लोगों ने देशभर में हिन्दू और मुस्लिम के बीच बढ़ती दूरी के इस दौर में साम्प्रदायिक सद्भाव की एक नई मिसाल कायम की है।
बताया जा रहा है कि दुसाद मोहल्ला निवासी एक बुज़ुर्ग महिला की मौत के बाद उनके एकमात्र पुत्र पुरुषोत्तम कुमार को सूझ नहीं रहा था कि महामारी के इस नाज़ुक हालात में अंतिम संस्कार को कैसे अंजाम दें। अपने समाज के अगल बगल के रहने वाले परिवारों से उन्होंने मदद की गुहार लगाई लेकिन कोरोना की वजह से अगल बगल में रहने वाले सभी लोगो ने अंतिम संस्कार में शामिल होने से इंकार कर दिया। उनके इंकार करने के बाद मृतिका के पुत्र ने मुस्लिम समाज के लोगों से मदद करने को कहा। उनकी बातों को सुनने के बाद मुस्लिम समाज के लोगों ने एक सुर में कहा कि आपको चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है हम सभी लोग मिलकर आपकी माता के अंतिम संस्कार की सारी क्रिया को मुकम्मल करेंगे। इसके बाद उनके पड़ोसी मो इमरान, मो. शहनवाज़, मो. आदिल, मो. आशिक, मो शमी उर्फ़ सन्नी सहित मुस्लिम समाज के कई लोगों ने मिलकर अंतिम संस्कार की सारी क्रिया को संपूर्ण किया।मुस्लिम समाज के अंतिम संस्कार में शामिल होने की खबर जैसे कुछ पड़ोसी को लगा शर्म से कुछ लोग अंतिम संस्कार में शामिल हुए। अंतिम संस्कार के बाद मृतिका के पड़ोसी और मुस्लिम समाज के लोगों ने कहा कि मानवीय रिश्तों में धर्म कभी आड़े नहीं आता। हमने वही किया जो करना चाहिए था। धर्म अहम नहीं है। संकट के समय में अपने पड़ोसी की मदद करना हमारा फर्ज़ था।